• इलाज के लिए तरसता हिंदुस्तान

    सात साल के बच्चे अविनाश राउत की डेंगू से मौत के बाद उसके माता-पिता द्वारा की गई आत्महत्या के मामले से देश में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का सवाल फिर ज्वलंत हो उठा है। डेंगू से पीडि़त अविनाश के इलाज के लिए उसके मां-बाप एकअस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहे, हर जगह उन्हें जवाब दिया जाता, इसे किसी बड़े अस्पताल में ले जाइए। ...

    सात साल के बच्चे अविनाश राउत की डेंगू से मौत के बाद उसके माता-पिता द्वारा की गई आत्महत्या के मामले से देश में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का सवाल फिर ज्वलंत हो उठा है। डेंगू से पीडि़त अविनाश के इलाज के लिए उसके मां-बाप एकअस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहे, हर जगह उन्हें जवाब दिया जाता, इसे किसी बड़े अस्पताल में ले जाइए। कहींप्रारंभिक इलाज के बाद उसे ले जाने कहा गया, कहींकहा गया कि आईसीयू नहींहै, कहींकहा गया कि बच्चों के लिए आईसीयू की सुविधा नहींहै, आखिरकार जब उसे तुगलकाबाद के बत्रा अस्पताल में भर्ती किया गया, तो उसकी दशा इतनी बिगड़ चुकी थी कि डाक्टरों के मुताबिक उसका बचना कोई चमत्कार ही होता। उसके रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से गिर रही थी। कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। भीतरी रक्तस्राव प्रारंभ हो गया था। अंतत: इलाज के अभाव में उस मासूम ने दम तोड़ दिया। बच्चे की इस त्रासद मौत को मां-बाप सहन नहींकर सके और अपने निवास की चौथी मंजिल से कूदकर उन्होंने जान दे दी। डेंगू का कहर तीन जिंदगियां लील गया। प्रशासन और सरकार एक हंसते-खेलते परिवार के करुण अंत के बाद हरकत में आए हैं। वह भी शायद मीडिया में इस खबर को लगातार तवज्जो दिए जाने के कारण। अन्यथा पूरे भारत में स्वास्थ्य सेवाएं किस दुर्दशा को प्राप्त हैं, सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केेंद्र कितने अभावग्रस्त, संसाधन, सुविधाविहीन हैं, गांवों में आज भी इलाज के लिए लोग कितना भटकते हैं, यह सब जानते हैं। दशकों से रुग्णावस्था में चल रही चिकित्सा सुविधाओं पर बातें हो रही हैं, लेकिन काम नहींहो रहा। देश में चिकित्सक खूब बन रहे हैं, निजी अस्पतालों की सात सितारा सुविधाएं दुनिया भर में विख्यात हैं, इन सब कारणों से चिकित्सा पर्यटन उद्योग विकसित हो चुका है। किंतु आम जनता अब तक साधारण इलाज पाने के लिए भी संघर्ष कर रही है, विशिष्ट सुविधाओं की तो बात ही छोड़ दें। केेंद्र सरकार और दिल्ली सरकार यानी नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों खुद को जमीन से जुड़ा बताते हैं। जनता का साथी होने का दावा करते हैं। उनके दुख-दर्द दूर करने का वादा करके सत्ता में आए थे। लेकिन उनकी सरपरस्ती में एक बच्चा इलाज के लिए भटकता-भटकता मर जाता है और ये केवल कड़ी कार्रवाई करने की बात ही करते रह जाते हैं। अविनाश मामले में दिल्ली सरकार ने तथाकथित रूप से इलाज से इन्कार करने वाले उन पांच अस्पतालों को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाए। ये बड़े अस्पताल निश्चित ही सशक्त रूप से अपना पक्ष रखेंगे, उनके पास धन और कानूनविदों की टीम का बल है। संभव है वे यह साबित करने में सक्षम हो जाएं कि ऐसा कोई मरीज उनके पास इलाज के लिए लाया ही नहींगया था या उन्होंने इलाज से इन्कार नहींकिया। चिकित्सा के व्यापार में करोड़ों-अरबों कमाने वाले इन अस्पतालों पर कार्रवाई आसान नहींहै, यह सरकार जानती है। ऐसे में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी.नड्डा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन का यह कहना कि दोषियों को बख्शा नहींजाएगा, खोखली बयानबाजी ही लगती है। प्रधानमंत्री तो केवल रैलियों, सभाओं, कार्यक्रमों में ही बोलते हैं। तो लचर स्वास्थ्य सुविधाओं को केन्द्रित कर कोई कार्यक्रम किया जाए, तभी शायद उनके विचार जनता को जानने मिलेंगे। डेंगू के मरीजों को भर्ती किया जाए, ऐसा आदेश तो दिल्ली सरकार ने जारी किया है। लेकिन हकीकत यह है कि केेंद्र व राज्य स्तर पर इस खतरनाक बीमारी से बचाव के एहतियाती कदम नहींउठाए गए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार सक्रिय डेंगू वायरस घातक हैं। लेकिन एम्स जैसे बड़े अस्पताल से लेकर छोटे सरकारी अस्पतालों तक में डेंगू के मरीजों के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहींहै। हर बार अलग वार्ड अस्पतालों में बनाए जाते थे, निदान और जांच के खास इंतजाम होते थे। इस बार ऐसी कोई व्यवस्था नहींहै। अस्पतालोंं में मरीजों की संख्या बढ़ रही है और उस हिसाब से चिकित्सा सुविधाएं नहींहैं। कहींएक बिस्तर पर दो रोगी रखे गए हैं, कहींदवा के लिए लंबी लाइन लगती है। कहींवेतन न मिलने से कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं, तो उससे मरीजों पर दोहरी मुसीबत हो रही है। देश की राजधानी के सरकारी अस्पतालों की बदहाली देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि सुदूर इलाकों के अस्पतालों का क्या हाल होगा? डेंगू के मच्छर हिंदुस्तान की जनता की नियति बतला रहे हैं कि कीड़े मकोड़ों की तरह जीने और शक्तिशाली द्वारा मसल दिए जाने पर मरने के लिए वह मजबूर है।

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