न्यूयॉर्क ! विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र संघ की तुलना वटवृक्ष (बरगद के पेड़) से करते हुए कहा कि इसमें सुधार और विस्तार करने से ही संपूर्ण मानवजाति को शांति एवं न्याय की छाया मिल सकेगी।
श्रीमती स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित करते हुए सुरक्षा परिषद में सुधारों की जाेरदार
वकालत करते हुए कहा कि आखिर 2015 में ऐसी सुरक्षा परिषद कैसे सही काम कर सकती है जो 1945 की भू-राजनीतिक परिस्थियों में गठित हुई है।
उन्होंने कहा कि सयुंक्त राष्ट्र जैसी संस्था के लिए 70 वर्ष का समय एक अलग ही महत्व है। यह समय इसके पुनर्जागरण और बदलाव का समय है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को एक वटवृक्ष के रूप में देखा जाये। पूर्वी देशों की परपंराओं के अनुसार वटवृक्ष विवेक को दर्शाता है लेकिन साथ ही वह किसी के बारे में कोई धारणा नहीं बनाता और सबको अपने में समाहित करता है। वटवृक्ष 70 की उम्र पर भी जवान रहता है। लेकिन इसे लगातार सींचे बिना और इसका विस्तार किए बिना इसके सूख जाने का डर बना रहता है।
श्रीमती स्वराज ने कहा कि ऐसी ही कुछ नियति संयुक्त राष्ट्र की भी है। हमारे सामने एक ऐतिहासिक अवसर है जब हम इस महत्वपूर्ण संस्था में बदलाव को स्वीकार कर सकते हैं या हम इसे गहरे अंधकार में ढकेल सकते हैं जहाँ यह सूख जाएगा। यदि हम इस अवसर का लाभ उठाएँ तो संयुक्त राष्ट्र अपनी पूर्ण क्षमता के साथ विकसित होगा। यह एक ऐसा वटवृक्ष होगा जिसकी छाया के तले मानव जाति शान्ति और सम्पन्नता के साथ रह सकेगी।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आज के विश्व में भी धनी और असरदार राष्ट्राें का प्रभुत्व है। संयुक्त राष्ट्र में सार्वभौमिक समानता के विचार ने विकासशील विश्व को कुछ अनुचित कसौटियों पर सवाल उठाने का मौका दिया है, लेकिन इसने असमानता की इस व्यवस्था में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं किया है जाे एक ऐसे विश्व के लिए बनाई गई थी जो अब अस्तित्व में ही नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर हमें वैश्विक शान्ति, सुरक्षा और विकास के सरंक्षक के रूप में संयुक्त राष्ट्र की प्रधानता और प्रासंगिकता को बनाए रखना है, तो सुरक्षा परिषद् में जल्दी सुधार हमारी सबसे बड़ी जरूरत है।
उन्होंने कहा, “आखिर 2015 में एक ऐसी सुरक्षा परिषद् कैसे हो सकती है जो 1945 की वैश्विक राजनैतिक पृष्ठभूमि को परिलक्षित करती हो। ऐसी सुरक्षा परिषद् कैसे हो सकती है जिसमें अफ्रीका और लातिन अमेरिका के लिए स्थायी सदस्यता का कोई प्रावधान ना हो।” उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद् के निर्णायक तंत्र में और अधिक विकासशील देशों को शामिल करना होगा। हमें इसकी कार्य पद्धति में भी बदलाव लाना होगा, जो अभी पारदर्शी नहीं है और बहुत पुरानी भी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद् में सन्तुलन और वैधता लाकर हम इसकी विश्वसनीयता को पुनः स्थापित कर पाएंगे और इस प्रकार यह समय की चुनौतियों से निपटने के लिए ज्यादा सक्षम सिद्ध होगी।
विदेश मंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता जतायी कि एक वर्ष के प्रयास के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में निर्णय 69/560 के अंतर्गत सर्व सम्मति से सुरक्षा परिषद् के सुधार के लिए विचार-विमर्श का पाठ सामने आ सका है। उन्होंने कहा कि यही पाठ आम सभा के ऐतिहासिक 70वें अधिवेशन की कार्यवाही का आधार होना चाहिए।