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बंद पड़ी खदानें ले रही हैं जान

 अस्थायी ली में दी गई खदान से मिट्टी मुरूम के उत्खनन से गहरे गड्ढे जानलेवा बनते जा रहे हैं

बंद पड़ी खदानें ले रही हैं जान
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बिलासपुर। अस्थायी ली में दी गई खदान से मिट्टी मुरूम के उत्खनन से गहरे गड्ढे जानलेवा बनते जा रहे हैं। जिले में अराबों के शासकीय निर्माण कार्य चल रहे हैं। शासन ने जिले के खनिज को आदेश दिया है कि ठेकेदार को अस्थायी लीज पर खदाने दी जाए परंतु उत्खनन के बाद गहरे गड्ढों को पाटने की कोई भी योजना नहीं है।

जबकि ठेकेदारों द्वारा 20 से 30 एकड़ क्षेत्र खोदकर मिट्टी, मुरूम निकाली जा रही है। पचास फीट से ज्यादा गहराई होने के कारण खदाने जानलेवा बन सकते हैं। पहले भी खदानों में बच्चों के डूबकर मरने की घटना हो चुकी है। लेकिन जिला प्रशासन ने उन खदानों की फिलिंग करने का कार्य अभी तक नहीं किया है।

खनिज विभाग ठेकेदार से केवल 50 हजार की राशि जमा करता है। इधर जिले में शासकीय निर्माण कार्य के लिए उत्खनन गाड़ियां खनिजों का उत्खनन रात दिन हो रहा है। जिले में शासकीय निर्माण कार्य के लिए शासकीय जमीन को इतना खोदा जा रहा है कि दस तालाब का निर्माण हो सकता है। क्योंकि ठेकेदार 20 से 30 एकड़ के क्षेत्र में पोकलैंड मशीन से खोदाई करवा रहे हैं। 50 फीट से ज्यादा गहराई तक जमीन खोदी जा रही है। घनी आबादी से लगी भूमि पर भी उत्तखनन का कार्य किया जा रहा है। बंद खदानों के तालाब का रूप लेने के कारण ग्रामीणों द्वारा इसका उपयोग किया जा रहा है। जिसके कारण बच्चे उन खदानों में डूबकर मौत के शिकार हो रहे हैं।

खदानों की फीलिंग करने कोई योजना नहीं

गौरतलब है कि शासन ने गड्ढे पाटने की कोई भी योजना आज तक नहीं बनाई है जबकि जिले में शासकीय निर्माण कार्य को लेकर दर्जनों की तादात में अस्थाई लीज देकर खदानों में उत्खनन का कार्य किया जा रहा है। शासकीय भूमि को खोदने से अरबों का नुकसान होना भी तय है क्योंकि शासकीय भूमि का उपयोग आने वाले समय में होना है।

जब भूमि का उपयोग होगा तो शासन को भूमि पाटने में करोड़ों खर्च करना पड़ेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्खनन का क्षेत्र जानलेवा बनता जा रहा है। हर साल खदानों में डूबने से मौत आंंकड़े में वृद्धि होती जा रही है। लेकिन शासन को चिंता नहीं हे। बंद खदानों को घेराबंदी तक नहीं की जाती है। जिले के सभी बंद खदान खुले में है।

बारिश के दिनों में 35 फीट जल भराव

बरसात में सभी खदानों में 30 से 35 फीट पानी का भंडारण होता है। ग्रामीण बरसात के पानी का उपयोग सालभर करते हैं। ग्रामीण खदानों को तालाब बना देते हैं। खनिज विभाग को ठेकेदारों से अस्थायी लीज में करोड़ों की रायल्टी मिल रही है। शासन को मुनाफा तो दो रहा है परंतु ग्रामीणों के लिए उत्खनन का क्षेत्र खतरनाक बनता रहा जा है।

दर्ज होता है मामला

शासकीय भूमि खदानों का रूप लेती जा रही है। जबकि बंद खदानों में घटना होने पर थाने में एफआईआर शून्य में दर्ज होता है। खदान की घटना में किसी को आरोपी नहीं बनाया जाता। पुलिस प्रशासन भी घटना में कोई कार्रवाई नहीं करता है। बंद खदानों को पटवाने की ग्रामीण सालों से मांग करते आ रहे हैं।


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