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सुप्रीम कोर्ट के लिए यादगार बना 2019

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मुख्य न्यायाधीश कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट के लिए यादगार बना 2019
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नयी दिल्ली। अयोध्या की 206 साल पुरानी कानूनी लड़ाई के पटाक्षेप के लिए 2019 जहां सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में दर्ज हो गया, वहीं शीर्ष अदालत ने देश के मुख्य न्यायाधीश कार्यालय को सूचना के अधिकार कानून के दायरे में रखकर न्यायपालिका में पारदर्शिता को एक नया आयाम देने का प्रयास किया।

साल 2019 में उच्चतम न्यायालय ने कई ऐसे फैसले सुनाए, जो इतिहास बन गये। एक तरफ अदालत ने पूरे देश को आंदोलित करते रहे अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, वहीं राफेल लड़ाकू विमान सौदा मामले में पुनर्विचार याचिकाएं खारिज करते हुए केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ घोटाले के विपक्ष के आरोपों को दरकिनार कर दिया।

तारीखों और तवारीखों के आईने में अयोध्या मसले की कानूनी, पुरातात्विक और आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए शीर्ष अदालत ने विवादित भूमि का कब्ज़ा सरकारी ट्रस्ट को मंदिर बनाने के लिए देने का फैसला सुनाया तथा इसी पवित्र शहर में एक 'प्रमुख' स्थान पर मस्जिद के लिए भी पांच एकड़ ज़मीन आवंटित करने का आदेश दिया।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसा किया जाना ज़रूरी था, क्योंकि 'जो गलतियां की गईं, उन्हें सुधारना और सुनिश्चित करना भी' शीर्ष अदालत का उत्तरदायित्व है।

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मुख्य न्यायाधीश कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाने का भी ऐतिहासिक फैसला सुनाया। न्यायालय ने अपने ही रजिस्ट्रार जनरल की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय को फैसले को चुनौती देने वाली अपील खारिज करते हुए सीजेआई कार्यालय को आरटीआई के तहत आने का फैसला सुनाया। उल्लेखनीय है कि यह फैसला सुनाने वाले न्यायाधीशों में खुद तत्कालीन सीजेआई भी शामिल थे।

2019 के लोकसभा चुनाव में राफेल खरीद करार मामले को तूल देने वाले कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठनों को उस वक्त शीर्ष अदालत से करारा झटका लगा जब उनकी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी गयी। न्यायालय का यह फैसला एक तरीके से मोदी सरकार के लिए क्लीन चिट जैसा था।

न्यायालय ने इसी मामले में 'चौकीदार चोर है' वाली टिप्पणी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फटकार भी लगाई। हालांकि, उसने श्री गांधी के खिलाफ भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की अवमानना याचिका पर कोई कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया, क्योंकि कांग्रेस नेता ने न्यायालय से पहले ही बिना शर्त माफी मांग ली थी।

गौरतलब है कि श्री गांधी ने राफेल मामले में न्यायालय के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के समर्थन में चुनिन्दा दस्तावेज की स्वीकार्यता पर केन्द्र की प्रारंभिक आपत्तियां अस्वीकार करने के शीर्ष अदालत के फैसले के बाद कहा था कि अब तो न्यायालय ने भी मान लिया है कि ‘चौकीदार चोर है।'

केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाले अपने 2018 के ऐतिहासिक फैसले पर दायर पुनर्विचार याचिकाओं को शीर्ष अदालत ने सात सदस्यीय संविधान पीठ के सुपुर्द कर दिया, साथ ही उसने विभिन्न धर्मों द्वारा महिलाओं के साथ किए जाने वाले भेदभाव के मुद्दे को विस्तार देते हुए उन मुद्दों के निर्धारण किये जाने का रास्ता खोल दिया।

न्यायालय ने कहा कि एक बड़ी पीठ को मुसलमान और पारसी महिलाओं के साथ भी होने वाले कथित धार्मिक भेदभाव से निपटने के संबंध में रुपरेखा तय करनी चाहिए। इनमें मस्जिद और दरगाहों में मुसलमान महिलाओं के प्रवेश पर मनाही और गैर-पारसी समुदाय के पुरुष से विवाह करने वाली पारसी महिलाओं को प्रार्थना स्थल अग्यारी में प्रवेश से मनाही जैसे विषयों पर विचार शामिल है।

शीर्ष अदालत ने इस साल कर्नाटक में अयोग्य ठहराए गए 17 बागी विधायकों के मामले में भी अहम फैसला सुनाया। न्यायालय ने जहां विधानसभा अध्यक्ष द्वारा विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को सही ठहराया, वहीं दूसरी सभी 17 बागी विधायकों को उप चुनाव में हिस्सा लेने की अनुमति भी दे दी। न्यायालय ने उन विधायकों को 2023 तक अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को भी निरस्त कर दिया।

न्यायालय ने पूरे देश में नागरिकता संशोधित कानून (सीएए) के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की ज्यादती आदि को लेकर दायर याचिकाओं को संबंधित उच्च न्यायालयों के पास भेज दिया। शीर्ष अदालत ने असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनसीआर) की पूरी प्रक्रिया की निगरानी की।

शीर्ष अदालत ने इस साल महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों पर कड़ा रुख अपनाया। उसने 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार-हत्याकांड के चार दोषियों में से एक की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए मौत की सजा बरकरार रखी।


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