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बुंदेलखंड में महिलाओं की मेहनत से खड़ी हुई 278 करोड़ की कंपनी

महज 3 साल में ही खड़ी हो गयी 278 करोड़ की कंपनी.

बुंदेलखंड में महिलाओं की मेहनत से खड़ी हुई 278 करोड़ की कंपनी
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कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉक्टर ओम प्रकाश सिंह बताते हैं, "मिशन के तहत अब तक कंपनी में 839 गांवों के 950 स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं समेत कुल 40 हजार महिलाएं सदस्य बन चुकी हैं. इसमें स्वयं सहायता समूह से इतर महिलाएं भी शामिल हैं. इस साल के अंत तक 12 हजार और महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है. ये समूह 675 केंद्रों के माध्यम से 839 गांवों में काम कर रहे हैं.”

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डॉक्टर ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि कंपनी में कुल दस निदेशक हैं जिनमें से आठ महिला निदेशक वही हैं जो कि दुग्ध उत्पादन से जुड़ी हैं जबकि एक निदेशक तकनीकी क्षेत्र से होते हैं और एक निदेशक का पद कंपनी के सीईओ के पास रहता है.

बलिनी की सदस्यों को सस्ता चारा भी उपलब्ध कराया जाता है. ओपी सिंह बताते हैं, "हम लोग गांव वालों को यह भी बताते हैं कि वो पशुओं को हरा चारा खूब खिलाएं. हमारे लोगों ने गांव-गांव जाकर करीब पांच हजार किसानों के यहां हरे चारे की फसल लगाई है, वो भी बंजर भूमि पर. बुंदेलखंड में पशुओं में बांझपन की समस्या बहुत थी, उसे भी हम दूर कर रहे हैं.”

सूखे से बेहल बुंदेलखंड की उम्मीद

झांसी जिले के गणेशगढ़ गांव की अनीता राजपूत पिछले दो साल से समूह से जुड़ी हैं. उनके बेटे विनय कुमार राजपूत बताते हैं कि वो लोग करीब दो-ढाई लाख रुपये का लाभ कमा लेते हैं. विनय राजपूत खुद सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे हैं. वो कहते हैं, "पहले हमारे पास एक भैंस थी लेकिन समूह से जुड़ने के बाद हम और भैंस ले आए हैं और आज हमारे पास दस भैंस हैं. हमारे गांव में कुल 125 सदस्य इससे जुड़े हैं. लोगों को अच्छी आमदनी हो रही है और दूध लेकर इधर-उधर भटकना भी नहीं पड़ता है.”

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बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति इस इलाके में खेती को न सिर्फ दुष्कर बनाती है सिंचाई के लिए पानी का अभाव और भीषण के कारण पूरा क्षेत्र कृषि में अत्यंत पिछड़ा हुआ है. इस क्षेत्र में 60 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं. गर्मी शुरू होते ही पानी की समस्या सतह पर दिखने लगती है, नल, कुएं, हैंडपंप सूखने लगते हैं और पानी की तलाश में लोग कई किलोमीटर तक संघर्ष करते दिखते हैं. यहां से लोगों के पलायन की मुख्य वजह भी यही है. पानी की वजह से खेती ठीक से नहीं होती तो पशुओं को चारा भी ठीक से नहीं मिल पाता.

बहुत से इलाकों में लोगों ने स्वयं सहायता समूहों के जरिये ही गांव की स्थिति सुधारने में सफलता पाई है. कहीं तालाब बना कर तो कहीं पेड़ लगाकर हालात को बेहतर किया गया है. इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि अब कई इलाके फिर से हरे भरे दिखने लगे हैं. इन महिलाओं की कामयाबी भी ऐसी ही कोशिशों का नतीजा है.


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