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सबसे खराब नकारात्मक विज्ञापन का गवाह बन सकता है 2024 का चुनाव अभियान

चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के बावजूद, 2024 के चुनावों में संभवत: अधिक नकारात्मक अभियान रणनीतियां दिखाई देंगी

सबसे खराब नकारात्मक विज्ञापन का गवाह बन सकता है 2024 का चुनाव अभियान
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- कल्याणी शंकर

चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के बावजूद, 2024 के चुनावों में संभवत: अधिक नकारात्मक अभियान रणनीतियां दिखाई देंगी। राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को नकारात्मक अभियानों के बजाय सकारात्मक विज्ञापन बनाने चाहिए। इससे लोकतंत्र की रक्षा करने और चरित्र हनन रोकने में मदद मिलेगी। एक समाधान यह है कि पार्टियों को राज्य निधि से धन दिया जाये जैसा कि कई चुनाव आयोगों ने सलाह दिया है। अभियानों में शालीनता एवं मर्यादा बनाये रखना भी आवश्यक है।

2024 भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे 64 देशों में चुनावी वर्ष है। दुनिया भर में राजनीतिक विज्ञापन बढ़ रहा है। राजनीतिक दल और उम्मीदवार अक्सर खुद को बेहतर और अपने विरोधियों को कमजोर दिखाने के लिए नकारात्मक अभियानों का इस्तेमाल करते हैं।

1828 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के बाद से पार्टियों ने नकारात्मक प्रचार का उपयोग किया है। इतिहासकारों का कहना है कि जॉनक्विंसी एडम्स/एंड्रयूजैक्सन प्रतियोगिता सबसे घटिया थी। 1964 में, लिंडनजॉनसन ने 'डेज़ी विज्ञापन' सहित रेडियो विज्ञापनों का उपयोग करके अपने प्रतिद्वंद्वी बैरी गोल्डवाटर को बदनाम किया।
डोनाल्ड ट्रम्प ने एक विज्ञापन प्रसारित किया जिसमें उनकी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति अभियान के दौरान सार्वजनिक रूप से गिरते हुए दिखाया गया था। 2020 के चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ट्रंप और जो बाइडेन नकारात्मक प्रचार में लगे हुए हैं। ट्रम्प ने बाइडेन की मानसिक क्षमताओं की आलोचना की, जबकि बाइडेन ने ट्रम्प के कोविड-19 से निपटने में घटिया कार्यनिष्पादन और उनके चरित्र पर हमला किया। 2024 में भी नकारात्मक विज्ञापन जारी रहेंगे।

कंजर्वेटिव पार्टी ने 2019 यूके आम चुनाव के दौरान जेरेमीकॉर्बिन को एक महत्वपूर्ण सुरक्षा खतरे के रूप में चित्रित किया। 2021 के जर्मन संघीय चुनाव में, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का दौरा करते समय हँसते हुए आर्मिनलाशेट की छवियों का उपयोग करके उन पर निशाना साधा।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरने के बाद से, चुनाव अभियान के दौरान प्रौद्योगिकी का उपयोग और विज्ञापन खर्च में भारी वृद्धि हुई है। नेताओं को अब खुद को प्रस्तुत करने, प्रभावी ढंग से संवाद करने और प्रभावी भाषण देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। बसपा प्रमुख मायावती को बताया गया कि उन्हें क्या पहनना है। क्षेत्रीय नेताओं ने विदेशी एजेंसियों को भी नियुक्त किया है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन को मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जींस और टी-शर्ट पहनने को कहा गया।

दिवंगत कांग्रेस नेता राजीव गांधी 1989 का चुनाव 'गली-गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है' जैसे शत्रुतापूर्ण प्रचार नारों के कारण हार गये। बोफोर्स घोटाले ने उन्हें पद से हटा दिया क्योंकि विपक्षी दलों ने उन्हें हथियार बनाने वाली कंपनी से रिश्वत लेने के रूप में पेश करने का माहौल बनाया था।

'पहले मारो, जोर से मारो और मारते रहो' दृष्टिकोण अपनाने वाले उम्मीदवार व्यक्तिगत हमलों और डर की रणनीति में शामिल होते हैं। दस साल के शासन के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सभी समस्याओं के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराना बंद नहीं किया है।

चुनाव आयोग उम्मीदवारों के खर्च को सीमित करता है, लेकिन कई राजनीतिक दल और उम्मीदवार तय राशि से कहीं ज्यादा खर्च करते हैं। वे मतदाताओं का समर्थन जीतने के लिए फोन, नकदी और अवास्तविक वायदे जैसे रिश्वत की पेशकश करते हैं। तमिलनाडु के एक स्वतंत्र उम्मीदवार ने प्रत्येक गृहिणी को चंद्रमा की यात्रा और एक रोबोट देने का भी वादा किया, लेकिन वह जीत नहीं सके।

भारत के 2024 के लोक सभा चुनावों के लिए विज्ञापन की लागत 2000 करोड़ रुपये से 13000 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है। अनुमान है कि राजनीतिक दल और उम्मीदवार विज्ञापन पर $14.4अरब (12 खरब रुपये) से अधिक खर्च कर सकते हैं, जो 2019 के चुनावों के दौरान खर्च की गई राशि से दोगुना है।

राजनीतिक उम्मीदवार अपने अभियान के लिए धन कहां से प्राप्त करते हैं? आमतौर पर, कुछ धनी उम्मीदवार स्व-वित्तपोषण करते हैं, जबकि पार्टी दूसरों के लिए खर्च करती है। पार्टियों की कोई खर्च सीमा नहीं है। हालांकि, समय के साथ काला धन भी मैदान में आ गया है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पारदर्शिता की कमी के कारण चुनाव बांड पर प्रतिबंध लगा दिया है। भाजपा को कुल बेचे गये बांड का 57फीसदी मिला, जिसकी कीमत 1.1 अरब डॉलर थी, जबकि कांग्रेस को केवल 10फीसदी मिला, जिसका मूल्य 1880 लाख डॉलर था।

हालांकि पार्टियां सत्ता में आने के लिए कोई भी तरीका अपनाती हैं, लेकिन कुछ अभियान सफल होते हैं जबकि अन्य विफल हो जाते हैं। किसी नकारात्मक अभियान विज्ञापन की प्रभावशलिता उसकी सामग्री, संदर्भ और दर्शकों की विशेषताओं पर निर्भर करती है। प्रधानमंत्री वाजपेयी का 2004 का 'इंडिया शाइनिंगध करोड़ों रुपये का अभियान एक असफल अभियान का उत्कृष्ट उदाहरण है। कांग्रेस का 2019 का 'चौकीदार चोर है' अभियान का नारा विफल रहा, और राफेल घोटाले पर राहुल गांधी का मोदी पर हमला भी सफल नहीं हुआ। हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का 'आम आदमी' अभियान सफल रहा।

2014 में नरेंद्र मोदी ने खुद को एक राष्ट्रीय ब्रांड के रूप में पेश करके खुद को एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता में बदल लिया। उन्होंने 3डी रैलियों, चाय पे चर्चा, साक्षात्कार और अभियान यात्राओं सहित जनसमूह को संगठित करने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया। यूट्यूब ने राजनीतिक दलों को 30-सेकंड के टीवी विज्ञापनों और लंबे ऑनलाइन वीडियो का उपयोग करके विज्ञापन देने में सफलतापूर्वक सक्षम बनाया है। संक्षेप में, वह कांग्रेस को कोसने से मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रहे।
आम आदमी पार्टी, एक नई राजनीतिक पार्टी, 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान एक मजबूत दावेदार के रूप में उभरी। उन्होंने मोहल्ला अभियान, सोशल मीडिया और आप प्रमुख केजरीवाल वाले रेडियो विज्ञापन का इस्तेमाल किया। आज यह पार्टी पंजाब और दिल्ली दोनों जगह सत्ता में है।

2019 के राजनीतिक अभियान में सभी दलों ने नकारात्मक रणनीति का इस्तेमाल किया। विपक्ष ने भाजपा के हिंदुत्व से प्रेरित कार्यक्रमों की आलोचना की। फिर भी, भगवा पार्टी बढ़ी हुई सीटों के साथ सत्ता में वापस आ गई। मोदी 2024 में 400 से अधिक सीटें जीतने की आकांक्षा रखते हैं।

पिछले साल, भाजपा ने मोदी के प्रचार का एक एआई-जनरेटेड वीडियो तैयार किया था। कांग्रेस पार्टी ने फुटेज का मज़ाक उड़ाया और जवाबी कार्रवाई के लिए अपनी डिजिटल छवि का इस्तेमाल किया। यह वीडियो, जिसमें एक बिजनेस टाइकून को संसाधनों की चोरी करने का प्रयास करते हुए दिखाया गया है, जिसे 15लाख से अधिक बार देखा गया है।

चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के बावजूद, 2024 के चुनावों में संभवत: अधिक नकारात्मक अभियान रणनीतियां दिखाई देंगी। राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को नकारात्मक अभियानों के बजाय सकारात्मक विज्ञापन बनाने चाहिए। इससे लोकतंत्र की रक्षा करने और चरित्र हनन रोकने में मदद मिलेगी। एक समाधान यह है कि पार्टियों को राज्य निधि से धन दिया जाये जैसा कि कई चुनाव आयोगों ने सलाह दिया है। अभियानों में शालीनता एवं मर्यादा बनाये रखना भी आवश्यक है। इससे सभी उम्मीदवारों के लिए एक निष्पक्ष, सम्मानजनक माहौल और समान अवसर बनाने में मदद मिलेगी।


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