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महात्मा गांधी थे महिलाओं को रूढ़ियों और कुप्रथाओं से मुक्त करने के हिमायती

महिलायें आज राष्ट्र निर्माण के कार्य में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं और हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं लेकिन एक समय उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी और कोई कल्पना भी नहीं करता था

महात्मा गांधी थे महिलाओं को रूढ़ियों और कुप्रथाओं से मुक्त करने के हिमायती
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नयी दिल्ली। महिलायें आज राष्ट्र निर्माण के कार्य में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं और हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं लेकिन एक समय उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी और कोई कल्पना भी नहीं करता था कि वे भी स्वतंत्र रूप से काम कर सकती हैं, ऐसे में महात्मा गांधी ने उन्हें आजादी के आंदोलन से जोड़ा तथा सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की।

महात्मा गांधी महिलाओं को रूढ़ियों और कुप्रथाओं से मुक्त करने और स्वतंत्र रूप से व्यक्तित्व विकास के हिमायती रहे। उन्होंने बाल विवाह, पर्दा प्रथा और दहेज जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और घर के बाहर सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की। पहले दक्षिण अफ्रीका में उसके बाद फिर देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं को शामिल किया। महिलाओं में अहिंसा की विशेष शक्ति है — इसे गांधीजी ने जोरदार तरीके से खासकर महिलाओं को अहसास कराया।

गांधीजी ब्रिटेन में मताधिकार हासिल करने के लिए वहां की महिलाओं के आंदोलन से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों के अधिकारों के सिलसिले में 1906 और 1909 में दो बार लंदन का दौरा किया। उन्होंने वहां देखा कि महिलाएं मताधिकार के लिए कैसे अपने अहिंसक आंदोलन को आगे बढ़ा रहीं थीं। गांधी जी ने ब्रिटेन की महिलाओं को बहादुर बताते हुए उनके समर्थन में कई बार अपने अखबार ‘इंडियन ओपिनियन’ में लिखा।

जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा का कहना है कि ब्रिटेन की इन महिलाओं का गांधी जी पर गहरा असर पड़ा। जेल जाने के लिए अपना जीवन और परिवार का त्याग करने की उनकी इच्छा ने उन्हें और साथी भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में इसी तरह का आंदोलन करने की प्रेरणा दी। ब्रिटेन की महिलाओं के संघर्ष ने दक्षिण अफ्रीका में गांधी के प्रदर्शन के तरीके को प्रभावित किया और उनके अपने देश लौटने पर उनके फैसलों को प्रभावित किया जिससे उन्होंने स्वतंत्रता के साथ ही पूर्ण मताधिकार की कांग्रेस की मांग का समर्थन किया।

महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आने से पहले तक आजादी की जो लड़ाई चल रही थी, वह पूरी तरह पुरुष केंद्रित थी। उस समय स्त्रियां विभिन्न सामाजिक बुराइयों से बुरी तरह पीड़ित थीं। छुआछूत के कारण दलित महिलाओं की दशा अत्यंत दयनीय थी। अन्य महिलाएं भी दहेज, बाल विवाह, वैधव्य और पर्दा प्रथा जैसी बुराइयों से त्रस्त थीं। ऐसे में उन्हें स्वतंत्र रुप से काम करने और सभी स्तरों पर समानता का मौका देना तो दूर, उनके बारे में बात तक नहीं की जाती थी।

गांधी जी जब कांग्रेस में सक्रिय हुए तो उन्होंने स्त्रियों को स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ा। देश के विभिन्न शहरों में राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तरों पर अनेक सम्मेलन आयोजित किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि महिलाओं ने शराबबंदी के साथ विदेशी कपड़ों की होली जलाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नमक आंदोलन के दौरान जब गांधी जी गिरफ्तार कर लिए गए तो उनके बाद सत्याग्रह की कमान सरोजिनी नायडू ने संभाली।

गांधी जी के साथ कई ऐसी महिलाएं थीं जो उनके प्रयोग की साक्षी और सहभागी रहीं। इनमें एक रवींद्र नाथ ठाकुर की भांजी सरला देवी थीं, जिन्होंने खादी के प्रचार-प्रसार के साथ गांधी जी की देखभाल की। इनके अलावा राजकुमारी अमृत कौर थीं, जिनकी गांधी जी से पहली मुलाकात 1934 में हुई। नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल गईं और आजादी मिलने पर वह देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं। गांधी जी की निजी डाॅक्टर सुशीला नायर थीं। उनके भाई प्यारेलाल गांधी जी के निजी सचिव थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह कस्तूरबा के साथ जेल गईं।

गांधी जी जिन दो महिलाओं के कंधे पर हाथ रखकर चलते थे। उनमें से एक आभा जन्म से बंगाली थीं। उनकी शादी गांधी के परपोते कनु गांधी से हुई थी। आभा नोआखाली यात्रा में गांधी जी के साथ थीं। आभा के साथ मनु भी थीं। मनु महात्मा गांधी की दूर की रिश्तेदार थीं। वह मनु को पोती कहते थे। आभा और मनु 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी को गोली मारे जाने के समय उनके साथ थीं।

विदेशी महिलाओं में एक बड़े ब्रिटिश अफसर की बेटी मेडलीन स्लेड थीं, जिन्हें गांधी मीराबेन कहते थे। वह प्रसिद्ध लेखक रोम्या रौलां की पुस्तक पढ़कर गांधी जी के साथ उनके आश्रम में रहने आ गईं थीं। इनके अलावा मिली ग्राहम, पोलक सेज, श्लेजिन एस्थ फेरिंग, नीला क्रैम कुकु और माग्रेट स्पीगेल भी थीं।

गांधी जी की महिला सहयोगियों को लेकर कई किताबें लिखी गई हैं लेकिन इनमें उनकी दिनचर्या का जिक्र ज्यादा है लेकिन पूरी मानवता के लिए गांधी जी के प्रयासों में इन महिलाओं के योगदान का आकलन बहुत कम मिलता है। ‘पहला गिरमिटिया’ नाम से गांधी जी पर उपन्यास के लेखक गिरिराज किशोर कहते हैं कि महिलाओं को जितनी स्वतंत्रता गांधी जी ने दी उतनी आधुनिक देश और समाज भी नहीं देते।


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