• चीन की मंदी का भारत में असर

    2008 में अमरीकी शेयर एवं संपत्ति बाजार में भारी मंदी ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में हाहाकार मचा दिया था। उस संकट से भारत जैसी परंपरागत अर्थव्यवस्था वाले बाजार तो जल्द संभल गए, लेकिन बहुत से तथाकथित संपन्न देशों से चमक-दमक का आवरण हट गया था,...

    2008 में अमरीकी शेयर एवं संपत्ति बाजार में भारी मंदी ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में हाहाकार मचा दिया था। उस संकट से भारत जैसी परंपरागत अर्थव्यवस्था वाले बाजार तो जल्द संभल गए, लेकिन बहुत से तथाकथित संपन्न देशों से चमक-दमक का आवरण हट गया था, जिससे वे आज तक अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। बाजार के चंद बड़े खिलाड़ी अपने तात्कालिक मुनाफे के लिए किस तरह जालसाजी करते हैं और लाखों निवेशकों को नुकसान पहुंचाते हैं, यह खेल तब दुनिया ने देखा था, लेकिन अफसोस कि उससे सबक नहींलिया। अब चीन के बाजार में मंदी का वही इतिहास दोहाराया जा रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का देश चीन एशियाई बाजार में अग्रणी है। भारत समेत एशिया के तमाम देशों में चीन निर्मित सामानों की भरमार रहती है। लेकिन चीन का यह अंधाधुंध निर्यात उसकी अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। पिछले कुछ दिनों से ही यहां के शेयर व संपत्ति बाजार में उतार-चढ़ाव से खतरे की घंटी बजने लगी थी कि मंदी का दौर एक बार फिर आ सकता है। चीनी मुद्रा में युआन के अवमूल्यन से इस आशंका को और बल मिला। बीते शुक्रïवार खराब मैन्यूफैक्चरिंग डेटा आने के बाद चीन के बाजार में 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। स्थिति संभालने के लिए रविवार को 547 अरब डालर के पेंशन फंड को शेयर बाजार में लगाने की अनुमति सरकार ने दी, लेकिन यह दांव भी खोखला साबित हुआ और निवेशक किसी तरह अपने हाथ खींचने की फिराक में हैं। चीन में मंदी का तूफान अमरीका, जापान, हांगकांग और भारत के बाजारों को भी हिला गया। अमरीका में 3.5 प्रतिशत की गिरावट शेयर बाजार में देखी गई, जो पिछले चार साल में सबसे अधिक है। वहींभारत में बाजार का पहला दिन काला सोमवार साबित हुआ। आम जनता प्याज की बढ़ती कीमतों पर आंसू बहा रही है और शेयर बाजार के खिलाड़ी सेंसेक्स के सत्रह सौ अंक नीचे आने से हतप्रभ हैं। भारतीय शेयर बाजार में आए भूचाल से निवेशकों को सात लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। रियलिटी, बैंकिंग और आटो सेक्टर के शेयरों की कीमत एकदम से नीचे आ गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया में घूम-घूम कर निवेशकों को भारत आने का न्यौता दे रहे हैं। भारतीय जनता भी विदेशी कारोबारियों के आगमन पर मुग्ध रहती है कि हमारे देश में इतना विदेशी निवेश है, इतनी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। देश की अर्थव्यवस्था के विकास को हमने विदेशी निवेश से इस तरह जोड़ दिया मानो विदेश का पैसा यहां नहींलगेगा तो विकास होगा ही नहीं। यह चिंता सरकार ने शायद नहींकी कि जब विदेशी कारोबारी पर्याप्त मुनाफा कमाने के बाद अपना निवेश निकाल लेंगे तो क्या होगा। सोमवार को शेयर बाजार में आई गिरावट का एक बड़ा कारण यही था कि विदेशी निवेशकों ने भारी बिकवाली के जरिए बाजार से 2 हजार करोड़ निकाल लिए, जिसका पूरा भार घरेलू बाजार पर पड़ा। ग्रीस का नया बेलआउट पैकेज और तेल की कीमतों में आई गिरावट भी बाजार की वर्तमान दशा के लिए जिम्मेदार हैं। चीन की मंदी का असर भारतीय रुपए पर भी पड़ा और दो साल में पहली बार डालर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन 66 रुपए तक हो गया है। यूं रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि हमारे पास किसी भी स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। रुपए में आई अस्थिरता से निपटने में हम सक्षम हैं। उनके इस आश्वासन के बाद मुमकिन है छोटे निवेशकों को थोड़ी राहत मिले और अभी हुए नुकसान से निपटने की हिम्मत। बड़े निवेशक इस मंदी में भी लाभ लेने का कोई रास्ता निकालेंगे, इसकी पूरी उम्मीद है। लेकिन निवेशकों का भरोसा बाजार से न उठे, यह सरकार को सुनिश्चित करना होगा। अमरीका के बाद चीन की घटना हमारे सामने है। देश में विकास दर बढ़ाने, अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार से भगाने के लिए हम पारंपरिक नियमों का उल्लंघन न करें, न ही खतरों के खिलाड़ी बनने की बहादुरी दिखाएं, अन्यथा दुर्घटना की आशंका बनी रहेगी।

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