सुदीर्घ संघर्ष, अथक प्रयत्न व निरंतर जद्दोजहद के बाद आखिरकार नेपाल में नया संविधान लागू हुआ। राजतंत्र की समाप्ति और लोकतंत्र की ओर पहला कदम बढ़ाने में भारत ने नेपाल का भरपूर साथ दिया, सहयोग किया। नेपाल में जल्द से जल्द नया संविधान बने और प्रभाव में आए, इसमें भी भारत ने पूरा साथ दिया। लेकिन अब जबकि संविधान बन गया है, दोनों देशों के बीच अजीब कड़वाहट पनप रही है। दरअसल तराई के मधेसी और थारू लोग नए संविधान में अपने अधिकारों की अनदेखी करने और पहाडिय़ों को अधिक अधिकार संपन्न बनाने का आरोप सरकार पर लगा रहे हैं। इसे लेकर वहां व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं, हिंसक घटनाएं हो रही हैं। अब तक 40 लोगों की मौत हो चुकी है। नए संविधान के विरोध में मधेसी आंदोलन पर भारत के कथित सहयोग का आरोप लग रहा है। नेपाल में भारत विरोधी माहौल तेजी से बन रहा है और वहां के कुछ प्रमुख नेता ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे इस माहौल को और बढ़ावा मिले। दरअसल भारत ने मधेसियों के बढ़ते विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए नेपाल सरकार से इस समस्या का शीघ्र समाधान करने के लिए कहा था। नेपाल के कुछ नेता इसे अपने आतंरिक मामले में दखलंदाजी मानते हैं। वहां के कई प्रमुख अखबारों व सोशल मीडिया में भी भारत की तथाकथित दखलंदाजी की आलोचना हो रही है। भारत और नेपाल के बीच लंबी सड़क सीमा है और यहींसे सामान की आवाजाही होती है। लेकिन आंदोलन के चलते कुछ दिनों से नेपाली सीमा पर भारत से जाने वाले ट्रकों की लंबी कतार लगी है। नेपाल की अर्थव्यवस्था भारत से आने वाले सामान पर बहुत हद तक निर्भर है, फिर चाहे वह खाने-पीने का सामान हो, पेट्रो उत्पाद हों या चिकित्सा सामग्री। नेपाली सीमा पर खड़े 4 हजार ट्रक इस बात का संकेत दे रहे हैं कि वहां सामान की आपूर्ति बाधित हो रही है। नेपाल इसे भारत द्वारा की गई अघोषित आर्थिक नाकेबंदी कह रहा है। जबकि विदेश मंत्रालय के प्रïवक्ता विकास स्वरूप का कहना है कि हम केवल सीमा तक ट्रक ले जा सकते हैं, उसके बाद उन्हें सुरक्षित अपने देश में प्रविष्ट कराना नेपाली सरकार की जिम्मेदारी है। नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी यूएमएल के प्रमुख के पी ओली का कहना है कि हमें भारत से रसोई गैस, सब्जियां, तेल कुछ भी प्राप्त नहींहो रहा। ऐसी दोस्ती हमें नहींचाहिए। भारत पर सीमापार व्यापार के अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन का आरोप लग रहा है। भारत की तथाकथित आर्थिक नाकेबंदी के विरोध में नेपाली छात्रों ने काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन किए, नरेन्द्र मोदी का पुतला फूंका। जाहिर है आम जनता में नाराजगी बढ़ रही है। उधर नेपाल में तेल का संकट गहराता जा रहा है। निजी वाहनों को तेल नहींबेचा जा रहा, केवल सेना, पुलिस व सामान लाने-ले जाने वाले वाहनों को सीमित तरीके से तेल दिया जा रहा है। ऐसी भी खबरें आईं कि भारत से ईंधन अप्राप्ति की दशा में नेपाल चीन से इसकी आपूर्ति करवा सकता है। हालांकि इसकी पुष्टि नहींकी गई। कुल मिलाकर संविधान से उपजे विवाद ने दो पुराने मित्रों के बीच अनावश्यक कटुता उत्पन्न कर दी है। नेपाल या अन्य किसी भी पड़ोसी देश के अंदरूनी मामले में भारत को दखल नहींदेना चाहिए। श्रीलंका में शांति सेना भेजने के असफल, दुख भरे परिणाम हमारे सामने हैं। यह सही है कि मधेसियों की फिक्र भारत को है। लेकिन उनके अधिकारों का हनन न हो, यह सुनिश्चित करने के बेहतर तरीकों व विकल्पों पर भारत को सोचना चाहिए। उधर नेपाल को भी यह विचार करना चाहिए कि नया संविधान किस तरह उसके सभी नागरिकों को समान रूप से बेहतर भविष्य की उम्मीदें बंधाता है। एक वर्ग को प्रसन्न करने में दूसरे वर्ग की उपेक्षा न हो, यह लोकतांत्रिक सरकार का दायित्व होता है। संविधान बनने पर खुशी की जगह दो देशों के बीच कड़वाहट फैल रही है, तो दोनों पक्षों को तटस्थता से विचार करने की जरूरत है।