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पानी के लिए 7 किमी का सफर

प्रदेश के सीमावर्ती ग्राम में इन दिनों भीषण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं

पानी के लिए 7 किमी का सफर
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बैगा परिवारों के लिए विकास की बात बेमानी
गौरेला। प्रदेश के सीमावर्ती ग्राम में इन दिनों भीषण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। विशेष संरक्षित जनजाति के 60 बैगा परिवार बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं । आलम ये है कि उन्हें लगभग 7 किलोमीटर दूर तक कड़ी धूप में पैदल चलकर पानी लेने के लिए जाना पड़ रहा है ।

आजादी के 70 साल होने को हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां न्यू इण्डिया की कल्पना कर नए भारत को संवारने की बात कह रहे हैं। वहीं गौरेला के दूरस्थ आदिवासी बैगा गांव बेदखोदरा और मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले का पुष्पराजगढ़ के सरहाकोना गांव के रहने वाले बैगा परिवार आज भी मूलभूत सुविधाओं के मोहताज़ हैं ।

राष्ट्रपति दत्तक पुत्रो का विकास सिर्फ कागजों में ही हो रहा है जमीनी स्तर पर आज भी ग्रामीणों को शाशन की योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहे है । अधिकारियों की उदासीनता की वजह से विशेष जनजाति को कोई लाभ मिलता नज़र नही आ रहा है ।

एक हैंडपंप से ही गुजारा
जब इस दूरस्त इलाके पंहुचे तो पता चला कि इनकी हर सुबह पानी के लिए संघर्ष से होती है । सुबह उठते ही बैगा परिवार के हर सदस्य की ज़िन्दगी शासन द्वारा लगाये गए 1 हेंडपंप के इर्द गिर्द घूमती है जो पहले पहुंच गया उसे 5 बाल्टी पानी मिल जाएगाएइसके बाद पानी से वंचित लोग 6 किलोमीटर के पथरीले वन मार्ग से होते हुए अनूपपुर जिले के पौराधार जाते हैं।

जहां सड़क किनारे बने हैंडपंप से पानी लेकर वापस कच्चे पथरीले मार्ग से इसी पहाड़ी गांव वेदखदरा और करंगरा वापस आते हैं। ज्ञात हो कि यह एक दो दिन की बात नहीं है पिछले 2 महीनों से ऐसा ही चल रहा है 60 बैगा परिवारों वाले इस गांव में एक हैंडपंप और एक कुआं है जो लगभग 2 माह पहले ही सूख चुका है।

इसके बाद लगभग 10 दिन इनका गुजर-बसर एक प्राकृतिक जल स्रोत जिसे ठोड़ी पानी से चला पर लगभग डेढ़ माह पूर्व यह भी सूख गया उसके बाद पानी के लिए दौड़ शुरू हुई और वह दौड़ आज भी जारी है। सुबह बैगा परिवार के पुरुष सदस्य उठ कर पानी की तलाश में मध्यप्रदेश के पौराधार जाते हैं और यहां से कांवरों में भरकर पानी अपने घर लेकर जाते हैं ।

अधिकारियों की उदासीनता
ग्रामीणों का कहना है कि पिछले साल मांग के बाद प्रशासन इस गांव में आया और उसने हैंडपंप के लिए जगह प्रस्तावित की पर आज तक वहां हैंडपंप खोदा नहीं जा सका। यह समस्या कई वर्षों से बनी हुई है वर्षों से ये बैगा परिवार जीवन के मूलभूत समस्याओं से निजात पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

समस्या यहीं समाप्त नहीं हुई है ।इस गांव में पहुंचने के लिए कोई मार्ग ही नहीं है। बिजली की बात करना तो बेईमानी हैण् एसा नहीं है की इसकी शिकायत या सूचना दोनों गांवों के लोगों ने शासन प्रशासन को न दी हो पर अब तक किसी ने भी इनकी और पलट कर नहीं देखा। नेता जनप्रतिनिधि भी यहां आते हैं पर वोट मांगने अब तो इन्हें सब कुछ छलावा ही लगाने लगा है।

अधिकारियों को खबर ही नहीं
विशेष संरक्षित जनजाति बैगा जिन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है इनकी आबादी बढ़ाने के लिए सरकार ने इनकी नशबंदी पर भी प्रतिबद्ध लगा रखा है। जब इस मामले की बात अधिकारियों से की तो उन्होंने शीघ्र ही व्यवस्था कराने की बात कही है।

साथ ही नए नलकूप खनन की भी बात कर रहे हैं। पर सवाल यह उठता है कि यह पूरा क्षेत्र पिछले 3 सालों से सूखे की मार में है और इस वर्ष तो अत्याधिक सूखा पड़ा हुआ है शासन.प्रशासन द्वारा हाई अलर्ट पर होना चाहिए। इसके बावजूद का प्रशासन को अब तक इसकी खबर भी नहीं है की छत्तीसगढ़ का एक पूरा का पूरा गांव पानी के लिए उन पर नहीं बल्कि मध्यप्रदेश पर आश्रित है ।

ज्ञात हो कि जनजाती बैगा के विकास के लिए बैगा विकास प्राधिकरण सहित आदिवासी विकास परियोजनाएं सरकार के माध्यम से चल रही है। जिस पर प्रति वर्ष करोडों का फंड आता है ए पर इसका प्रयोग इन जनजातियों के उत्थान के लिए हो रहा है या नहीं इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं। ऐसे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस चिलचिलाती धूप में गांव में गुजर बसर करना कितना मुश्किल है।


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