कई दिनों की कशमकश, तनातनी, शर्तों और जिदों के बाद भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच तय वार्ता आखिरकार रद्द हो गई। और इस बार जिस कड़वाहट के साथ यह वार्ता रद्द हुई है, उससे यह संकेत निकलते हैं कि अब लंबे समय तक दोनों देशों का एक मेज पर आना कठिन है। बंटवारे के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते तल्ख ही रहे। दोनोंंके बीच कई विषयों पर मनमुटाव इतने गहरे हैं कि उनका हल निकालने के लिए कोई ओर-छोर दिखाई नहींदेता। पाकिस्तान मानता है कि भारत ने उसके साथ प्रारंभ से अन्यायपूर्ण व्यवहार किया है, जबकि भारत पाकिस्तान की ओर से चल रही चरमपंथी, आतंकवादी गतिविधियों से लगातार परेशान व नाराज है। रिश्तों में इतनी कड़वाहट के बावजूद यह तथ्य झुठलाया नहींजा सकता कि दोनों पड़ोसी देश हैं, सीमाएं साझा करते हैं और दोनों ही देशों की जनता शांति चाहती है। युद्ध से दोनों देशों ने अपने नौजवानों को खोया है, लंबे समय तक उसका आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, सो अलग। यह तय है कि लड़ाई से भारत और पाकिस्तान के बीच के विवाद हल नहींहोंगे, इसका एकमात्र रास्ता वार्ता ही है। इसलिए आजादी के बाद से अब तक कई बार भारत और पाकिस्तान विभिन्न स्तरों पर मिलकर बात करते रहे और उसके अच्छे परिणाम भी देखने मिले हैं। लेकिन कोई भी वार्ता तभी सफल हो सकती है, जब दोनों पक्ष ईमानदारी दिखलाएं। समस्याओं का हल निकालने के उद्देश्य से साथ बैठें। फिलहाल जो माहौल है, उसमें यही नजर आ रहा है कि भारत और पाकिस्तान दोनों सरकारें वार्ता तय होने के बावजूद अनिच्छा से आगे बढ़ रही थींऔर इसलिए इसके रद्द होने की आशंकाएं बलवती थीं, जो अंतत: सही साबित हुईं। केेंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया। कश्मीर में बाढ़ के वक्त मदद की पेशकश की। लेकिन संरा में नवाज शरीफ ने कश्मीर का मुद्दा उठाया। फिर नाराजगी इतनी बढ़ी कि नेपाल में सार्क सम्मेलन के दौरान दोनों के लिए एक-दूसरे से औपचारिक अभिवादन भी कठिन हो गया। हाल ही में रूस के उफा में दोनों देशों के प्रधानमंत्री एक बार फिर मिले और तय किया कि आतंकवाद पर दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मिलकर चर्चा करेंगे। दोनों देशों में लाखों मासूम नागरिक आतंकवाद का शिकार हुए हैं और हर बार यह पहले से भयावह रूप में हमारे सामने आ रहा है। हजारों नौजवान आतंकवादियों के चंगुल में फंसकर गुमराह हैं, और इस पर धर्म का मुलम्मा चढ़ाकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है। हमारा भविष्य सुरक्षित रहे, आने वाली नस्लें चैन से सांस ले सकेें, इसके लिए आतंकवाद का खात्मा हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। इसके लिए भारत और पाकिस्तान का एक साथ बैठना जरूरी था। लेकिन अफसोस कि उफा में दिखाई गई प्रतिबद्धता चंद महीनों में ही खोखली साबित हो गई। चर्चा के पहले ही पाकिस्तान ने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मिलने का दांव चला। पिछली बार विदेश सचिव स्तर की वार्ता इस कारण ही रद्द हुई थी। पाकिस्तान की सरकार को अंदाज होगा कि उसके ऐसा करने से भारत आपत्ति जतलाएगा और वार्ता खटाई में पड़ेगी। इधर पंजाब में गुरुदासपुर और उधमपुर में दो आतंकी हमले, एक आतंकी का जिंदा पकड़ाना, सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन और वार्ता में कश्मीर का मुद्दा शामिल करवाने की कोशिश इन तमाम कारणों से भारत सरकार की नाराजगी और बढ़ी और उसने दो टूक कह दिया कि बातचीत केवल आतंकवाद पर होगी। पाकिस्तान सरकार को मानो ऐसे ही किसी जवाब का इंतजार था और उसने भी अपनी नाराजगी दिखाते हुए वार्ता रद्द करने की पहल कर दी। यह रवैया शुतुरमुर्ग की तरह का है कि रेत में सिर घुसा लो, तो अंधड़ दिखेगा ही नहीं। कई असुविधाजनक मुद्दों पर जवाब देने से बचने के लिए पाकिस्तान सरकार वार्ता रद्द करवाना ही चाहती थी, लेकिन भारत को फिर भी उसे वार्ता की मेज पर लाना चाहिए था, ताकि उससे सवाल किए जा सकते। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पाकिस्तान के विशेषज्ञ हैं, वे कुछ बरस वहां रहे भी हैं और आतंकवाद के विभिन्न पहलुओं से भली-भांति परिचित हैं। मुमकिन है बातचीत में वे कुछ ऐसे बिंदुओं तक पहुंचते, जिनसे आतंकवाद के हल में सहायता मिलती। अब जबकि वार्ता रद्द ही हो गई है, संभावनाओं के बहुत से द्वार भी बंद हो गए हैं, इन्हें दोबारा खोलने के लिए नए सिरे से कोशिश करनी होगी।