प्रधानमंत्री को भेजेंगे एक एक रूपए का जुटाया दान
लाल किले को निजी हाथों में देने के फैसले को लेकर पुरात्वविदों के साथ साथ आम जनता में भी विरोध शुरू हो गया है

नई दिल्ली। लाल किले को निजी हाथों में देने के फैसले को लेकर पुरात्वविदों के साथ साथ आम जनता में भी विरोध शुरू हो गया है। द इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि एक सीमेंट कंपनी को भला ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव का क्या अनुभव होगा? उन्होने इसका विरोध किया कि ताजमहल सहित कई इमारतों को केंद्र सरकार इसी तर्ज पर देने की तैयारी कर रही है।
उन्होने निर्माण, लैंडस्केप करने की अनमुति देने पर भी हैरानी जताई। द इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस पहले ही आगा खां ट्रस्ट द्वारा हुमायुं के मकबरे कॉम्पलेक्स व आसपास में की गई छेड़छाड़ पर नाराजगी जता चुकी है। उन्होने मांग रखी है कि भारत डालमिया की कंपनी को इमारतों के रखरखाव का कोई अनुभव नहीं है इसलिए पूरे मामले की केंद्रीय पुरातत्व सलाहकार बोर्ड से समीक्षा करवाई जाए और तब तक यह समझौते को निलंबित किया जाए।
इंडियन कांग्रेस के शिरीन मूसवी ने इस पूरे मसौदे पर नाराजगी जाहिर की। वहीं आज विरोध में दिव्या चेतना समिति द्वारा लाल किला चौक पर अनूठा विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारी राहुल शर्मा अपने साथियों के साथ हाथों में डिब्बे लेकर आम जनता से लाल किले को बचाने के लिए बसों, ई रिक्शा में बैठे यात्रियों से एक-एक रुपया का दान मांगा।
राहुल शर्मा ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ राष्ट्रवादी होने की बात करती है और दूसरी तरफ राष्ट्र की ऐतिहासिक धरोहर लाल किले को संभालने में विल हो गयी है, उन्होंने कहा बचपन से हम लाल किले को देखता आये हैं सरकार को ऐसी क्या जरुरत पड़ी कि स्वतंत्रता के प्रतीक इस लाल किले को कॉर्पोरेट घराने को गोद देना पड़ा जबकि 2013-2014 लाल किले की टिकट बिक्री से आय 6 करोड़ 15 लाख थी और अब चार साल बाद वह बढ़कर तकरीबन 18 करोड़ हो गई है।
उन्होने कहा कि यह सीधे तौर पर औद्योगिक घराने को लाभ दिया गया। उन्होने कहा कि मोदी सरकार के पास विदेश यात्रा ए विज्ञापनों के लिए रूपए हैं लेकिन अपनी राष्ट्रीय और ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए रूपए नहीं है। इसलिए हम एक एक रूपए जुटाकर इसकी राशि प्रधानमंत्री को भेजेंगे ताकि इसका रखरखाव हो सके।


