मोदी सरकार के तीन साल
साइबर हमले के अलावा मोदी सरकार के तीन साल, मध्यप्रदेश सरकार की नर्मदा यात्रा, लालू-चिदंबरम के ठिकानों पर छापे और अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत की जीत जैसे अहम् मुद्दों की हम आईने में इनकी पड़ताल करेंगे

ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम
भय, भूख और भ्रष्टाचार से जूझ रही दुनिया पर अब एक नया खौफ है- साइबर फिरौती का। बीते सप्ताह दुनिया के कई देश और बड़ी-बड़ी कंपनियां इस अत्याधुनिक अपराध की शिकार हुई। साइबर डकैती और फिरौती मांगने का सिलसिला दुनिया के सौ से अधिक देशों में चला। जिसमें कई कंपनियों के कम्प्यूटर्स हैक हुए। दरअसल वॉनाक्राई रैन्समवेयर इन्फेक्शन के जरिए कम्प्यूटरों को बेकार कर दिया गया और फिर उन्हें ठीक करने की रकम मांगी गई।https://www.youtube.com/watch?v=B4s8uJSlYOs&t=1563sयह काम रैन्समवेयर सॉफ्टवेयर से किया गया। इसमें कम्प्यूटर में वायरस आ जाता है और यूजऱ तब तक इसे खोल नहीं पाता जब तक कि वह इसे अनलॉक करने के लिए रैन्सम (फिरौती) नहीं देता। बताया जा रहा है कि कभी अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) ने इस वायरस को इंटरनल ब्लू के नाम से बनाया था। बाद में शैडो ब्रोकर्स नाम के एक ग्रुप ने इसे चुराकर लीक कर दिया, लेकिन एनएसए ने यह बात साइबर हमलों से निपटने में लगे दूसरे लोगों को नहीं बताई। रैन्समवेयर से भारत में अभी तक काफी कम नुकसान हुआ है लेकिन जिस तरह से सबसे ज्यादा आउटडेटेड मशीनें और सॉफ्टवेयर हमारे देश में निरंतर प्रयोग हैं, उसे देखते हुए यह आशंका बनी हुई है कि भारत के लिए यह खतरनाक साबित हो सकता है।
साइबर हमले के अलावा मोदी सरकार के तीन साल, मध्यप्रदेश सरकार की नर्मदा यात्रा, लालू-चिदंबरम के ठिकानों पर छापे और अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत की जीत जैसे अहम् मुद्दों की हम आईने में इनकी पड़ताल करेंगे।भारत सरकार का पूरा फोकस डिजिटल इंडिया पर है। लेकिन जिस प्रकार से साइबर अपराध में इज़ाफा हो रहा है वैसे में साइबर फिरौती जैसे अपराधों से बचने की उसके पास कोर्ई तैयारी है?आधार की अनिवार्यता, डिजिटल लेन-देन, ATM इन सबकी सुरक्षा में भी तो सेंध लगाए जा सकते हैं?
सवालों की यह श्रृंखला अभी और लंबी हो सकती है, लेकिन बीते तीन सालों में यही अनुभव हुआ है कि मोदी सरकार को सवाल अच्छे नहीं लगते। 16 मई 2014 को भाजपा को बहुमत से सरकार बनाने का जनादेश मिला। लोगों ने नरेन्द्र मोदी पर विश्वास जतलाया कि उनके नेतृत्व में सचमुच अच्छे दिन आएंगे। केंद्र सरकार का दावा भी यही है लेकिन जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, भ्रष्टाचार जारी है, बेरोजगारी बढ़ी है, विरोधी विचारों के लिए स्थान सीमित हो रहा है, उच्च शिक्षण संस्थाओं में राजनीतिक दखलंदाजी बढ़ी है, दलितों, अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेला जा रहा है, उसमें सबका साथ, सबका विकास का नारा कहां तक पूरा होता दिखाई दे रहा है?
मोदीजी ने इन तीन सालों में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की, जिसमें पत्रकारों को स्वतंत्र होकर सवाल पूछने की छूट मिलती, अलबत्ता कुछेक मीडिया समूहों को उन्होंने इंटरव्यू दिया। इसके अलावा रेडियो के जरिए मन की बात करते रहे। मोदी जी अपनी बात तो अलग-अलग मंचों और सोशल मीडिया के द्वारा जनता तक पहुंचा देते हैं लेकिन जनता के जिन सवालों के साथ पत्रकार नेताओं के बीच जाते हैं उसका जवाब कैसे मिलेगा..जब आप पत्रकारवार्ता से परहेज़ करेंगे तो?
यह तो जाहिर है कि मोदी सरकार को विपक्ष और विरोध रास नहीं आता है। विपक्षी दलों में कांग्रेस और राजद उनके प्रमुख आलोचक रहे हैं और बीते सप्ताह कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम तथा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच केन्द्रीय एजेंसी ने शुरु की। क्या तीन साल पूरे होने पर मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए ऐसा कर रही है, या इसके राजनीतिक निहितार्थ हैं?
वैसे राजनीति से अब देश की नदियां भी सुरक्षित नहीं हैं। अभी हाल में मध्यप्रदेश में नर्मदा यात्रा का समापन हुआ, जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री ने शिरकत की। इस यात्रा के जरिए नर्मदा नदी को बचाने का संदेश मध्यप्रदेश सरकार देना चाहती थी, सवाल यह है कि क्या इस तरह के सरकारी तामझाम से नदी बचती है, या जनजागरुकता से। अगर सरकार नर्मदा को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है, तो नर्मदा बचाओ आंदोलन की जरूरत क्यों पड़ती है? नर्मदा के किनारे अवैध उत्खनन को रोकने के लिए सरकार कितनी ईमानदारी से काम कर रही है? एक शीतलपेय प्लांट नदी किनारे लगाने की अनुमति दी गई है, क्या यह नदी और समाज के हित में है? नर्मदा के सहारे गुजर बसर करने वालों को उजाड़ दिया गया, जब उसकी संताने ही नहीं बचेंगी तो नदी कैसे जीवित रह पाएगी?
निराशा की तमाम खबरों के बीच एक अच्छी खबर आई हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से। यहां पाकिस्तान में कैद कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगाने के लिए भारत ने मुकदमा दायर किया था, जिसका पहला पड़ाव उसने सफलतापूर्वक पार कर लिया है। न्यायालय का फैसला है कि जब तक जाधव को काऊंसलर एक्सिस नहीं मिलती, तब तक पाकिस्तान उसकी फांसी रोके। भारत इस पहली जीत से खुश है, लेकिन पाकिस्तान को यह फैसला रास नहीं आया उसने दोबारा सुनवाई की याचिका दायर की है।
भारत सरकार को और किस तरह के कदम उठाने चाहिए कि पाकिस्तान कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा रद्द करे।
अब देखना है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान किस्तान पर कितना दबाव बना पाता है। सवाल कुलभूषण जाधव की ज़िन्दगी का है और साथ ही दांव पर लगी भारत की प्रतिष्ठा का भी।


