• उपहार अग्निकांड के सबक

    भारत के सर्वाधिक भीषण अग्निकांडों में से एक उपहार अग्निकांड में 18 साल बाद अंतिम फैसला आ गया है। 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा हाल में बार्डर फिल्म के प्रदर्शन के दौरान आग लगने और फिर भगदड़ मचने से 59 लोगों की मौत हो गई थी व कई घायल हुए थे।...

    भारत के सर्वाधिक भीषण अग्निकांडों में से एक उपहार अग्निकांड में 18 साल बाद अंतिम फैसला आ गया है। 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा हाल में बार्डर फिल्म के प्रदर्शन के दौरान आग लगने और फिर भगदड़ मचने से 59 लोगों की मौत हो गई थी व कई घायल हुए थे। 28 परिवारों ने अपने प्रियजनों को इस लापरवाही जनित दुर्घटना में खोया था। मामला इतना गंभीर था कि इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई। इधर पीडि़तों ने न्याय पाने के लिए एक एसोसिएशन का निर्माण किया। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद 2007 में पटियाला हाऊस कोर्ट में सुशील व गोपाल बंसल समेत 12 लोगों को सजा सुनाई गई। फिर मामला हाईकोर्ट गया, जहां अंसल बंधुओं की सजा दो साल से घटा कर एक साल कर दी गई। सुशील अंसल ने पांच महीने 20 दिन और गोपाल अंसल ने 4 महीने 22 दिन जेल में गुजारे। उपहार हादसा पीडि़त एसोसिएशन व सीबीआई दोनों ने सजा बढ़ाने की अपील सुप्रीम कोर्ट से की। न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र (अब सेवानिवृत्त) की बेंच ने पांच मार्च, 2014 को सुशील अंसल और गोपाल अंसल को दोषी ठहराया था, लेकिन दोनों जज दोषियों को सजा की अवधि पर एकमत नहीं थे। न्यायमूर्ति ठाकुर ने अंसल बंधुओं को एक साल की सजा देने संबंधी हाईकोर्ट के 2008 के फैसले से सहमति व्यक्त की थी, लेकिन न्यायमूर्ति मिश्रा ने सुशील अंसल की उम्र को ध्यान में रखते हुए इस सजा को जेल में बिताई गई अवधि तक सीमित करते हुए गोपाल की सजा बढ़ाकर दो साल कर दी थी। इसके बाद इस मामले को तीन सदस्यीय खंडपीठ के पास फैसले के लिए भेजा गया था। अब न्यायमूर्ति ए आर दवे, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल के खंडपीठ ने सुशील और गोपाल अंसल की जेल में बिताई गई अवधि तक ही उनकी सजा सीमित करते हुए उन्हें  निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर दिल्ली सरकार के पास 60 करोड़ रुपए जमा कराएं। दिल्ली सरकार इस धनराशि का इस्तेमाल कल्याणकारी योजना के लिए करेगी। जेल न जाना अंसल बंधुओं के लिए बड़ी राहत की बात है, वे बड़े उद्योगपति हैं, सो 60 करोड़ का जुर्माना भरना भी उनके लिए कठिन नहींहै। किंतु सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से उपहार हादसा पीडि़त एसोसिएशन ने निराशा व्यक्त की है। 18 साल की कानूनी लड़ाई और इंतजार के बाद दोषियों को जेल भेजे जाने की उम्मीद वे लगाए बैठे थे। चंद लोगों की लापरवाही से जिनके परिजन अकारण मारे गए, उनका रोष स्वाभाविक है। लेकिन यह तथ्य अपनी जगह है कि निचली से लेकर सर्वोच्च अदालत तक सभी फैसले साक्ष्यों व तर्कों के आधार पर हुए हैं, वहां भावनाओं को तवज्जो नहींदी जा सकती। यहां यह भी गौरतलब है कि वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने बुधवार को सुनवाई के दौरान अग्निकांड के लिए दिल्ली विद्युत बोर्ड के कर्मचारियों पर आरोप लगाया और कहा कि सरकारी कर्मचारी होने की वजह से वे बच गए। उन्होंने कहा कि इस हादसे वाले दिन ट्रांसफार्मर में मामूली आग लगी थी और दिल्ली विद्युत बोर्ड ने किसी मिस्त्री को इसे ठीक करने के लिए भेजा था। इस पर पीठ ने कहा-जेठमलानी जी आप दोषसिद्धि के खिलाफ बहस नहीं कर सकते। हम सिर्फ सजा की मात्रा पर आपको सुन सकते हैं। पूर्ववर्ती पीठ ने पहले ही दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। जाहिर है सर्वोच्च न्यायालय से अंसल बंधु दोषी करार दिए गए हैं और अब इस मामले में कोई संदेह नहींकि उपहार अग्निकांड के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। जिन मासूमोंंकी अकाल मौत हो गई, उनका जीवन अब वापस नहींलाया जा सकता, न ही उनके परिजनों के लिए कोई भी मुआवजा दवा का काम कर सकता है। लेकिन अब सरकार व प्रशासन को इतना सुनिश्चित करना चाहिए कि आइंदा किसी की लापरवाही से ऐसे जानलेवा अपराध न हों। उपहार सिनेमा अग्निकांड से कोई सबक नहींलिया गया है, यह जगह-जगह परिलक्षित होता है। सार्वजनिक व निजी इस्तेमाल की कई इमारतों में सुरक्षा मानकों का धड़ल्ले से उल्लंघन होता है। निर्माण व संचालन में गैरजिम्मेदाराना रवैया हमारी आदत में शामिल हो गया है। जब तक चलता है, चलने दो वाली प्रवृत्ति के कारण चीजों को दुरुस्त करना टाला जाता है और जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो त्राहि-त्राहि मचती है। लेकिन हमारी आंखें फिर भी नहींखुलती। कुछ लोगों की मनमानी बहुतों की जान पर भारी नहींपडऩे दी जा सकती, सरकार, प्रशासन और सबसे बढक़र नागरिक समाज को इसके लिए सजग होना होगा।

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