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युवा हल्लाबोल का आरोप, नियम ताक पर रख एसएससी चेयरमैन खुराना को दिया गया एक्सटेंशन

युवा-हल्लाबोल का आरोप है, कि एसएससी में धांधली को छिपाने और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए सेवानिवृत हो चुके चेयरमैन अशीम खुराना को एक साल का सेवा-विस्तार दिया गया है

युवा हल्लाबोल का आरोप, नियम ताक पर रख एसएससी चेयरमैन खुराना को दिया गया एक्सटेंशन
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नई दिल्ली। बेरोज़गारी के मुद्दे पर लड़ने वाला युवा-हल्लाबोल का आरोप है, कि एसएससी में धांधली को छिपाने और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए नियमों को ताक पर रखकर सेवानिवृत हो चुके चेयरमैन अशीम खुराना को एक साल का सेवा-विस्तार (एक्सटेंशन) दिया गया है।

आरटीआई से मिले जवाब, उच्च अधिकारियों की फाइल नोटिंग्स और बैठकों की मिनट्स को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत करते हुए युवा-हल्लाबोल ने आरोप लगाया कि एसएससी में भ्रष्टाचारियों को बचाने का काम सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर हुआ है, वो भी असंवैधानिक ढंग से।

पत्रकारों से चर्चा करते हुए स्वराज अभियान के योगेन्द्र यादव, आशुतोष, कन्हैया कुमार ने बताया, कि गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी अशीम खुराना पिछले साल काफी चर्चा में रहे थे जब कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) में पेपर लीक और भ्रष्टाचार को लेकर देशभर में प्रदर्शन हुए।

यह भारत का सबसे बड़ा भर्ती आयोग है। फरवरी 2018 में प्रश्नपत्र लीक होने पर आक्रोशित छात्रों ने जब जोरदार आंदोलन किया, तब आयोग के अध्यक्ष अशीम खुराना को पद से हटाने की मांग देशभर से हुई थी। इसके बाद सरकार ने असंवैधानिक ढंग से चेयरमैन पद के लिए अधिकतम आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करके पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करते हुए अपने ग़लत फैसले को कानूनी जामा भी पहना दिया।

लेकिन नियम संशोधित करने की प्रक्रिया में यूपीएससी से लेकर विधि मंत्रालय तक के उच्च अधिकारियों ने मोदी सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाए और इस असंवैधानिक संशोधन को रोकने का असफल प्रयत्न किया।

आरोप है, कि अधिकारियों ने इस कदम का बाकायदा लिखकर विरोध किया था। युवा हल्लाबोल के नेताओं का कहना है, कि देश में आज बेरोज़गारी दर चरम पर है जो 45 साल के रिकॉर्ड को भी तोड़ चुकी है।

ऐसे में एसएससी भारत की सबसे बड़ी भर्ती एजेंसी है जिसकी विभिन्न परीक्षाओं में सालाना दो करोड़ के क़रीब युवा बैठते हैं। एसएससी जैसे आयोग के साथ यह खिलवाड़ न सिर्फ युवाओं के भविष्य के प्रति सरकार की बेपरवाही का परिचायक है बल्कि संस्थानों को चलाने की मोदी नीति का भी एक उदाहरण है।


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