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प्रवासी मजदूरों के लिए देश में एक नीति बने : ललन

बिहार में लाखों की संख्या में मजदूर घर लौटे हैं। राज्य से 20-25 लाख से ज्यादा लोग अन्य प्रदेशों में जाकर रोजी-रोटी जुटा रहे थे, अब ये लोग वापस अपने राज्य लौट आए

प्रवासी मजदूरों के लिए देश में एक नीति बने : ललन
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पटना । बिहार में लाखों की संख्या में मजदूर घर लौटे हैं। राज्य से 20-25 लाख से ज्यादा लोग अन्य प्रदेशों में जाकर रोजी-रोटी जुटा रहे थे, अब ये लोग वापस अपने राज्य लौट आए हैं। अब इनके सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। इस बीच, अखिल भारतीय युवक कांग्रेस की बिहार इकाई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ललन कुमार ने कहा कि इस महामारी में राज्यों के लिए केंद्र को खुले दिल से अपना खजाना खोलना चाहिए। उन्होंने प्रवासी मजदूरों के लिए एक नीति बनाने पर भी जोर दिया।

उन्होंने कहा, "राज्यों को जो हक है, कम से कम उसे मिलना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार को मजदूरों के इस संकट में आगे आना चाहिए।"

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी में प्रवासी मजदूरों ने सबसे अधिक कष्ट सहे हैं। इनके साथ बाहरी जैसा व्यवहार हुआ है। केंद्र सरकार ने विदेशों में रहने वाले एक लाख लोगों को लाने का काम किया लेकिन अपने ही देश के मजदूरों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया। बाद में मजदूर जिस तरह साइकिल से और पैदल हजारों किलोमीटर चले ऐसे भयावह दृश्य लोगों ने देखा है।

उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों के लिए पूरे देश में एक नीति बनाई जानी चाहिए जिससे इनके रोजगार को लेकर कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। उन्होंने बिहार सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि बिहार सरकार अब तक लौटे मजदूरों को रोजगार देने में विफल साबित हुई है।

इधर, महिला कांग्रेस बिहार की पूर्व उपाध्यक्ष मंजूबाला पाठक ने कहा कि आए मजूदरों को लेकर बिहार सरकार प्रतिदिन आंकड़ा प्रस्तुत कर रही है, लेकिन उन्हें रोजगार देने के लिए क्या कर रही है, कुछ नहीं बता रही ।

उन्होंने कहा कि जिस राज्य के मुख्यमंत्री ही कोरोना काल में घरों में कैद हो गए हों उनसे मजदूरों के लिए राहत की अपेक्षा करना ही बेमानी है। उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि बिहार में फाइलों पर ही मजदूरों को काम बांट दिया जाएगा।


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