महेश शर्मा बड़े डाक्टर हैं। अपने 30 साल के अनुभव के आधार पर वे कहते हैं कि जब किसी इंसान पर लाठी से हमला किया जाता है तो वह अपना हाथ आगे कर लेता है। ऐसे में पिटने वाले हाथ की पांच-सात उंगलियां फ्रैक्चर हो जाती हैं। दादरी कांड में मृतक अखलाक का बेटा दानिश घायलावस्था में डा.महेश शर्मा के कैलाश अस्पताल में ही भर्ती है। डा.शर्मा का कहना है कि उसके पूरे शरीर में एक भी फ्रैक्चर नहींहै, सिर पर चोट है। उनके मुताबिक भीड़ का मकसद पीट-पीटकर मारना नहींथा। एक अनुभवी डाक्टर ऐसा कह रहा है तो इस उम्मीद के बल पर ही लोग उसकी बात मानेंगे। डा.शर्मा भाजपा के सांसद और केेंद्र सरकार में संस्कृति मंत्री भी हैं। दादरी कांड को किसी साजिश की परिणति वे नहीं मानते। वे कहते हैं कोई भी साजिश दो घंटे में नहींहो सकती। साजिश बनाने में एक महीना लग जाता है, एक पखवाड़ा लग जाता है। केेंद्र सरकार का मंत्री और इलाके का सांसद ऐसा कह रहा है तो इसके पीछे कौन सा अनुभव है, यह जानने की उत्सुकता है। दादरी कांड को डा.शर्मा ने पहले भी हादसा करार दिया था। अब वे गोवध पर लोगों के गुस्से की व्याख्या कर रहे हैं। दादरी कांड में साजिश नहींथी, यह तो उन्होंने कहा ही, यह भी कहा कि साजिश रच कर भीड़ ने ऐसा किया होता तो घटना के वक्त घर में मौजूद अखलाक की 17 साल की बेटी को छुए बिना लौट नहींगई होती। देश के पर्यटन व संस्कृति मंत्री के इस बयान पर उनकी सरकार को शर्म आए न आए, सभ्य समाज के निवासी जरूर शर्मिंदा हैं। अखलाक की मौत न हुई, राजनीति के खिलाडिय़ों को बिसात पर खेलने के लिए नया मोहरा मिल गया। सभी राजनीतिक दलों के बड़े नेता दादरी दर्शन को पहुंच रहे हैं। वे जनप्रतिनिधि हैं, जनता के बीच जाना उनका हक है। लेकिन इस कांड के बहाने लाश पर रोटी सेंकने वाली कहावत वे जिस तरह से चरितार्थ कर रहे हैं, उसे देखकर डर लग रहा है कि सांप्रदायिक वैमनस्य का खौफनाक इतिहास फिर से न दोहराया जाए। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुजफ्फर नगर के दंगों के वक्त अनुभवहीनता से पेश आए, लेकिन यह समय उनकी परीक्षा का है। अखलाक के परिजनों को लखनऊ बुलाकर भेंट करना सही है, लेकिन यह मामला अब महज सांत्वना और मुआवजे का नहींहै। उत्तरप्रदेश के बहाने देश में सांप्रदायिकता की आग को हवा न मिले, यह सुनिश्चित करना उनके हाथों में है। अब तक तो उत्तरप्रदेश सरकार ने इस मामले में ऐसी कोई तत्परता नहींदिखाई कि दादरी की आग पर ठंडा पानी डाला जाए और बात बढऩे न दी जाए। इस स्थिति का लाभ विपक्षी दल खासकर केेंद्र में बैठी भाजपा बखूबी उठा रही है। राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ओवैसी के दादरी जाने पर भाजपा के लोग विरोध के बयान दे रहे हैं, लेकिन मुजफ्फर नगर दंगों के आरोपी भाजपा विधायक संगीत सोम दादरी पहुंचकर कह रहे हैं कि जैसे मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपियों को सरकार हवाई जहाज में बैठा कर ले गई थी, वैसे गाय काटने वालों को ले गई है। इसके अलावा भी कई भड़काऊ बातें उन्होंने कही। इस तरीके से वे बिना किसी जांच और सबूत के पीडि़त परिवार का संबंध सीधे गौवध से जोड़ रहे हैं। क्या अब इलाके के सांसद, देश के संस्कृति मंत्री, अनुभवी डाक्टर डा.महेश शर्मा बताएंगे कि मामले को सांप्रदायिक रंग कौन दे रहा है? एक ओर भाजपा नेताओं के एक के बाद एक आपत्तिजनक बयान आ रहे हैं और दूसरी ओर बड़बोले प्रधानमंत्री, विदेशों में जाकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नरेन्द्र मोदी इस दर्दनाक घटना पर सांत्वना और अफसोस का एक शब्द भी नहींबोल पाए। उनके मन की सारी बातें संवेदनशील सांप्रदायिक मुद्दों पर आकर चुक जाती हैं। जनता याद करे कि पहले भी राजधर्म का पालन उन्होंने नहींकिया था। राजनीतिक दलों और नेताओं से यह उम्मीद रखना अब व्यर्थ है कि इनमें से कोई भी नैतिक साहस दिखाते हुए राजनीति के क्षुद्र स्वार्थों को छोड़कर सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने का काम करेगा। अब यह देश गांधी का नहींरहा जो आजादी का जश्न छोड़कर नोआखाली की गलियों में घूमकर धर्म की आग में झुलसे लोगों का दर्द बांट रहे थे। इस देश को बचाना है, यहां की खूबसूरत गंगा-जमुनी तहजीब को बचाना है तो जनता को ही समझदारी दिखानी होगी।