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श्रीलंकाई राष्ट्रपति पद की दौड़ में विक्रमसिंघे सहित 3 नेता शामिल

देश में चल रही अस्थिरता के बीच प्रधानमंत्री से कार्यवाहक राष्ट्रपति बने रानिल विक्रमसिंघे सहित तीन नेता बुधवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी मैदान में होंगे

श्रीलंकाई राष्ट्रपति पद की दौड़ में विक्रमसिंघे सहित 3 नेता शामिल
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कोलंबो। देश में चल रही अस्थिरता के बीच प्रधानमंत्री से कार्यवाहक राष्ट्रपति बने रानिल विक्रमसिंघे सहित तीन नेता बुधवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी मैदान में होंगे।

विक्रमसिंघे को पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे की पार्टी, श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के एक वर्ग के समर्थन के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है।

समगाई जन बालवेगया (एसजेबी) या यूनाइटेड पीपुल्स पावर पार्टी के नेता और विपक्ष के नेता, साजिथ प्रेमदासा चुनावी मैदान से पीछे हट गए हैं और राजपक्षे सरकार के पूर्व मीडिया मंत्री और राष्ट्रपति पद के लिए एसएलपीपी के सदस्य दुलस अलहप्परुमा का नाम प्रस्तावित किया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एसजेबी और एसएलपीपी के वर्गों के बीच अनुबंध साजिथ प्रेमदासा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिए है, अगर अलहप्परुमा राष्ट्रपति पद के लिए जीत जाते हैं।

तीसरे दावेदार के रूप में मार्क्‍सवादी पार्टी की नेता अनुरा कुमारा दिसानायके का नाम दौड़ के लिए शामिल किया गया है।

कभी शक्तिशाली महिंदा राजपक्षे की एसएलपीपी, जिसने 2020 के संसदीय चुनाव में 225 में से 145 सीटें जीती थीं, अब दो वर्गों में विभाजित हो गई हैं। राजपक्षे परिवार द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों पर पार्टी को अपार सार्वजनिक अलोकप्रियता के बाद विभाजन झेलना पड़ा है।

आसमान छूती महंगाई के साथ कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था के बोझ से दबे लोगों के तीन महीने के लगातार विरोध के बाद पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा।

लोगों ने बड़े पैमाने पर कर में कटौती और खाद्य उत्पादन में गिरावट और अधिकांश किसानों के लिए नौकरियों के नुकसान जैसे कई अप्रत्याशित फैसलों के लिए राजपक्षे को दोषी ठहराया है।

ईंधन, रसोई गैस, दवा, भोजन और उर्वरक के बिना लोग परेशान हो चुके थे और वे 31 मार्च से सड़कों पर उतर आए और बढ़ते सार्वजनिक विरोध के बीच महिंदा राजपक्षे और उनके मंत्रिमंडल को 9 मई को पद छोड़ना पड़ा और 9 जुलाई को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी। उन्होंने दरअसल मजबूरी में इस्तीफा देना ही पड़ा, क्योंकि लोगों का आक्रोश दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। प्रदर्शनकारियों ने उनके आधिकारिक आवास, कार्यालय और प्रधानमंत्री के आधिकारिक घर पर कब्जा कर लिया था।

इसके बाद राजपक्षे मालदीव भाग गए और बाद में सिंगापुर चले गए जहां से उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में, विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था।


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