10 बंदियों के लिए जमा किए 21 हजार
कहते है किसी संंकट के समय कोई देव दूत बनकर भी आ जाए तो उसे संकट से छुटकारा पाने वाले लोग वाकई देवता ही कहेंगे
वरदान साबित हुई कविता बेरीवाल की पहल
जुर्माना नहीं पटाने से जेल में बंद थे बंदी
रायगढ़ (देशबन्धु)। कहते है किसी संंकट के समय कोई देव दूत बनकर भी आ जाए तो उसे संकट से छुटकारा पाने वाले लोग वाकई देवता ही कहेंगे और ऐसा ही एक बड़ा उदाहरण रायगढ़ जिला जेल में देखने को मिला जहां जेल की सीखंचों में दो सालों से बंद दस बंदियों को एक समाजसेवी महिला की पहल से न केवल खुले में सांस लेने की आजादी मिली बल्कि अपने घरवालों से मिलकर भी इन खुशियों से बांटने का मौका मिला। मात्र पांच सौ से लेकर 3 हजार रूपए की जुर्माना राशि नहीं पटाने के चलते जिला जेल में ये गरीब बंदी जेल में ही बंद थे। अब वे बाहर आकर फिर से नई जिंदगी की शुरूआत करना चाहते हैं। साथ ही जेल से छूटने से पहले वे उस महिला का दिल से शुक्रिया करते नजर आए जिनके लिए वह एक देवदूत ही बनकर आई थी।
जिला जेल में समय-समय पर सेवा भाव का काम करने वाली कविता बेरीवाल ने दो दिन पहले ही जिला जेल पहुंचकर जब जेल अधीक्षक एस.के.मिश्रा से चर्चा की थी तो चर्चा के दौरान उन्हें पता चला कि इस जिला जेल के भीतर छोटे-छोटे मामलों में बंद 10 बंदी ऐसे है जिन्हें अदालत ने पांच सौ से लेकर 3 हजार रूपये तक की जुर्माना राशि भरकर जेल से छूटने का आदेश तो जारी किया था पर गरीबी के चलते इन बंदी परिवारों के पास न तो जुर्माना राशि थी और न ही उन्हें कोई उधार दे रहा था।
कविता बेरीवाल ने इस पहल के मामले में केवल इतना कहा कि वे अकेली नही है बल्कि उन्हें एक ऐसे समाजसेवी का सहयोग इन बंदियों के लिए मिला जो अपना नाम सामने लाए बगैर पैसे का सहयोग देने के लिए आगे आए। साथ ही साथ समय-समय पर जेल के भीतर बंदी महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने पर भी साथ देने का वादा किया है। समाज सेवा से जुडी कविता का कहना है कि वे इस मामले में कोई श्रेय इसलिये नही लेना चाहती चूंकि रायगढ़ दानवीर स्व. सेठ किरोड़ीमल की वो भूमि है जहां लोग हर छोटे बड़े मामले में सहयोग देने के लिए आगे आते है और वे तो केवल पहल कर रही है।
जेल अधीक्षक का कहना था कि इन बंदियों के लिए पैसे को इंतजाम नही होनें से दो सालों से जेल में ये बेवजह बंद थे और उनके पास जब समाज सेवी महिला आई तब उन्होंने उन्हें छुडवाने का बीडा उठाया। जेल अधीक्षक को इस बात की खुशी है कि समाजसेवी महिला की पहल से 10 बंदी जेल से रिहा हो रहें है। समाज सेवा से जुडी महिला ने इस मामले में कहा कि उन्हें जब पता चला तो वे शहर के अन्य समाजसेवियों से मिलकर इसमें सहयोग करने का एक आग्रह भर किया था और देखते ही देखते 10 बंदियों के लिए 21 हजार रूपए की ाशि जमा हो गई और उन्हें तत्काल अधीक्षक के पास जमा करके इन्हें छुडवाने की पहल कर दी। वे कहतीं है कि उन्हें जब पता चला कि छोटी सी राशि के लिए ये बंद है तो वे आगे आकर उनका सहयोग के लिए अन्य लोगों से मिली। उनका यह भी कहना है कि उनको खुली हवा में सांस लेने की पहल होनें से बेहद प्रसन्नता एवं आत्म सुतुष्टि हो रही है।
ये बंदी हुए रिहा
जिला जेल में बंदी आरती दास, सीताराम कंवर, रामलाल, अरूण सिदार, महेश राठिया, हेमंत राठिया, महेशराम मांझी, उसतराम, लक्ष्मीनारायण, विकास चौहान के नाम शामिल है।
बंदी महिलाओं को मिला रोजगार का साधन
जिला जेल के भीतर अलग-अलग मामलों में बंद बंदी महिलाओं के साथ-साथ सजा काट रही महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए भी कविता बेरीवाल ने अपने परिवार की तरफ से एक सिलाई मशीन भेंट की जिससे जेल में बंद महिलाएं कपड़ा सीलकर कोई रोजगार का साधन शुरू कर सके साथ ही साथ जेल से निकलने के बाद उन्हें खुद का रोजगार भी मिल सके।
इस दौरान उनके साथ आई महिलाओं जेल में बंद महिलाओं के पांच बच्चों को कपड़े भी बांटे। चूंकि उनके पास लंबे समय से कपड़े की कमी भी थी।


