पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाना सरकार के दमनकारी रवैए को लक्षित करता है
प्रीता नायर
नई दिल्ली। लेखिका वेंडी डॉनिजर ने अपनी रचना 'द मेयर ट्रैप' के साथ दोबारा वापसी की है, जो कामसूत्र की ही विवेचना है। एक अमेरिकी बुद्धिजीवी डॉनिजर का विवादों से पुराना नाता रहा है। उनकी पिछली पुस्तक 'हिंदूज-एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' कथित तौर पर हिंदुओं के गलत विवरण के कारण विवादों में रही।
पिछले वर्ष भी कानूनी समझौते के बाद प्रकाशक पेंगुइन इंडिया द्वारा किताब को वापस लिए जाने के बाद सवाल उठे थे।
अपनी नई पुस्तक में डॉनिजर कहती हैं कि कामसूत्र एक महिलावादी रचना है और भारतीय समाज के लिए यह अत्यंत जरूरी है कि वे लैंगिक मुद्दों और सेक्सुएलिटी के प्रति प्रगतिवादी रुख अपनाएं।
डॉनिजर ने एक ईमेल साक्षात्कार में कहा कि भारतीय सरकार असहनशील हो रही है और पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाना सरकार के दमनकारी रवैए को लक्षित करता है।
साक्षात्कार के अंश :
प्रश्न : मांस से लेकर किताबों और पोर्न पर सरकार प्रतिबंध लगाने की मुहिम पर है। आप भी 'हिंदूज-एक वैकल्पिक इतिहास' को लेकर परेशानी में रहीं। इससे आप क्या समझती हैं?
उत्तर : मुझे डर है कि भारत सरकार बेहद असहनशील हो रही है। यह बेहद शर्मनाक है कि भारत एक ऐसी संस्कृति रहा है, जो कला को सहयोग देने के मामले में पहले कभी बेहद खुले विचारों का रहा है, अब वह कला को लेकर बेहद दमनकारी हो गया है। यहां तक कि जब कामसूत्र को रचा गया था, हिंदू समाज मेंऐसे तत्व मौजूद थे, जिसने इसके सिद्धांतों को स्वीकार नहीं किया था।
उपनिवेशवाद हिंदुत्व को लेकर कई प्रकार से दमनकारी रहा, जिसमें देवताओं के पूजन के कामोत्तेजक पहलू का नकारात्मक मूल्यांकन भी शामिल रहा। इसके कारण कई हिंदुओं ने भी हिंदुत्व के इस पहलू के नकारात्मक मूल्यांकन को बढ़ावा दिया। परिणामस्वरूप वर्तमान समय में दुनियाभर में रूढ़िवादी के उत्थान ने उन पुरानी मान्यताओं पर असर डाला, नतीजतन भारत में वर्तमान दौर की दमनकारी नीतियां पनपीं।
प्रश्न : अगर आपके अनुसार, प्राचीन भारत एक स्वतंत्र स्थान था, तो आज यह संकीर्ण क्यों हो गया है? कामसूत्र आधुनिक भारत के लिए कितना उपयुक्त है?
उत्तर : मेरे पहले प्रश्न का उत्तर ही, इसका भी उत्तर है कि भारत हाल ही में इतना संकीर्ण क्यों हो गया है। कामसूत्र वृहद स्तर पर आनंद को अहम मानता है, जिसमें शारीरिक आनंद भी शामिल है। निश्चित तौर पर आज का वैश्विक समाज इन मूल्यों को मानता है। इसलिए आज कामसूत्र पहले से कहीं अधिक अहमियत रखता है। ऐसे समय में जब शारीरिक शोषण भारत में एक चिंतनीय विषय है, यह पुस्तक, जो सेक्सुएलिटी के पहलुओं को लेकर बात करती है, इसे पढ़ना और भी जरूरी हो जाता है। भारत के प्रबुद्ध नेताओं को लोगों को यह जानने देना चाहिए कि कामसूत्र किस प्रकार की पुस्तक है और उन्हें इसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे प्रकृ ति के विषय में सामान्य ज्ञान में वृद्धि होगी, जिसमें शारीरिक संबंधों से संबंधित खतरों के बारे में ज्ञान भी शामिल है।
प्रश्न : कामसूत्र को पुन: लिखने के पीछे क्या उद्देश्य था?
उत्तर : मैं इस बात को लेकर चिंतिंत थी कि कामसूत्र की भारत में काफी अवहेलना की जा रही है और मुझे आशा थी कि इस पुस्तक को लिखकर मैं लोगों को इसकी वास्तविक प्रकृति के विषय में जागरूक कर पाऊंगी। साथ ही उन्हें इसे पढ़ने के लिए तैयार कर पाऊंगी। हिंदू मान्यताओं के कथित 'त्रिगुण' - धर्म, अर्थ और काम में, काम को हमेशा तीसरा और निम्न स्थान दिया गया है। यह ब्राह्मण परंपरा के सांस्कृतिक उत्थान का परिणाम है।
प्रश्न : आप कामसूत्र की एक नारीवादी लेखन के तौर पर विवेचना करती हैं? हम आज के भारत के जाति और वर्ग की वास्तविकताओं को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं?
उत्तर : मुझे लगता है कि महिलाओं के हितों को बढ़ाने के तौर पर यह एकनारीवादी लेखन है, क्योंकि इसके अनुसार परिवार में विवाहित महिलाओं की मुख्य तौर पर आर्थिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, महिलाएं पतियों को छोड़ सकती हैं, अगर वे उनसे सही व्यवहार नहीं करते। शारीरिक गतिविधि में महिलाओं की संतुष्टि महत्वपूर्ण है, शारीरिक संबंध को केवल बच्चे पैदा करने तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। इन सभी मुद्दों को अगर आज गंभीरता से लिया जाए तो भारत में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है। ऐसे विषय जो शारीरिक हिंसा के प्रति आगाह करते हैं, वे भी भारत के लोगों को दुष्कर्म के कारणों से अवगत कराने में मददगार हो सकते हैं और साथ ही इनका सामना करने के लिए कुछ उपाय सुझाने में भी मदद कर सकते हैं।
यह निस्संदेह भारत की महिलाओं के लिए बेहद लाभकारी हो सकता है। जहां तक जाति का सवाल है, कामसूत्र इसे पूर्ण तौर पर व्यर्थ मानता है। यह विशेष तौर पर कहता है कि 'द्विजन्म' वर्ण के लोग ऐसा जीवन जी सकते हैं, जिसका यह विवरण करता है। जाति परंपरा की शक्ति को यह पूरी तरह नकारता है। और हमें आज के दौर में जिस प्रकार की धारणा रखनी चाहिए उसका एक बेहद अच्छा उदाहरण पेश करता है।
कामसूत्र का मुख्य मुद्दा न ही नारीवादी और न ही मानवाधिकार है। लेकिन महिलाओं और सभी जातियों के लोगों के प्रति इसका दुर्लभ स्वतंत्र रवैया, इसे ऐसे लोगों के लिए प्रभावशाली हथियार के रूप में पेश करता है, जो अपने नारीवादी और मानवाधिकारों के लिए सीधे तौर पर लड़ रहे हैं।