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72 फीसदी लोगों ने कहा, जब से मोदी पीएम बने हैं महंगाई अनियंत्रित हो गई

लगभग तीन-चौथाई लोगों को लगता है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, महंगाई अनियंत्रित हो गई है और कीमतें बढ़ गई हैं

72 फीसदी लोगों ने कहा, जब से मोदी पीएम बने हैं महंगाई अनियंत्रित हो गई
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नई दिल्ली। लगभग तीन-चौथाई लोगों को लगता है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, महंगाई अनियंत्रित हो गई है और कीमतें बढ़ गई हैं। ये खुलासा हुआ है आईएएनएस-सीवोटर के बजट पर एक सर्वे में। यह 72.1 प्रतिशत 2015 के 17.1 प्रतिशत की तुलना में पीएम मोदी के कार्यकाल में काफी ज्यादा है।

2020 में, केवल 10.8 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि कीमतों में गिरावट आई है जबकि 12.8 प्रतिशत ने कहा कि कुछ भी नहीं बदला है।

2014 के बाद से आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार का ये सबसे खराब प्रदर्शन है।

46.4 फीसदी लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल में आर्थिक मोर्चे पर केंद्र सरकार का अब तक का प्रदर्शन उम्मीद से ज्यादा खराब रहा है। सिर्फ 31.7 फीसदी लोगों ने कहा कि प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर है। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते 2010 के बाद से यह किसी भी सरकार का सबसे खराब प्रदर्शन है।

पिछले एक साल में महंगाई के प्रतिकूल प्रभाव को लेकर 38.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है, जबकि 34.3 प्रतिशत ने कहा कि थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ा है।

लगभग आधे उत्तरदाताओं ने कहा कि पिछले एक साल में जीवन स्तर पहले से खराब हो गया है। 48.4 फीसदी लोगों ने कहा कि आम आदमी का जीवन स्तर पिछले एक साल में खराब हुआ है, जबकि 28.8 फीसदी लोगों ने कहा कि इसमें सुधार हुआ है और 21.3 फीसदी ने कहा कि यह पहले जैसा ही है।

हालांकि, आने वाले समय में लोग आशावादी मालूम पड़ते हैं। सर्वे में शमिल 37.4 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि अगले एक साल में आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार होगा। हालांकि, 25.8 प्रतिशत लोगों को अभी भी लगता है कि जीवन का स्तर पहले से खराब हो जाएगा, जबकि 21.7 प्रतिशत लोगों का कहना है कि यह जैसा है वैसा ही रहेगा।

आधे से अधिक लोगों ने कहा कि सामान्य जीवन स्तर के लिए चार लोगों के परिवार को कम से कम 20,000 रुपये प्रति महीने की जरूरत है, जबकि 23.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि यह आंकड़ा 30,000 रुपये प्रति माह होना चाहिए। बहुत ही कम लोगों ने कहा कि ये आंकड़ा 1 लाख रुपये से अधिक होना चाहिए।

इस सवाल पर कि क्या इस आय को कर मुक्त होना चाहिए, तो 81.4 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया।

घरेलू मोर्चे पर सरकार के सामने चुनौतियां साफ हैं क्योंकि ज्यादातर लोग शिकायत कर रहे हैं कि उनकी आय या तो स्थिर हो गई है या खर्च काफी बढ़ गया है। इस कठिनाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 43.7 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हालांकि आय स्थिर बनी हुई है, लेकिन खर्च में वृद्धि हुई है, जबकि अन्य 28.7 प्रतिशत ने कहा कि पिछले एक वर्ष में आय कम हुई है लेकिन खर्च बढ़ गया है।

लगभग दो तिहाई या 65.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पिछले साल की तुलना में खर्च काफी बढ़ गया है, जबकि 30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि खर्च तो बढ़ा है लेकिन लेकिन अभी भी बेकाबू नहीं हुआ है।


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