• मध्याह्नï भोजन के बदले भोजन भत्ता

    भारत के विद्यालयों में मध्याह्नï भोजन योजना बड़े व्यापक उद्देश्यों के साथ प्रारंभ हुई थी। देश के नौनिहालों को दो वक्त का भोजन ठीक से नसीब नहींहोता, पौष्टिक आहार तो दूर की बात है। ऐसे में पहले उनकी शिक्षा की चिंता की जाए, या पेट भरने की? इस सवाल का हल मध्याह्नï भोजन के जरिए तलाशने की कोशिश की गई।...

    भारत के विद्यालयों में मध्याह्नï भोजन योजना बड़े व्यापक उद्देश्यों के साथ प्रारंभ हुई थी। देश के नौनिहालों को दो वक्त का भोजन ठीक से नसीब नहींहोता,  पौष्टिक आहार तो दूर की बात है। ऐसे में पहले उनकी शिक्षा की चिंता की जाए, या पेट भरने की? इस सवाल का हल मध्याह्नï भोजन के जरिए तलाशने की कोशिश की गई। टीकाकरण, आंगनबाड़ी में बच्चों की देख-रेख जैसी सरकारी योजनाएं पहले से थीं, उसका और विस्तार हुआ मध्याह्नï भोजन योजना से। जिसके तहत सरकारी विद्यालयों में बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाने लगा। कुछ बच्चे शाला में हाजिरी लगवाकर चले जाते थे, चाहे काम पर या खेल के लिए, वे दोपहर के भोजन के लिए रुकने लगे। जो मां-बाप हाथ बंटाने के लिए विद्यालयों से बच्चों का नाम कटवा लेते थे, उनकी संख्या में भी कमी आई। अगर यह सुनिश्चित रहे कि एक वक्त ही सही लेकिन बच्चों को अच्छा, पौष्टिक भोजन भरपेट मिलेगा तो उन्हें मां-बाप जरूर विद्यालय भेजना चाहेंगे, यह सोच इस योजना के पीछे काम कर रही थी। भूख का हल निकल जाए तो पढऩे के बारे में सोचा जा सकता है। यूपीए सरकार द्वारा शुरु की गई मध्याह्नï भोजन योजना का गणित समझना अंतरिक्ष विज्ञान समझने जैसा कठिन नहींहै। लेकिन इस योजना को किस तरह सामाजिक रूढिय़ों, भ्रष्टाचार और राजनीति की भेंट चढ़ाया जा रहा है, वह वाकई समझ से परे है। आखिर बच्चों के मुख से निवाला छीनकर हम भारत के बेहतर भविष्य की कल्पना कैसे कर सकते हैं। मध्याह्नï भोजन योजना से संबंधित खबरों में अक्सर नकारात्मकता के दर्शन होते हैं। कुंभकोणम में विद्यालय में भोजन पकाने के दौरान आग लगने से कई छात्राएं मारी गईं। बिहार में विषाक्त भोजन खाने से कई बच्चे मर गए। कभी मध्याह्नï भोजन में छिपकली निकलती है, कभी सांप तो कभी मरा बिच्छू। कहींविद्यालय के शौचालय के बाहर भोजन पकता है, तो कहींखाने के नाम पर अधपकी रोटियां और पनियल सब्जी परोसी जाती है। जाति और धर्म की बेडिय़ां टूटे, यह उद्देश्य भी मध्याह्नï भोजन योजना में शामिल था। लेकिन कहींनिचली जाति के छात्रों को अलग बिठाया जाता है तो कहींजातिगत भेदभाव के कारण उन्हें प्रताडि़त किया जाता है। दो-चार गैरसरकारी संगठन मध्याह्नï भोजन योजना के संचालन की जिम्मेदारी कहीं-कहींलेते हैं, लेकिन अधिकतर स्थानोंंपर शिक्षकों व ठेके के कर्मियों के भरोसे यह योजना संचालित हो रही है और उसमें नित नए दोष सामने आ रहे हैं। भोजन की गुणवत्ता पर चिंता और सवाल निरंतर बने हुए हैं। इसका जवाब ढूंढने के लिए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने विगत 1 अक्टूबर को एक अधिसूचना जारी की है, जिसके मुताबिक भोजन की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए हर महीने इसके नमूनों की जांच अधिकृत प्रयोगशालाओं में की जाएगी। राज्य का खाद्य व औषधि विभाग माह में एक बार किसी भी विद्यालय से मध्याह्नï भोजन का नमूना लेकर इसे जांच के लिए भेजेगा। इतना ही नहीं, यह भी कहा गया है कि अगर अनाज, ईंधन, रसोईए की अनुपस्थिति या अन्य किसी भी कारण से बच्चों को भोजन उपलब्ध न करा पाने की स्थिति में उन्हें अगले माह की 15 तारीख तक भोजन भत्ता दिया जाएगा। ऐसा खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। जाहिर है, विद्यालयों में साफ-सुथरा, ताजा, पौष्टिक भोजन बनाने और बच्चों को उपलब्ध कराने की कोई गारंटी लेने की स्थिति में सरकार नहींहै, तभी इस तरह के विकल्प आजमाने पर विचार हो रहा है। मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गर्वनेंस। स्टैंडअप इंडिया, स्टार्टअप इंडिया। ये तमाम जुमले यहां आकर बेकार साबित हो जाते हैं। ये कैसी सरकार है जो बच्चों को एक वक्त का खाना ठीक से देने की स्थिति में नहींहै और बातें हो रही हैं कि हम सुई से लेकर जहाज तक सब देश में बनाएंगे। भोजन की गुणवत्ता की जांच होगी, अच्छी बात है। लेकिन भोजन सही नहींहोगा तो क्या बच्चों को पैसे देकर उनकी भूख मिटाई जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो यह अंदेशा हमेशा रहेगा कि इस पैसे को उनके अभिभावक इस्तेमाल करेंगे और मुमकिन है बच्चों का पेट भरने की जगह अपने शौक पूरे करेंगे। कोई इस पैसे से शराब पी सकता है, कोई जुआ खेल सकता है। मान ले कि इस पैसे से बच्चे बाहर भोजन खरीदेंगे, तो उस भोजन की गुणवत्ता कौन परखेगा और क्या बच्चे भोजन की ज्यादा कीमत नहींचुकाएंगे। छह से लेकर चौदह वर्ष की वय के बच्चे भोजन के बदले मिलने वाले पैसे का समझदारी से उपयोग कैसे पर पाएंगे? और सबसे बड़ी बात सर्वोच्च न्यायालय ने बच्चों को भोजन देने का आदेश दिया है अगर उसके बदले पैसे दिए जाएं तो यह आदेश का उल्लंघन होगा। संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

अपनी राय दें