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20 साल पहले शुरू हुई जंग में अब भी जल रहा है इराक

20 साल पहले 20 मार्च को इराक पर अमेरिकी नेतृत्व में हमला हुआ था. इसके नतीजे में देश पर से सद्दाम हुसैन का शासन खत्म हो गया. इसके साथ ही अशांति और अनिश्चितता का एक ऐसा दौर शुरू हुआ जिसका कोई अंत दिखाई नहीं देता.

20 साल पहले शुरू हुई जंग में अब भी जल रहा है इराक
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20 मार्च 2003 को शुरू हुए अमेरिकी हमले के बाद से ही तेल का धनी देश सालों की लड़ाई, कब्जा और खूनी सांप्रदायिक झगड़ों से सहमा हुआ है. युद्ध की 20वीं बरसी पर कोई आधिकारिक जलसा नहीं हुआ. दिखावे के लिए युद्ध तो खत्म हो गया लेकिन इराक के सामने चुनौतियों का अंबार है. राजनीतिक अस्थिरता, गरीबी और भ्रष्टाचार इन चुनौतियों का सबसे बड़ा चेहरा हैं. पड़ोसी ईरान जो शिया बहुल ताकत और अमेरिका का चिर शत्रु है उसकी अब इराक में सबसे ज्यादा चलती है. इराक के शियाओं को अमेरिकी युद्ध ने सुन्नी नेता सद्दाम हुसैन के दमन से मुक्ति दिलाई.

ईरान समर्थित गठबंधन के समर्थन से इराक के प्रधानमंत्री बने शिया अल सुदानी ने रविवार को एक कार्यक्रम में अमेरिकी हमले का नाम तो नहीं लिया लेकिन सद्दाम हुसैन के "तानाशाही शासन के खत्म" होने की बात की. सद्दाम हुसैन को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया और फिर उन्हें फांसी दे दी गयी. हमले की बरसी की पू्र्वसंध्या पर बगदाद कांफ्रेंस में सुदानी ने कहा, "हमें हमारे लोगों की दर्द और तकलीफें याद हैं जो उन सालों में बेकार की लड़ाइयों और तोड़ फोड़ के दौरान उन्होंने झेलीं."

सरकार ने इस मौके पर किसी कार्यक्रम की योजना नहीं बनाई. बगदाद की सड़कों पर सोमवार को रोजमर्रा जैसी ही भीड़ थी. ज्यादातर लोगों का ध्यान रमजान पर है जो इसी हफ्ते शुरू होने वाला है.

23 साल के फादेल हसन पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में हसन ने कहा, "वह एक दर्दभरी याद है. बहुत सारी तबाही हुई और बहुत सारे लोग उसके शिकार बने जिसमें बेकसूर लोग, इराकी और अमेरिकी सैनिक थे."

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ऑपरेशन इराक फ्रीडम

अमेरिकी नेतृत्व में यह युद्ध राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के दौर में हुआ था. अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद से ही इसकी आहट सुनाई देने लगी थी. अफगानिस्तान पर हमले के बाद जॉर्ज बुश और ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने दलील दी कि सद्दाम हुसैन दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा हैं. सद्दाम हुसैन पर महाविनाश के हथियार विकसित करने के आरोप लगाये गये, हालांकि ऐसा कोई हथियार इराक में बरामद नहीं हुआ.

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ऑपरेशन इराकी फ्रीडम में जमीन पर अमेरिका के करीब 1.5 लाख और ब्रिटेन के 40,000 सैनिक थे. इसके अलावा अहम ठिकानों पर लड़ाकू विमानों से बम बरसाये गये. तीन हफ्तों के भीतर सद्दाम हुसैन का शासन खत्म हो गया और हमलावर सेना ने 9 अप्रैल को राजधानी बगदाद पर कब्जा कर लिया. उस दौरान दुनिया भर के टीवी चैनलों पर सद्दाम हुसैन की बड़ी मूर्तियों को गिराते अमेरिकी मरींस की तस्वीरें दिखाई गईं. बुश ने एक अमेरिकी जंगी जहाज से "मिशन पूरा हुआ" का उद्घोष किया.

जंग का नतीजा

हालांकि उसके बाद इराक में जो बड़े पैमाने पर लूटपाट और अव्यवस्था फैली उसका कोई पारावार नहीं. अमेरिका ने इराकी राष्ट्र, सत्ताधारी दल और सैन्य संगठनों को बर्खास्त करने का फैसला किया. इसका नतीजा देश में और लंबी अव्यवस्था के रूप में सामने आई. इराक में उदार लोकतंत्र बहाल करने की अमेरिकी कोशिश जल्दी ही हिंसा और शिया-सुन्नी गुटों के टकराव में बदल गई. 2011 में जब अमेरिकी फौज इराक से वापस गई इस जंग में एक लाख इराकी नागरिकों की जान ले ली थी. इस जंग में अमेरिका के करीब 4500 सैनिकों ने भी जान गंवाई.

इस हिंसा का एक नतीजा सुन्नी चरमपंथियों के संगठन इस्लामिक स्टेट के उभार के रूप में भी सामने आया. इन चरपंथियों की "खिलाफत" इराक और सीरिया में अलग आतंक फैलाया. आखिरकार अमेरिकी नेतृत्व में गठबंधन सेना को उन्हें हराने के लिए वापस आना पड़ा.

आज का इराक

आज के इराक में चुनाव होते हैं, राजनीतिक बहुलवाद को बढ़ावा दिया जाता है और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी आधिकारिक रूप से दी जाती है. हालांकि व्यवहार में इराकी राजनीति अराजक स्थिति में है और देश में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा का बोलबाला है. 2019 में यहां सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए जिसके बाद इराक की सड़कों पर और खून बहा. अक्टूबर 2021 में हुए आम चुनाव में लोगों की भागीदारी काफी कम थी इसके बाद एक बार फिर हिंसा भड़की और साल भर तक सरकार नहीं बन सकी. एक साल के बाद आखिर किसी तरह सरकार का गठन हुआ.

इराक की एक तिहाई आबादी गरीबी में जीने को मजबूर है, सार्वजनिक सेवाएं मोटे तौर पर ठप हैं और ऊर्जा से लबालब भरे होने के बाद भी अकसर बिजली चली जाती है. खासतौर से अत्यधिक गर्मी वाले दिनों में. भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार इराक में हर तरफ हावी है. युवा बेरोजगारी से परेशान हैं.

बगदाद में रहने वाले इंजीनियर अब्बास मोहम्मद कहते हैं कि एक के बाद एक आई सरकारें, "भ्रष्टाचार से लड़ने में नाकाम रही हैं, हम बुरे से और बुरे दौर में जा रहे हैं. किसी सरकार ने लोगों के लिए कुछ नहीं किया." रविवार को सुदानी ने एक बार फिर "भ्रष्टाचार की महामारी से लड़ने" की शपथ ली. हालांकि बगदाद में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मोहम्मद अल असकरी दूसरे इराकियों की तरह कोई उम्मीद रख पाने में नाकाम हैं. असकरी कहते हैं, "सत्ता जाने के बाद हम खुश हुए थे, हमने सोचा कि इराक बेहतर होगा लेकिन अब तक तो केवल तकलीफें ही मिली हैं."


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