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11 घंटे खदान बंद कराने वाले 31 लोग बाइज्जत बरी

खदान बंद करने के लिए की जा रही डी पिलरिंग से प्रभावित ग्रामीणों के द्वारा सुराकछार खदान में उत्खनन कार्य बाधित किया गया था

11 घंटे खदान बंद कराने वाले 31 लोग बाइज्जत बरी
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कोरबा। खदान बंद करने के लिए की जा रही डी पिलरिंग से प्रभावित ग्रामीणों के द्वारा सुराकछार खदान में उत्खनन कार्य बाधित किया गया था। 3 साल पूर्व के इस मामले में पुलिस द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट पर आरोपी बनाए गए 31 ग्रामीणों को अंतत: बाइज्जत बरी कर दिया गया। मामले को न्यायालय ने डिस्पोज कर दिया है।

जानकारी के अनुसार वर्ष 2007 से 2010 तक एसईसीएल के बलगी परियोजना खदान की फेस को बंद करने के लिए प्रबंधन द्वारा डी पिलरिंग कराया गया। गलत तरीके से की जा रही डी पिलरिंग के कारण खदान के ऊपरी सतह पर बड़ी-बड़ी दरारें आने लगी और खेतों में धसान होने से किसानों को नुकसान हुआ। अपने स्तर पर प्रभावित किसानों ने एसईसीएल के समक्ष बात रखी किन्तु कोई परिणाम न मिलता देख वर्ष 2011 से 2014 के मध्य मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टीर् की अगुवाई में चरणबद्ध आंदोलन किसानों से शुरू किया। वर्ष 2012 में पहली बार 3 वर्ष का मुआवजा 52 किसानों को दिया गया।

दूसरी बार पुन: चले आंदोलन में 6 अक्टूबर 2014 को प्रभावित किसानों ने सुराकछार खदान के मुख्य द्वार को चारों ओर से घेर कर धरना प्रदर्शन किया जिसके कारण कर्मचारी भीतर-बाहर नहीं जा सके और 11 घंटे तक उत्पादन बाधित रहा। मामले में 7 अक्टूबर को एसईसीएल सुराकछार के उप क्षेत्रीय प्रबंधक की ओर से सहायक सुरक्षा अधिकारी जेठू प्रसाद चौरे पिता भूरा प्रसाद 59 वर्ष की रिपोर्ट पर बांकीमोंगरा पुलिस ने धारा 341,147 भादवि का मुकदमा दर्ज किया। इस कार्यवाही के खिलाफ 11 अक्टूबर को बड़ी संख्या में बांकीमोंगरा थाना का घेराव किया गया तब प्रकरण को खत्म करने का आश्वासन पुलिस अधिकारियों ने दिया।

इस बीच प्रकरण का चालान न्यायालय में पेश किया गया और 2015 में न्यायालय के आदेश पर आरोपियों की गिरफ्तारी की गई। मुख्य आरोपी सपुरन कुलदीप, प्रशांत झा, सावित्री चौहान, रामा देवी, महेश्वरी सहित 26 अन्य महिलाएं शामिल थीं जिन्हें जमानत मिल गई। न्यायालयीन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 3 वर्ष से विचाराधीन इस प्रकरण में न्यायालय ने समस्त आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया है। न्यायालय के इस फैसले से प्रभावित ग्रामवासियों में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी।


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