तृतीय लिंग समुदाय की मान्यता मिलने के बाद किन्नरों के पक्ष में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अहम फैसला किया है। शहरों में दुकानों के आवंटन में उन्हें दो प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। तृतीय लिंग के रुप में मान्य करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को आम नागरिकों की तरह सभी अधिकार पाने का हकदार माना है और इस दिशा में एक सार्थक कोशिश केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की समिति की अनुशंसा पर दुकानों के आवंटन में उन्हें आरक्षण देकर की गई है। किन्नरों ने अपने अधिकार के लिए जो लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी उसका पूरा लाभ उन्हें मिलने मे कुछ देरी हो सकती है, लेकिन यह अब उनका अधिकार है। अभी किन्नरों के सामने सबसे बड़ी समस्या पहचान की है। कोई तृतीय लिंग समुदाय से है, यह कैसे साबित होगा। सरकार किन्नरों को मेडिकल सर्टिफिकेट दे सकती है, जिसके लिए दिशानिर्देश तय किए जा रहे हैं। हालांकि दुकानों के आवंटन में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के लिए इस तरह का कोई प्रमाण-पत्र मांगा जाएगा या नहीं है, फिलहाल स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण नियमों के अन्तर्गत पिछड़ा वर्ग को मिलने वाला लाभ किन्नरों को देने को कहा है। छत्तीसगढ़ में किन्नर संप्रदाय की संख्या 5 हजार के आसपास है, जो समुदाय की संस्था में पंजीकृत है। कुछ ऐसे भी हो सकते हैं, जो किन्नर के रुप में पहचाना जाना न चाहते हों। अब शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और रोजगार पाने का अधिकार मिल जाने के बाद वे लोग भी सामने आ सकते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार तृतीय लिंग समुदाय के उत्थान के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरुप योजनाएं लागू करने के लिए पूरी गंभीरता से काम कर रही है। अब तक इस समुदाय को आम लोगों की तरह सभी अधिकार नहीं थे। अब विभिन्न आवेदन पत्रों में तृतीय लिंग समुदाय के लिए जगह बनाई गई है और अब वे किसी भी शिक्षा संस्थान में प्रवेश ले सकते हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो सकते हैं। राज्य में इस समुदाय की एक सदस्य यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रही है। इस समुदाय के लोगों को अब तक हम नाच-गाना करने वालों के रुप में देखते रहे हैं, पर अब ये समाज की मुख्यधारा में हैं। शबनम मौसी से शुरु होकर एक किन्नर का राज्य के रायगढ़ नगर निगम के मेयर बनने का सफर बताता है कि तृतीय लिंग समुदाय के रुप में मान्यता मिलने के बाद वे अपने अधिकारों के लिए पीछे नहीं रहेंगे। उनमें न तो योग्यता की कमी रही है और न ही ऊर्जा की। अब तक वे अपने बूते ही अपनी जरुरतें पूरी करते रहे हैं, उनके लिए अब सरकारें भी सोच रही हैं। सामाजिक, राजनैतिक स्तर पर यह एक बड़ा परिवर्तन है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया है।