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रेसकोर्स के अंदरूनी खोलता लोमहर्षक उपन्यास-रेसर

रेसर में मुंबई अंडरवर्ल्ड का रेसकोर्स में दखल और खूरेंजी के सच्चे दर्शन होते हैं

रेसकोर्स के अंदरूनी खोलता लोमहर्षक उपन्यास-रेसर
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- अशोक भाटिया

रेसर में मुंबई अंडरवर्ल्ड का रेसकोर्स में दखल और खूरेंजी के सच्चे दर्शन होते हैं। किताब में आरंभ से अंत तक पाठकों को रेसकोर्स, जुए-सट्टे, उससे जुड़े बाकी मुद्दों से जोड़ने के लिए वे तमाम वाकयात उठाएं हैं, जो इससे सीधे तौर पर जुड़े हैं। तमाम नग्न सत्य का प्रकटन करता, सच्चे किरदारों से सजा उपन्यास हर पल चौंकाता है।

हिंदी साहित्य जगत को सत्य अपराध विधा से रूबरू करवाने वाले देश के खोजी पत्रकार और लेखक विवेक अग्रवाल की माफिया सिरीज के उपन्यास रेसर में मुंबई अंडरवर्ल्डऔर देश के सबसे बड़े रेसकोर्स महालक्ष्मी रेसकोर्स की जमीन पर कब्जा करने, हजारों करोड़ के जुए-सट्टे पर नियंत्रण को लेकर मचे घमासान और अंदरूनी रहस्यों का पर्दाफाश है।

लेखक ने रेसकोर्स को लेकर जो ताना-बाना बुना है, वह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए ही संभव है, जिसने इस खेल को जीवंत और वास्तविक रूप से होते देखा हो।द इंडिया इंक द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास एक और तथ्य सामने लाकर रखता है कि राजनेता, उद्योगपति, बिल्डर, फिल्मी हस्तियां, गिरोह सरगना के झगड़े में गरीब और ऐसे लोग फंसते हैं, जिनका इससे कोई वास्ता नहीं।

लेखक ने उपन्यास के नायक जॉकी पीसी सेठ के अंतस में झांकने की बहुत ही सक्षम कोशिश की है। पीसी सेठ का चरित्र शुरू से बेहद ईमानदार और जबरदस्त जॉकी का दिखता जाता है लेकिन जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढ़ता है, उसके चरित्र के रंग, रूप और परतें सामने आती जाती हैं।

रेसकोर्स की अंदरूनी राजनीति और क्लब पर नियंत्रण के लिए होने वाली राजनीति, उसमें बने मोहरों के टकराव की खतरनाक अंदरूनी जानकारियों और सच्चे किस्सों-किरदारों से यह किताब सजी है।

रेसर में मुंबई अंडरवर्ल्ड का रेसकोर्स में दखल और खूरेंजी के सच्चे दर्शन होते हैं। किताब में आरंभ से अंत तक पाठकों को रेसकोर्स, जुए-सट्टे, उससे जुड़े बाकी मुद्दों से जोड़ने के लिए वे तमाम वाकयात उठाएं हैं, जो इससे सीधे तौर पर जुड़े हैं। तमाम नग्न सत्य का प्रकटन करता, सच्चे किरदारों से सजा उपन्यास हर पल चौंकाता है।
इस कथा का नायक एक जॉकी, एक पुलिस अधिकारी या एक पत्रकार कौन है, ये तय करना कुछ मुश्किल सा होता है। यह पाठकों पर ही है कि वे खुद पढ़ें और तय करें कि उनका नायक असल में कौन है। विवेक अग्रवाल खुद एक सक्षम खोजी पत्रकार हैं, तो ऐसा लगता है कि उपन्यास के पत्रकार विनय में वे अपनी ही छवि देखते हुए लिखते गए हैं। लेखक ने कई अखबारों और चैनलों में काम किया है लेकिन वे अपने ही पेशे की गंदगी को उजागर करने से भी रुकते नहीं हैं। पत्रकारिता जगत के भ्रष्टाचार और गंदगी को वे सबके सामने जस का तस परोसने का साहस करते हैं।वे किताब में रमाकांत और परशुराम के जरिए रेसकोर्स की ऐसी महीन घटनाओं के साथ कथानक को आगे बढ़ाते जाते हैं कि किसी और संसार में विचरण करता सा महसूस होता है। पंटरों या जुआरियों की दुनिया के सच्चे दर्शन इन किरदारों के जरिए लेखक ने करवाए हैं।

विवेक अग्रवाल इस बारे में कहते हैं, 'इस उपन्यास में दिए तमाम किरदार समाज में मौजूद हैं। उन्हें ही नए नाम और स्वरूप में पेश किया है। तीन दशक से अधिक वक्त पत्रकारिता करते बीता है। उसी दौर में महालक्ष्मी रेसकोर्स के अंदर घटती घटनाओं को बेहद करीब से देखने का मौका मिला। खबरनवीसी में तो बस उन्हें जस का तस पेश करते गए। अब उन्हें एक कथानक में पिरो कर पेश किया है, जिससे सभी किरदार और घटनाएं पाठकों को जीवंत लगेंगी।

महालक्ष्मी रेसकोर्स की हाई स्टेक डर्बी रेस, घोड़ों, जुए-सट्टे वगैरह के बारे में जिस तरह तमाम तकनीकी जानकारियां उपन्यास में सामने आती हैं, उनसे लगता है कि आप खुद उस दुनिया को जी रहे हैं। जॉकियों के बीच पेशेवराना दुश्मनी की महीन जानकारियां भी सामने आती हैं।

देश का बड़ा उद्योगपति और रेस के घोड़ों का मालिक विजय मलिक का किरदार और हरकतें आपको बांध लेती हैं। मलिक का फिल्मी हस्तियों, सट्टेबाजों, राजनेताओं, जॉकियों, अमीरों की दुनिया को एक ही वक्त में साधते हुए दिखाने के लिए लेखक ने निश्चित तौर पर किसी जीवंत किरदार को सामने रखा होगा।

लेखक का अंडरवर्ल्ड डॉन दानिश खान उर्फ डीके मुंबई के गिरोह सरगना दाऊद इब्राहिम की जिरॉक्स कॉपी लगता है। वह भी खतरनाक अंडरवर्ल्ड में अपने से बड़ों को हराते, अपनी जगह बनाते, खूनखराबे और मारकाट में सड़कों पर नाम दर्ज कराते अपराधों में ठीक उसी तरह पारंगत होता दिखता है, जैसा कि सच्ची दुनिया में गिरोहबाज दिखते हैं।

पूरा उपन्यास रेसकोर्स की जमीन हड़पने की साजिश, हजारों करोड़ के जुए-सट्टे पर कब्जे, अंडरवर्ल्ड के दखल और मारकाट, टिपरों के आसपास जीत के लिए एक अदद टिप हासिल करने के लिए सदा मंडराने और चापलूसी करने वाले मध्यवर्गीय और गरीब जुआरियों की जीतने की जद्दोजहद है।

सबसे मजेदार बात तो यह है कि जिस तरह जापान के बुराईयों के देवता मीकाबोशी का मेटाफोर लेकर लेखक ने कथानक को 180 डिग्री घुमाया है, वह हिंदी उपन्यासों में आम दिखने वाला नहीं है।

लेखक ने मुंबई को अपनी लेखनी से जीवंत कर दिया है। वे जिस तरह शहर का वर्णन करते हैं, ऐसा महसूस होता है कि आप उनके साथ उस जगह पर मौजूद हैं। वे शब्दों से चित्र बनाते जाते हैं। भाषा के स्तर पर लेखक ने उपन्यास में बहुत अच्छा काम किया है। हर किरदार को उसकी अलग भाषा दी है, जिससे उपन्यास पढ़ने में रोचक हो जाता है।


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