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दो संविधान, दो निशान तो चले जाएंगें, पर ‘दरबार मूव’ सालता रहेगा उनको जो धारा 370 के विरोधी थे

 संविधान की धारा 370 को हटा दिए जाने के बाद देश से दो संविधान और दो निशान तो चले गए पर डेढ़ सौ साल से चल रही दो राजधानियों की परंपरा है

दो संविधान, दो निशान तो चले जाएंगें, पर ‘दरबार मूव’ सालता रहेगा उनको जो धारा 370 के विरोधी थे
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जम्मू। संविधान की धारा 370 को हटा दिए जाने के बाद देश से दो संविधान और दो निशान तो चले गए पर डेढ़ सौ साल से चल रही दो राजधानियों की परंपरा अर्थात ‘दरबार मूव’ की परंपरा उनको सालती रहेगी जो धारा 370 का विरोध करते रहे हैं क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश बन जाने क बाद भी यह परंपरा जारी रहेगी, राज्यपाल प्रशासन ने अब ऐसा ऐलान कर दिया है।

धारा 370 को हटाए जाने के बाद से ही ‘दरबार मूव’ को लेकर भिन्न प्रकार की अफवाहें उड़ने लगी थीं। जम्मू वाले इस बात को लेकर खुश थे कि अब ‘दरबार मूव’ से मुक्ति मिल जाएगी। दरअसल कहा यह जा रहा था कि जम्मू व श्रीनगर में दो नागरिक सचिवालय बना दिए जाएंगें। पर बड़ी रोचक बात यह है कि केंद्र शासित प्रदेश में राजधानी का कोई प्रावधान नहीं होने के कारण ‘दरबार मूव’ अर्थात राजधानी स्थानांतरण के प्रावधान को कैसे लिया जाए।

आतंकवाद का सामना कर रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया को कामयाब बनाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस दौरान कड़ी व्यवस्था के बीच सचिवालय के अपने 35 विभागों, सचिवालय के बाहर के करीब इतने ही मूव कायालयों के करीब पंद्रह हजार कर्मचारी जम्मू व श्रीनगर रवाना होते रहते हैं। उनके साथ खासी संख्या में पुलिस कर्मी भी मूव करते हैं।

तंगहाली के दौर से गुजर रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव पर सालाना खर्च होने वाला 300 करोड़ रूपये वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाता है। सुरक्षा खर्च मिलाकर यह 700-800 करोड़ से अधिक हो जाता है। दरबार मूव के लिए दोनों राजधानियों में स्थायी व्यवस्था करने पर भी अब तक अरबों रूपये खर्च हो चुके हैं।

जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरूआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर, जम्मू से करीब तीन सौ किलोमीटर दूरी पर था, ऐसे में डोगरा शासक ने यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा। उन्नीसवीं शताब्दी में दरबार को तीन सौ किलोमीटर दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था। अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्टूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था। जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा।

जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल ले लेकिन दरबार मूव जारी रखा। राज्य में 146 साल पुरानी यह व्यवस्था आज भी जारी है। दरबार को अपने आधार क्षेत्र में ले जाना कश्मीर केंद्रित सरकारों को सूट करता था, इस लिए इस व्यवस्था में कोई बदलाव नही लाया गया है।


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