Top
Begin typing your search above and press return to search.

बीटिंग रिट्रीट समारोह में गूंजी 26 तरह की धुन, देश भक्ति की धुनों से गुंजा विजय चौक

पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की लड़ाई में जीत के उपलक्ष में विशेष रूप से तैयार की गयी ‘स्वर्णिम विजय’ धुन की स्वर लहरी आज ऐतिहासिक विजय चौक पर आयोजित बीटिंग रिट्रीट समारोह का मुख्य आकर्षण रही

बीटिंग रिट्रीट समारोह में गूंजी 26 तरह की धुन, देश भक्ति की धुनों से गुंजा विजय चौक
X

नयी दिल्ली। पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की लड़ाई में जीत के उपलक्ष में विशेष रूप से तैयार की गयी ‘स्वर्णिम विजय’ धुन की स्वर लहरी आज ऐतिहासिक विजय चौक पर आयोजित बीटिंग रिट्रीट समारोह का मुख्य आकर्षण रही।

सूर्यास्त होते ही समूचा विजय चौक और आस- पास की सभी इमारतें आजादी के जश्न की भावना से ओत-प्रोत रोशनी में नहा गयी। बीटिंग रिट्रीट के साथ ही चार दिन से चले आ रहे गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो गया।

समारोह की शुरूआत मुख्य अतिथि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आगमन से हुई। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगियों तथा तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने राष्ट्रपति का स्वागत किया।

गणतंत्र दिवस की तरह ही बीटिंग रिट्रीट पर भी काेरोना महामारी का साया दिखायी दिया। कोरोना के कारण दर्शकों और विशिष्ट अतिथियों के बैठने के लिए विशेष इंतजाम किये गये थे। इसमें सामाजिक दूरी बनाये रखने के लिए विशेष ऐहतियात बरता गया था। दर्शकों की संख्या हर बार की तुलना में काफी कम रही।स्वर्णिम विजय धुन पाकिस्तान पर 1971 की लड़ाई में विजय के पचास वर्ष पूरे होने के मौके पर विशेष रूप से तैयार की गयी है।

बीटिंग रिट्रीट में सशस्त्र सेनाओं और सुरक्षा बलों तथा पुलिस बलों के 15 ड्रम बैंडों ने परंपरागत धुनों तथा संगीतमय कार्यक्रमों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सारे जहां से अच्छा की सदाबाहर धुन के साथ गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हाे गया।

समापन समारोह सदियों पुरानी उन दिनों की सैन्य परंपरा है जब सूर्यास्त होने पर सेना युद्ध बंद कर देती थी। जैसे ही बिगुल वादक समापन की धुन बजाते थे सैनिक युद्ध बंद कर देते थे और अपने शस्त्रास्त्र समेटकर युद्धस्थल से लौट पड़ते थे। यही कारण है कि समापन धुन बजने के दौरान अविचल खडे रहने की परंपरा आज तक कायम है। समापन पर ध्वज और पताकाएं खोलकर रख दी जाती हैं और झंडे उतार दिये जाते हैं।

ड्रम वादन उन दिनों की यादगार है जब कस्बों और शहरों में तैनात सैनिकों को सायंकाल एक निर्धारित समय पर उनके सैन्य शिविरों में बुला लिया जाता था।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it