Top
Begin typing your search above and press return to search.

असम सरकार में बहुविवाह प्रथा को खत्म करने की मंजूरी

नई हिंदी फीचर फिल्म 'हक' पर छिड़ी चर्चा के बीच असम सरकार में बहुविवाह प्रथा को खत्म करने को मिली मंजूरी

असम सरकार में बहुविवाह प्रथा को खत्म करने की मंजूरी
X

नई हिंदी फीचर फिल्म 'हक' पर छिड़ी चर्चा के बीच असम सरकार में बहुविवाह प्रथा को खत्म करने को मिली मंजूरी. कुछ समुदायों को मिलेगी इसमें छूट.

भारत में एक ओर ऐतिहासिक शाहबानो केस पर बनी एक हालिया फिल्म 'हक' कर खूब चर्चा छिड़ी है तो वहीं दूसरी ओर, असम सरकार ने राज्य में बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने संबंधी कानून का अनुमोदन कर दिया है. अब इसे औपचारिक मंजूरी के लिए इसी महीने विधानसभा में पेश किया जाएगा.

असम कैबिनेट ने रविवार को राज्य में बहुविवाह पर रोक लगाने संबंधी कानून को मंजूरी दे दी. 25 नवंबर से शुरू होने वाले विधानसभा के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान सदन में औपचारिक मुहर लगने के बाद असम पूर्वोत्तर में यह कानून बनाने वाले पहला राज्य बन जाएगा.

हाईकोर्ट: शादीशुदा मुसलमान को 'लिव-इन' में रहने का अधिकार नहीं

इस विधेयक में एक पत्नी से रहते दूसरे विवाह को संज्ञेय अपराध मानते हुए दोषियों को सात साल तक की सजा का प्रावधान है. ऐसे मामलों में अभियुक्तों को जल्दी जमानत भी नहीं मिलेगी.

पीड़ित महिलाओं को मुआवजा

लेकिन आखिर अभियुक्त को सजा मिलने की स्थिति में उस महिला का क्या होगा जिसके साथ जाने या अनजाने में उसकी दूसरी शादी हुई है? इसके जवाब में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने गुवाहाटी में पत्रकारों से कहा, "सरकार ऐसी महिलाओं की मदद के लिए एक मुआवजा कोष बनाएगी. मुआवजा कितना होगा और इसके लिए क्या योग्यता होगी, यह फैसला सदन में विधेयक पारित होने के बाद बनाए जाने वाले नियमों के मुताबिक किया जाएगा."

हिमाचल प्रदेश: कितना कारगर होगा लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाना

वैसे, असम सरकार बीते करीब दो साल से बहुविवाह पर रोक लगाने की बात कह रही थी. सरकार ने उस समय गौहाटी हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज रूमी फुकन की अध्यक्षता में बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने संबंधी कानून बनाने के लिए राज्य सरकार के अधिकारों की समीक्षा करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया था. लेकिन वर्ष 2024 में उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता पारित होने के बाद सरकार ने समिति के कामकाज पर रोक लगा दी थी. उस समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार समान नागरिक संहिता के अनुरूप ही बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने संबंधी कानून बनाने का प्रयास करेगी.

महिला अधिकारों की सुरक्षा का दावा

असम सरकार का दावा है कि बहुविवाह पर पूरी तरह पाबंदी लगाने वाला असम बहुविवाह निषेध विधेयक, 2025 का मूल मकसद महिला अधिकारों की सुरक्षा और लैंगिक समानता सुनिश्चित करना है.

इस कानून की सबसे खास बात यह है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर यह कानून हिंदी और मुस्लिम दोनों तबकों पर समान रूप से लागू होगा. यानी इसके तहत अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति को भी धार्मिक आधार पर एक से ज्यादा विवाह की अनुमति नहीं मिलेगी.

भारत: शादियों में पुरोहित से पहले जासूसों को ढूंढा जा रहा है

यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि भारत में मुसलमानों को शरीयत कानून के तहत एक से ज्यादा शादी करने की छूट है. इसके मुताबिक कोई पुरुष पहली पत्नी की सहमति से चार शादियां कर सकता है. लेकिन महिलाओं को इसकी इजाजत नहीं है.

यह कानून राज्य में तमाम धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू होगा. लेकिन अपवाद के तौर पर कुछ समुदायों को इससे छूट दी गई है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने पत्रकारों को बताया, "राज्य की आदिवासी आबादी के अलावा संविधान की छठी अनुसूची में शामिल बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल इलाके के अलावा डिमा हसाओ और कार्बी आंग्लांग जिलों के मूल निवासियों पर यह कानून लागू नहीं होगा."

मुख्यमंत्री की दलील है कि ऐसे समुदायों की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं. इन इलाकों में अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति वर्ष 2005 के पहले से रह रहा है तो उसे भी उक्त कानून से छूट मिलेगी.

'हक' बनाम हक

राज्य सरकार ने यह कानून ऐसे समय में बनाया है जब वर्ष 1985 के ऐतिहासिक शाहबानो मामले पर आधारित बालीवुड फिल्म 'हक' की काफी चर्चा हो रही है. उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि में बनी यह फिल्म लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर एक ठोस संदेश देती है.

फिल्म में इमरान हाशमी और यामी गौतम ने क्रमशः अब्बास खान और शाजिया बानो का किरदार निभाया है. यह दोनों पति-पत्नी बने हैं. फिल्म में अब्बास खान तीन तलाक के जरिए शाजिया को तलाक दे देता है. शाजिया न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाती है और उसकी यह लड़ाई लाखों महिलाओं की आवाज बन जाती है.

सामाजिक बदलाव या राजनीति?

सरकार के इस फैसले के बाद अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि यह फैसला राजनीतिक है या फिर सचमुच सरकार सामाजिक बदलाव की पक्षधर है. अल्पसंख्यक संगठन इस कानून को अल्पसंख्यकों के किलाप सरकार के अभियान का हिस्सा मानते हैं. लेकिन सरकार का दावा है कि यह राज्य में जनसांख्यिकी संतुलन बनाए रखने की कवायद है. हाल के वर्षों में आबादी का संतुलन गड़बड़ हुआ है. इस कानून के जरिए उसे दुरुस्त करने की कोशिश की जाएगी.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा खुद विभिन्न धर्मों के बीच आबादी के असंतुलन का जिक्र करते रहे हैं. वो कई बार कह चुके हैं कि राज्य के हिंदू समुदाय में आबादी की वृद्धि दर घट रही है. लेकिन मुस्लिम आबादी कई गुनी बढ़ गई है. लेकिन अल्पसंख्यक संगठनों का कहना है कि उनके धर्म में पुरुष को कानूनी तौर पर बहुविवाह की इजाजत है. ऐसे में सरकार का यह फैसला सदियों पुराने धार्मिक नियमों पर सवाल उठाता है.

एक अल्पसंख्यक संगठन के प्रवक्ता शमशुजम्मां डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हमारे धर्म में बहुविवाह की अनुमति है. लेकिन सरकार के इस कानून से हम असमंजस में हैं. हम अपना धर्म मानें या कानून? हमारे लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है."

कोलकाता में एक महिला कार्यकर्ता शबनम डीडब्ल्यू से कहती हैं, "असम सरकार सत्ता में आने के बाद से ही अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है. यह कानून भी उसी कवायद का हिस्सा है. इसके जरिए सरकार ने खासकर अल्पसंख्यक समुदाय पर ही निशाना साधा है. इसकी वजह यह है कि एक से ज्यादा विवाह ज्यादातर हमारे समुदाय में ही होते हैं."


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it