• न्यायालयों में होगीं मुदकमे की रिकॉर्डिंग!

    नई दिल्ली ! अदालती कार्यवाही की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का न्यायपालिका लंबे समय से विरोध करती आ रही है, लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय में गत माह एक मुकदमे की सुनवाई की रिकॉर्डिंग कराए जाने से निकट भविष्य में इसके द्वार खुलने की संभावना प्रबल हो गई है।...

    रिकॉर्डिंग के द्वार खुलने की संभावना प्रबल नई दिल्ली !   अदालती कार्यवाही की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का न्यायपालिका लंबे समय से विरोध करती आ रही है, लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय में गत माह एक मुकदमे की सुनवाई की रिकॉर्डिंग कराए जाने से निकट भविष्य में इसके द्वार खुलने की संभावना प्रबल हो गई है। रिकॉर्डिंग के समर्थन वाले प्रस्ताव को लेकर पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति को राजी करने में असफल रही सरकार ने एक बार फिर इसकी वकालत की है। शीर्ष अदालत की ई-समिति के विरोध के बावजूद सरकार की मंशा ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग को पायलट परियोजना के तौर पर अधीनस्थ न्यायालयों में शुरू करने की है। लिक्विडेटर एंजेलो ब्रदर्स से संबंधित मामले में अधिवक्ता दीपक खोसला के आग्रह पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस ने लगभग 45 मिनट चली सुनवाई की रिकॉर्डिंग कराने का आदेश दिया था । इससे सरकार का पक्ष मजबूत हुआ है। कलकत्ता उच्च न्यायालय में हुई इस ऐतिहासिक घटना के परिप्रेक्ष्य में सरकार भविष्य में ई-समिति के समक्ष इस मुद्दे को प्रभावी तरीके से रख सकती है, क्योंकि समिति में एटार्नी जनरल के अलावा तीन अन्य सचिव भी आमंत्रित सदस्य हैं। न्यायपालिका अब तक वीडियो रिकॉर्डिंग के खिलाफ रही है, लेकिन हाल के दिनों में शासन प्रणाली में पारदर्शिता और शुचिता को लेकर अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के लिए उठने वाली आवाज को देखते हुये उसके लिए इसे ज्यादा दिन तक टालते रहना मुश्किल होगा। वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग की याचिका एक उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किये जाने के मामले में यह कहकर हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया था कि अमेरिका में ओजे सिम्पसन मामले में सुनवाई के हुए सीधा प्रसारण पर आज भी बहस जारी है। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण की दलील थी कि जब संसद में होने वाली कार्यवाही की रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जा सकती है, तो अदालत की कार्यवाही के लिए क्यों नहीं? लेकिन शीर्ष अदालत इन दलीलों से संतुष्ट नहीं दिखी थी।  ई-कोट््र्स इंटिग्रेटेड मिशन मोड परियोजना के तहत अदालतों को कंप्यूटीकृत कर दिये जाने से न्यायपालिका की दक्षता में बढोतरी हुई है और विधि मंत्रालय के सूत्रों का मानना है कि ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग से त्रुटियां होने की गुंजाइश कम रहेंगी और बेहतर न्याय का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।  अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही थी, लेकिन अब इस पर अमल करने के जरूरी कारण भी नजर आते हैं। सरकार का मानना है कि कार्यवाही की इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग के परिणामस्वरूप गवाह अपने बयान से मुकर नहीं सकेंगे। गवाहों के बयान फिर से दर्ज कराने के कारण मुकदमों की सुनवाई में देरी होती है और इससे अदालतों में लंबित मामलों की संख्या भी बढ़ती है।


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