जब कांग्रेस सत्ता में थी तब प्राय: सहकारी संस्थाओं में उसके लोग थे। सत्ता बदलने के साथ संस्थाओं में लोग भी बदल गए और अब प्राय: संस्थाओं में सत्तारुढ़ भाजपा के लोग हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि सहकारिता के क्षेत्र में सक्रिय नेताओं में ऐसे विरले ही हैं जो अपनी व्यक्तिगत छवि और प्रभाव के बूते इन संस्थाओं के लिए चुने गए हों। सब कुछ राजनैतिक दांव-पेच पर ही चलता रहा है। बिलासपुर सहकारी बैंक का चुनाव इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस बैंक का क्षेत्र चार जिलों तक फैला हुआ है। इन जिलों में करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें आती है, इसलिए इस बैंक की गतिविधियां राजनैतिक दृष्टि से काफी महत्व रखती हैं। कोरबा जिले के रामपुर से चुनकर आए ननकीराम कंवर सहकारिता मंत्री बने तो उन्होंने अपने ही जिले के देवेन्द्र पाण्डेय को इस बैंक का अध्यक्ष बनाने में मदद की। पिछले चुनाव में श्री कंवर चुनाव हार गए और श्री पाण्डेय को राजनैतिक संरक्षण नहीं मिला। कोरबा जिले की जिस सहकारी समिति के सदस्य के रुप में श्री पाण्डेय चुनाव लड़कर अध्यक्ष बने थे उस समिति से ही उनकी सदस्यता खारिज कर दी गई और जिला सहकारी बंैक के संचालक मंडल के लिए उनका नामांकन रद्द हो गया। उन्होंने अपने समर्थक पर दांव खेला और बैंक का अध्यक्ष बनवा दिया। बैंक के नवनिर्वाचित संचालक मंडल की पहली बैठक हो पाती इससे पहले अध्यक्ष का निर्वाचन अवैध पाया गया और पंजीयक सहकारी संस्थाएं ने चुनाव के महीने भर के भीतर ही संचालक मंडल को भंग कर दिया। इस समय कलेक्टर बैंक के प्रशासक हैं। बिलासपुर सहकारी बैंक में कई गड़बडिय़ां सामने आई है, जिससे सरकार की छवि पर भी आंच आ सकती है। ऐसा पहली बार हुआ है जब सहकारिता मंत्री ने बैंक में समीक्षा बैठक ली हो। इससे पता चलता है कि बैंक के चुनाव से लेकर तमाम गतिविधियों पर सरकार की नजर है। बैंक में गलत तरीके से हुईं 126 नियुक्तियां निरस्त कर दी गई हैं और पिछले 7 वर्षों से समितियों का आडिट न होने तथा कैशबुक न लिखे जाने के मामलों की जांच शुरू होने वाली है। सहकारिता मंत्री की पूरे मामले में बड़ी सख्त प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने कहा है कि वे किसी को छोडऩे वाले नहीं है। सहकारिता मंत्री की इस प्रतिक्रिया में देखा जा सकता है कि बैंक और उससे सम्बद्ध समितियों में कितनी गंभीर गड़बडिय़ां हो सकती हैं। धान खरीदी में गड़बड़ी की शिकायतें बिलासपुर संभाग में ही सबसे ज्यादा रही हैं। सहकारी बैंक के अधीन आने वाली 123 समितियों में से 60 संपत्तियां ऐसी हैं, जिनमें गड़बड़ी मिली है। तीन समितियों में कुल खरीदी के करीब 4 फीसदी धान का कोई हिसाब ही नहीं है। सहकारिता मंत्री ने बैंक में समीक्षा बैठक लेकर प्रकट रुप से यह जाहिर भी कर दिया है कि सरकार इन गड़बडिय़ों को हल्के में नहीं ले रही है।