बीमार राज्यों की श्रेणी में शामिल छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश में अब तक सभी परिवार को यह सुरक्षा कवच नहीं मिल पाया है, जबकि ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों में इसकी सख्त जरूरत है। इसी बीच केन्द्र सरकार के सर्वे ने प्रदेश के बीजापुर, दंतेवाड़ा, जशपुर, बिलासपुर और सरगुजा में स्वास्थ्य मानकों में फीसड्डी करार देते हुए विशेष योजना चलाने की तैयारी में है। यह रिपोर्ट प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलने के लिए काफी है। प्रदेश की राजधानी को छोड़ दें तो प्रदेश में कहीं भी गुणवत्ता युक्त अस्पताल नजर नहीं आते हैं। किसी भी प्रकार के हादसे, दुर्घटना या बड़ी बीमारियों का इलाज कराने लोगों को रायपुर ही आना पड़ता है। यहां महंगी दवाएं और खर्चीला इलाज गरीबों का आधा दम पहले ही निकाल लेता है, क्योंकि सरकारी बड़े अस्पताल (अंबेडकर) में पर्याप्त सुविधा का अभाव है एवं यह अस्पताल केवल बीपीएल कार्डधारकों के लिए आरक्षित हो चुका है। सामान्य वर्ग के लोगों को इलाज के खर्च के साथ दवाओं का खर्च भी वहन करना होता है। इसके लिए रमन सिंह सरकार ने स्मार्ट कार्ड जारी किए हैं एवं बीमा राशि 25 से बढ़कर 50 हजार रुपए भी कर दी है, लेकिन 50 फीसदी स्मार्ट कार्ड प्रदेश की ढाई करोड़ से अधिक आबादी को स्वास्थ्य सुरक्षा देने में नाकाम साबित हो रही है। सरकारी अस्पतालों का जो हाल है वह नसबंदी कांड, गर्भाशय कांड, आंखफोड़वा कांड आदि में गई सैकड़ों जानें एवं डॉक्टरों की लापरवाही को दर्शाता है। सरकारी अस्पतालों में हालात ऐसे हैं कि बीमारों के लिए दवा से लेकर मामूली सुई तक अस्पताल प्रबंधन परिजनों से खरीदने कहता है। अस्पतालों में न डॉक्टर है न मशीनें, न दवा फिर लोगों की जीवन रक्षा कैसे हो, यह एक गंभीर प्रश्न है। राज्य सरकार इसमें नाकाम साबित हो चुकी है। अब केन्द्र की योजना बीमार जिलों में कितनी सफल होती है, यह आने वाले समय में नजर आएगा।