आदर्श जीएसटी का सफ़र लंबा : बिबेक देबरॉय
आदर्श जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) संरचना के लिए भारत को अभी लंबा सफर तय करना होगा और निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना नहीं दिखती है
नई दिल्ली । आदर्श जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) संरचना के लिए भारत को अभी लंबा सफर तय करना होगा और निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना नहीं दिखती है।
नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने यह बातें कही, जो जीएसटी की केवल तीन दरों के समर्थक हैं। देबरॉय का कहना है कि जीएसटी को लागू करना एक अच्छा कदम है, लेकिन अगर कर की दरें कम हो तो यह और अच्छा कदम होगा।
देबरॉय ने आईएएनएस को एक साक्षात्कार में बताया, "मेरे विचार से, और जिसकी वजह से सरकार मुझसे थोड़ी नाराज भी है। लेकिन मेरा मानना है कि जो जीएसटी लागू किया गया है, वह आदर्श नहीं है। हालांकि हम उसके करीब हैं।"
उन्होंने कहा, "एक बार हम यहां आ गए हैं तो मैं बहुत आश्वस्त नहीं हूं कि हम वास्तव में वहां (आदर्श जीएसटी) पहुंचेंगे।"
देबरॉय ने कहा कि आदर्श रूप में जीएसटी की दरें एक होनी चाहिए, 'लेकिन वर्तमान में यह 7 है।'
उन्होंने कहा, "हरेक अर्थशास्त्री का मानना है कि दरें एक ही होनी चाहिए, लेकिन दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है। इसलिए इसे 7 से घटाकर 3 कर देना चाहिए।"
हालांकि सरकार का मानना है कि धीरे-धीरे दरों की संख्या घटकर 3 हो जाएगी, लेकिन देबरॉय को यह होना कठिन लगता है।
उन्होंने आईएएनएस को बताया, "अगर दरें तीन रहती है तो मान लें कि 12, 18 और 24। तो क्या यह संभव है कि अभी जिस पर 3 फीसदी कर है, उससे 12 फीसदी लिया जाए। यह बहुत मुश्किल है।"
फिलहाल सोने और सोने के आभूषणों पर जीएसटी की दर 3 फीसदी है।
देबरॉय ने कहा कि दूसरे देशों के अनुभव से यह पता चलता है कि सभी उत्पाद शामिल किए जाने से राजस्व बढ़ता है। उसके बाद दरों के तीन स्लैब निर्धारित किए जा सकते हैं।
देबरॉय ने कहा कि आदर्श जीएसटी के अंतर्गत सभी अप्रत्यक्ष कर हटा देना चाहिए और एक दर होनी चाहिए। उन्होंने कहा, "दुनिया के ज्यादातर देशों को आदर्श जीएसटी तक पहुंचने में 10 साल लगे हैं।'
उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में केंद्र सरकार दरों और कई अन्य मुद्दों पर एकतरफा निर्णय नहीं ले सकती।
उन्होंने कहा, 'इसलिए यहां ड्यूअल जीएसटी पर जीएसटी परिषद में चर्चा हुई। यहां तक कि बिजली, पेट्रोलियम जैसे कई उत्पाद अभी भी जीएसटी से बाहर है। आदर्श जीएसटी तक पहुंचने में अभी लंबा वक्त लगेगा।"
देबरॉय ने कहा कि इस मुद्दे पर गौर करने का सकारात्मक तरीका यह है कि इसे लेकर आंदोलन चल रहे हैं और आम सहमति कायम करने में 20 साल से ज्यादा लगेंगे।


