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प्रधानमंत्री का (अ) लोकतांत्रिक चरित्र

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मूल चरित्र कितना लोकतांत्रिक है

प्रधानमंत्री का (अ) लोकतांत्रिक चरित्र
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- सर्वमित्रा सुरजन

लोकतंत्र की जिस जननी का वास्ता मोदीजी दिया करते हैं, वह तो एक अमूर्त कल्पना है। असल में यहां के लोग ही हैं, जो लोकतंत्र को बनाए रखने का काम करते हैं। इन्हीं लोगों में से निकले थे हमारे स्वाधीनता सेनानी और आजाद भारत के निर्मातागण, जिन्होंने भारत को वो लोकतांत्रिक रूप दिया, जिसका गुणगान आज श्री मोदी पूरी दुनिया में करते हैं और जिसकी वजह से भारत को इज्जत मिलती है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मूल चरित्र कितना लोकतांत्रिक है, या लोकतंत्र के लिए उनके मन में कितना सम्मान है, ये सवाल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच फिर उठ खड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी अनेक मौकों पर भारत को लोकतंत्र की जननी बता चुके हैं। इस तरह के रूपक सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं, इनसे गर्व का बोध होता है कि हम कितने महान देश में रहते हैं, कि भारत ने दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया, कि यहां की गंगा-जमुनी संस्कृति इंसानियत के लिए मिसाल है।

इकबाल ने लिखा भी है- कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। जब उन्होंने हिंदुस्तान की इस खासियत का जिक्र किया था, तब बेशक भारत आजाद और लोकतांत्रिक देश नहीं बना था, लेकिन फिर भी उसकी बुनियाद में लोकतंत्र के गुण शामिल थे, जैसे विरोधियों का आदर करना, विचारों में मतभेद के बावजूद स्वस्थ मानसिकता के साथ तर्क करना और सबको साथ लेकर चलना। इन्हीं गुणों के कारण तरह-तरह के झंझावात सहने के बावजूद भारत विश्व के मानचित्र में डटा रहा, बना रहा, जबकि कई महान सभ्यताएं समय के थपेड़ों को सह नहीं पाईं और मिट गईं। लोकतंत्र की जिस जननी का वास्ता मोदीजी दिया करते हैं, वह तो एक अमूर्त कल्पना है। असल में यहां के लोग ही हैं, जो लोकतंत्र को बनाए रखने का काम करते हैं। इन्हीं लोगों में से निकले थे हमारे स्वाधीनता सेनानी और आजाद भारत के निर्मातागण, जिन्होंने भारत को वो लोकतांत्रिक रूप दिया, जिसका गुणगान आज श्री मोदी पूरी दुनिया में करते हैं और जिसकी वजह से भारत को इज्जत मिलती है। भारत के लिए जो सम्मान हमारे पुरखों ने कमाया, क्या उसे मौजूदा नेतृत्व संभाल कर रख पा रहा है। क्या अपने विरोधियों के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल, उनका अपमान लोकतांत्रिक कहला सकता है। इन सवालों का जवाब भारत की जनता को खुद ही तलाश करना होगा, क्योंकि सवाल उसकी अपनी हस्ती, अपनी पहचान का है।

कुछेक घटनाओं, प्रसंगों का विश्लेषण कर इन सवालों के जवाब तलाशने में मदद मिल सकती है। 14 नवंबर को देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू की जयंती थी। नेहरूजी महज आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं थे, वे औपनिवेशिक दासता की चंगुल की छूट रही दुनिया में उम्मीद की एक किरण भी थे। गांधीजी ने उन्हें हिंद का जवाहर कहा, जो दुनिया के किसी भी सम्मान या उपाधि ये बड़ी उपलब्धि है। स्वतंत्र भारत को आत्मनिर्भर बना कर विकास की राह पर कदम-कदम बढ़ाने का काम नेहरूजी ने किया, और उनकी दूरदर्शिता के लिए भारत हमेशा उनका आभारी रहेगा। लेकिन यह देखकर अफसोस हुआ कि नेहरूजी की जयंती पर उन्हें याद करने का काम मुख्य तौर पर कांग्रेस ने ही किया, गोया नेहरूजी केवल कांग्रेस नेता और कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री थे। कुछेक बुद्धजीवियों, लेखकों ने भी पं.नेहरू को याद किया।

और हमारे प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया एक्स पर औपचारिकता निभाते हुए लिखा- 'हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि।' यानी मोदीजी की निगाह में पं. नेहरू पहले प्रधानमंत्री से अधिक कुछ नहीं थे। वैसे श्री मोदी से उम्मीद भी नहीं थी कि वे नेहरूजी की शान में कसीदे गढ़ेंगे, मगर जिस इंसान की नेतृत्व क्षमता और राजनैतिक विचारों की दुनिया कायल थी, उसके लिए केवल एक पंक्ति में औपचारिक श्रद्धांजलि देकर प्रधानमंत्री मोदी ने खुद साबित कर दिया कि वैचारिक मतभेद को वे राजनैतिक शिष्टाचार से ज्यादा तरजीह देते हैं। 14 नवंबर को ही नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश की चुनावी सभा में इशारों-इशारों में राहुल गांधी के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। जिससे फिर उनके अलोकतांत्रिक व्यवहार की झलक देखने मिली।

बैतूल में 14 नवंबर को एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कल कांग्रेस के एक 'महाज्ञानी' कह रहे थे कि भारत में सब लोगों के पास मेड इन चाइना मोबाइल फोन होता है। अरे मूर्खों के सरदार, किस दुनिया में रहते हो। कांग्रेस के नेताओं को अपने देश की उपलब्धियां न देखने की मानसिक बीमारी हो गई है। जबकि, सच्चाई ये है कि आज भारत दुनिया में मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में कहा था कि आपके मोबाइल के पीछे मेड इन चाइना लिखा होता है, हम उसे मेक इन मध्यप्रदेश बनाना चाहते हैं। श्री गांधी युवाओं की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी को दूर करने के बारे में बात कर रहे थे। जिसका मोदीजी ने इतना बुरा माना कि राहुल गांधी को मूर्खों का सरदार कह दिया। उनके बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वासरमा ने भी उनके सुर में सुर मिलाया।

मोदीजी ने भारत की उपलब्धियां न देख पाने का संबंध मानसिक बीमारी से जोड़ दिया। जिस देश में हर सातवां इंसान किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित है, जहां हर रोज औसतन 7 सौ लोग मानसिक बीमारी के कारण आत्महत्या करते हैं, जहां सरकारी नीतियों से उपजी रोजमर्रा की दिक्कतों के कारण मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है, उस देश में चुनावी फायदे के लिए मानसिक बीमारी का इतने हल्के स्तर पर जिक्र करना क्या प्रधानमंत्री पद पर बैठे इंसान को शोभा देता है, ये सोचने वाली बात है।

श्री मोदी चाहते तो इस बात का सीधा जवाब देते कि राहुल गांधी गलत कह रहे हैं और आंकड़े बता देते कि देश में कितने फोन मेड इन चाइना हैं, और कितने मेड इन इंडिया हैं। तर्कों के साथ वाद-विवाद इसी को कहते हैं। मगर प्रधानमंत्री मोदी का इरादा राहुल गांधी का अपमान कर, उनकी छवि खराब करने का था, जिससे उन्हें चुनावी लाभ मिल सके। अब क्या इस व्यवहार को लोकतांत्रिक कहा जा सकता है। चुनावों में तो अक्सर सत्तारुढ़ दल पर विपक्षी हमला करते हैं, और बताते हैं कि मौजूदा सरकार की कमियां क्या रहीं। जनता अगर स्वीकार करती है कि सरकार में कमी है, तो अगली बार वो किसी और को मौका देती है, अगर मानती है कि कमी नहीं है, तो फिर उसी सरकार को मौका मिलता है।

नरेन्द्र मोदी खुद गुजरात में तीन बार और केंद सरकार में दो बार ये मौका प्राप्त कर चुके हैं। फिर भी वे लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं। श्री मोदी की ये शिकायत बेमानी है कि कांग्रेस के लोगों को देश की उपलब्धियां नहीं दिखतीं। दरअसल वे चाहते ही नहीं है कि विपक्ष उनके शासन में किसी तरह की कमियां निकाले। बल्कि वे तो विपक्ष मुक्त और कांग्रेस मुक्त भारत ही चाहते थे। अभी कुछ समय से कांग्रेस मुक्त वाला नारा शांत किया गया है, क्योंकि भाजपा को समझ आ गया कि ऐसे नारे देश की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी, देश की जनता का भी मूल चरित्र लोकतांत्रिक ही है। इसलिए उसने 10 सालों के कांग्रेस के शासन के बाद 10 साल का मौका भाजपा को दिया है। अगर इस दौरान देश में उपलब्धियां हासिल हुई हैं, तो वे जनता को अपने आप नजर आ जाएंगी। और अगर नहीं हुई हैं, तो वह भी जनता को दिख जाएगा। अगर जनता ये कहेगी कि देश में महंगाई है, नौकरियां नहीं हैं, लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं, हाशिए के वर्गों का अपमान हो रहा है, तो क्या प्रधानमंत्री मोदी जनता को भी मानसिक बीमार कह देंगे।

सवाल ये भी है कि क्या हकीकत से मुंह चुरा कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। मणिपुर पर प्रधानमंत्री की चुप्पी, नरेन्द्र सिंह तोमर के बेटे के वीडियो प्रकरण पर खामोशी, रमेश बिधूड़ी मामले में कुछ न बोलना, ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी उन मसलों पर बिल्कुल चुप हो जाते हैं, जिनकी वजह से उन्हें राजनैतिक या चुनावी असुविधा हो सकती है। इसे ही मुंह चुराना कहते हैं। लोकतंत्र की जननी का सम्मान क्या ऐसी मौकापरस्त चुप्पी या फिर बड़बोलेपन से हो सकता है, ये भी विचारणीय है।


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