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'मुगल-ए-आजम' की 63वीं वर्षगांठ पर अभिनेत्री सायरा बानो ने इंस्टा पर लिखा भावुक नोट

नई दिल्ली । दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर स्टारर क्लासिक फिल्म 'मुगल-ए-आजम' की 63वीं वर्षगांठ पर अभिनेता दिलीप को याद करते हुुए दिग्गज अभिनेत्री सायरा बानो ने इंस्टाग्राम पर एक भावुक नोट लिखा है।

मुगल-ए-आजम की 63वीं वर्षगांठ पर अभिनेत्री सायरा बानो ने इंस्टा पर लिखा भावुक नोट
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नई दिल्ली । दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर स्टारर क्लासिक फिल्म 'मुगल-ए-आजम' की 63वीं वर्षगांठ पर अभिनेता दिलीप को याद करते हुुए दिग्गज अभिनेत्री सायरा बानो ने इंस्टाग्राम पर एक भावुक नोट लिखा है।

5 अगस्त 1960 में प्रदर्शित हुई फिल्‍म 'मुगल-ए-आजम' को के. आसिफ ने बनाया था, जिसमें पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला और दुर्गा खोटे ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

फिल्‍म 'मुगल-ए-आजम' मुगल राजकुमार सलीम और दरबारी नर्तकी अनारकली (मधुबाला द्वारा अभिनीत) की प्रेेम कहानी है। सलीम के पिता, सम्राट अकबर (पृथ्वीराज द्वारा अभिनीत) इस रिश्ते को अस्वीकार करते हैं, जिसके कारण पिता और पुत्र के बीच युद्ध होता है।

अभिनेत्री सायरा बानो ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें हम इस फिल्म की झलक देख सकते हैं। वीडियो में फिल्म के ब्लैक एंड व्हाइट और रंगीन दोनों अंश दिखाए गए हैं। इसमें दिवंगत लता मंगेशकर की लोकप्रिय गीत, ''प्यार किया तो डरना क्या'' और ''मोहे पनघट पे'' मौजूूद हैं।

उन्होंने एक नोट में लिखा, "भारतीय सिनेमा के इतिहास में, किसी भी फिल्म ने दर्शकों के दिलों पर 'मुगल-ए-आजम' जितनी गहरी छाप नहीं छोड़ी है। के. आसिफ की यह फिल्‍म भारतीय फिल्म निर्माण की महिमा के लिए एक कालातीत प्रमाण के रूप में खड़ी है। इस फिल्‍म में साहेब की मनमोहक भूमिका ने इसमें अतिरिक्त परत जोड़ दी है।''

उन्‍हाेंने आगे कहा, " साहेब का किरदार सलीम मंत्रमुग्ध करने वाला था। चरित्र में जान डालने की उनकी क्षमता, चाहे कोमल रोमांस के क्षण हों या भयंकर विद्रोह, देखने लायक थे। उनका शक्तिशाली प्रदर्शन आज तक दर्शकों दिलों में गूंजता है।'' सायरा ने आगे लिखा कि "मुगल-ए-आजम" समय की सीमाओं को पार करती है।

उन्होंने साझा किया,"फिल्म की समाप्ति तक की यात्रा अपने आप में किसी महाकाव्य गाथा से कम नहीं थी, जो आश्चर्यजनक रूप से दस वर्षों तक चली। लुभावनी राजसी 'शीश महल' से लेकर 'ठुमरी' जैसी कालजयी संगीत धुनों तक, फिल्म के हर पहलू पर विस्तार से ध्यान दिया गया।

नौशाद द्वारा बनाई गई 'मोहे पनघट पे' और कव्वाली ''तेरी महफ़िल में'' में सौंदर्यपूर्ण रूप से लेकर मनमोहक वेशभूषा तक सब दिखाया गया है।''

फिल्म आज भी सिनेमाई प्रतिभा का एक प्रतीक बनी हुई है, जो हमें भारतीय सिनेमा की कलात्मक ऊंचाइयों की याद दिलाती है। यह फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती है, यह याद दिलाती है कि सच्ची कलात्मकता की कोई सीमा नहीं होती है और यह समय की कसौटी पर खरी उतरती है।

'मुगल-ए-आजम' डिजिटल रूप से रंगीन होने वाली पहली फिल्म थी जो पहली बार थिएटर में दोबारा रिलीज हुई थी। फि‍ल्म का रंगीन संस्करण 12 नवंबर 2004 को रिलीज किया गया था।


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