• पानी पिलाने में भ्रष्टाचार

    राजधानी, शताब्दी और अन्य सुपरफास्ट ट्रेनों में बोतलबंद रेलनीर के बदले साधारण पानी उपलब्ध कराने का घोटाला सामने आने से रेलवे की घटती साख को और धक्का पहुंचा है। यह देश में भाजपा सरकार के सुशासन, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के दावे पर भी प्रश्नचिह्नï खड़ा करता है।...

    राजधानी, शताब्दी और अन्य सुपरफास्ट ट्रेनों में बोतलबंद रेलनीर के बदले साधारण पानी उपलब्ध कराने का घोटाला सामने आने से रेलवे की घटती साख को और धक्का पहुंचा है। यह देश में भाजपा सरकार के सुशासन, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के दावे पर भी प्रश्नचिह्नï खड़ा करता है। लेकिन इन सबसे ज्यादा यह उन करोड़ो यात्रियों के भरोसे को तोड़ता है, जो रेलवे की सुविधाओं के लिए भुगतान करके भी ठगे जा रहे हैं। कई नामी-गिरामी कंपनियों के शीतलपेय, नूडल्स, चाकलेट जैसे खाद्य पदार्थों में कभी कीटनाशक, कभी कीड़े तो कभी हानिकारक रसायन मिलने की घटनाएं पूर्व में घटी हैं। कुछ दिनों के लिए ये खाद्य पदार्थ बाजार से गायब रहते हैं, फिर नए कलेवर और पुरानी धमक के साथ उपस्थित हो जाते हैं। हानिकारक होने पर भी इन्हें पहले कैसे लाइसेंस मिलता रहा, फिर प्रतिबंध के पीछे कैसे खेल रचे गए और दोबारा वापसी किस तिकड़म के साथ हुई, इस खेल को साधारण उपभोक्ता नहींसमझ सकता। इतना अवश्य है कि उस सामान को खरीदने या न खरीदने की आजादी उसे हासिल है, उसके लिए उसने पहले से कोई भुगतान नहीं किया है। लेकिन ट्रेन के सफर में ऐसा नहींहै। यात्रियों से भोजन-पानी की सुविधा का शुल्क टिकट की कीमत में जोड़कर पहले ही ले लिया जाता है। चलती ट्रेन में प्यासे यात्रियों के पास रेलवे द्वारा उपलब्ध पानी पीने के अलावा कोई चारा भी नहींहै। प्लेटफार्मों में भी सार्वजनिक पेयजल बमुश्किल हासिल हो पाता है। रेलयात्रा में सुविधाओं का स्तर पहले ही बहुत गिरा हुआ है। भोजन की गुणवत्ता पर कई शिकायतें आती रहती हैं। स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लेटफार्म से लेकर ट्रेनों तक में गंदगी पसरी रहती है। शौचालय अक्सर इस्तेमाल करने की दशा में नहींरहते। टिकट खरीदने में दलालों का वर्चस्व बरकरार है। ट्रेनों के भीतर सुरक्षा का सवाल जितना गंभीर है, उतना ही बाहर भी है। इन सबका कोई निदान अब तक सामने नहींआया है। अलबत्ता भाजपा ने जब सरकार गठित की थी, तो रेलवे पर कई महत्वाकांक्षी योजनाएं देश को बतलाईं, बुलेट टे्रन से लेकर प्लेटफार्मों के आधुनिकीकरण तक। ये योजनाएं कब मूर्त रूप में आएंगी, इसका कोई पता नहीं, लेकिन फिलहाल जो सुविधाएं हैं, उनमें भी अगर भ्रष्टाचार व्याप्त रहे तो यह रेल मंत्री के लिए बड़ी चुनौती है। सुरेश प्रभु ने जब यह पदभार संभाला था तो उनसे बहुत उम्मीदें बंधी थी। नवाचार की अपेक्षा उनसे की गई, लेकिन अब सबकी निगाह इस पर है कि वे इस घोटाले से कैसे निपटते हैं। रेलवे बोर्ड के आदेश के मुताबिक आईआरसीटीसी साढ़े दस रुपए में रेल नीर की बोतलें निजी सप्लायर्स को मिलनी थी, जिसे वे 15 रुपए में यात्रियों को देते। लेकिन इतना मुनाफा शायद इन व्यापारियों को कम लगा, इसलिए वे बाहर से 6-7 रुपए में सस्ता बोतलबंद पानी लेकर 15 रुपए में उसे बेचने लगे। इस पानी की शुद्धता संदिग्ध है, जबकि आधिकारिक रेलनीर शुद्ध होता है। यात्रियों की सेहत के साथ सप्लायर्स खिलवाड़ करते रहे और कुछ रेल अधिकारी इस भ्रष्टाचार में उनके भागीदार बने रहे। आईआरसीटीसी ने इस ओर रेलवे का ध्यान दिलाया, लेकिन सीबीआई की कार्रवाई के बाद ही शायद रेल मंत्रालय की नींद टूटी। सीबीआई ने रेलवे के दो वरिष्ठ अधिकारियों और एक व्यवसायी को गिरफ्तार किया है। व्यवसायी के पास से 27 करोड़ रुपए नकद बरामद हुए, जिसे गिनने की तस्वीर सोशल मीडिया पर छाई रही। देश देख रहा है कि किस तरह पानी पिलाकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। रेलवे में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने, विदेश निवेश बढ़ाने की बहुत बातें की जा रही हैं। लेकिन ऐसे घोटाले होते रहे तो रेल पटरी पर कैसे आएगी?

अपनी राय दें