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मारबुर्ग वायरस से दो मौतों के बाद घाना में 98 लोग क्वारंटाइन

अचानक तेज बुखार, सिरदर्द और डायरिया जैसी तकलीफ पैदा करने वाले मारबुर्ग वायरस का अभी कोई इलाज नहीं है.

मारबुर्ग वायरस से दो मौतों के बाद घाना में 98 लोग क्वारंटाइन
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मारबुर्ग वायरस से लड़ने के लिए फिलहाल कोई दवा या टीका नहीं बना है. वैज्ञानिकों के मुताबिक मारबुर्ग, इबोला जितना घातक वायरस है. वायरस से संक्रमित होने पर इंसान को तेज बुखार, डायरिया, उल्टी और सिरदर्द होने लगता है. इसके साथ ही अंदरूनी और बाहरी अंगों से खून भी बहने लगता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अब तक सामने आए केसों के आधार पर मारबुर्ग वायरस की जानलेवा क्षमता 24 से 88 फीसदी के बीच है. घाना से पहले सितंबर 2021 में गिनी में मारबुर्ग वायरस का एक मामला सामने आया था. अब तक डीपीआर कॉन्गो, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा में भी मारबुर्ग वायरस के मामले सामने आ चुके हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि मारबुर्ग वायरस चमगादड़ों समेत अन्य जानवरों से इंसान में फैल सकता है. इसके बाद लार या छींक के जरिए यह बाकी लोगों तक पहुंच सकता है. घाना के स्वास्थ्य विभाग ने एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है, लोगों को सलाह दी जाती है कि वे चमगादड़ों की गुफाओं से दूर रहें और खाने से पहले हर किस्म के मांस को बहुत अच्छी तरह पकाएं.

वायरस के प्रसार को रोकने की कोशिश

मारबुर्ग वायरस से संक्रमित लोगों के संपर्क में आए 98 लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया है. इनमें मेडिकल स्टाफ के लोग भी शामिल हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए घाना के कदमों की तारीफ की है.

करीब तीन करोड़ की जनसंख्या वाला पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना अंतरराष्ट्रीय समुदाय से काफी अच्छी तरह जुड़ा है. देश की राजधानी आक्रा तक दुनिया भर की 35 इंटरनेशनल एयरलाइनें पहुंचती हैं. ये विमान सेवाएं घाना को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, यूएई, कतर, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया समेत कई अफ्रीकी देशों से जोड़ती हैं.

कहां से आया मारबुर्ग वायरस

इस वायरस का सबसे पहले पता 1967 में जर्मन शहर मारबुर्ग में चला, तब से ही इसे मारबुर्ग वायरस कहा जाता है. अफ्रीका से लाए गए कुछ अफ्रीकन ग्रीन बंदरों से यह वायरस लैब कर्मचारियों में फैला. कुछ ही समय के भीतर वायरस जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट और तत्कालीन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड तक पहुंच गया. तब कुल 31 मामले आए थे, जिनमें से सात पीड़ितों की मौत हुई. 1988 से अब तक इस वायरस के इंसानी संक्रमण के ज्यादातर मामलों में पीड़ितों को बचाया नहीं जा सका है.


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