कंधे व घसीट कर बस में ठूंसा गया
दौड़ा-दौड़ाकर पिटाई से कई नाले में गिरे
रायपुर ! 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने जमकर प्रहार किया। इसमें कई आदिवासी घायल हो गये। जिन्हें अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था नहीं की गई थी। इस लाठी चार्ज से आदिवासियों में गुस्सा फैल गया और उन्होंने पुलिस पर पथराव करने की कोशिश की। जिन्हें घेरकर खदेड़ दिया। टिकरापारा में पूरा अश्रुगैस का धुआं फैल गया। जिससे आदिवासी इधर-उधर गलियों में भागते नजर आए। पुलिस के प्रहार से कई आदिवासी बेहोश तक हो गए।उल्लेखनीय है कि शासकीय पदों में 32 प्रतिशत आरक्षण सहित 11 सूत्रीय मांग को लेकर आज प्रदेशभर से 30 हजार से अधिक आदिवासी शहर में जुटें। जो निर्धारित कार्यक्रम के तहत गोंडवाना भवन टिकरा पारा पहुंचे। जहां से दोपहर बाद 2 बजे विधान सभा कूच करने की तैयारी थी। आदिवासी जैसे ही विधानसभा घेरने की तैयारी में आगे बढ़े पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की और इन आंदोलनकारियों पर पुलिस ने जमकर बेंत प्रहार किया इससे कई आदिवासी घायल हो गए। पुलिस की इस पिटाई से आदिवासी आक्रोशित हो गए और पुलिस पर पथराव करने की कोशिश की। पुलिस ने फिर आदिवासियों को घेरकर पीटना शुरू किया और अश्रुगैस के गोले छोड़े। इससे आदिवासी तितर-बितर होने लगे और टिकरापारा की सड़कों से घुसने लगे। आंदोलन के संबंध में जानकारी देते हुए सर्व आदिवासी समाज के संयोजक बी.पी एस नेताम एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने बताया कि छत्तीसगढ़ राय में आदिवासी की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत है। जहां के भोले भाले अधिकतर आदिवासी वनांचलों में निवास करते है। जंगलों से ही उनका निस्तार और रोजी-रोटी चलती है। उन्हें शासकीय कार्य वर्ष भर नहीं मिलता किन्तु जितने दिन काम मिलता है उससे 02 रूपये किलो चावल एवं फ्री नमक में अपना गुजारा कर लेते हैं। जो आदिवासी कृषि पर निर्भर है, उनकी खेती की जमीन निजी उद्योगों एवं खदान ठेकेदारों के कब्जे में जा रहा है। हजारों आदिवासी कृषक जमीन से बेदखल होकर या तो विस्थापित हो रहे हैं या पलायन कर रहे है। पॉचवीं अनुसूची एवं पेसा कानून का समुचित पालन नहीं होने के कारण आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों से महरूम हो रहे है। लगातार उपद्रवी तत्वों एवं पुलिस प्रताडना से त्रस्त हो चुके हैं। आखिर वे कहां जायें जहां उनका जीवन शांतिपूर्वक एवं हस्तक्षेपरहित हो। विगत दो-तीन वर्षो से छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए निरन्तर संघर्ष कर रहे है। अनेकों बार शांतिपूर्वक आंदोलन, प्रदर्शन किये समक्ष में चर्चा किये, किन्तु यथोचित प्ररिणाम नहीं मिला। फलस्वरूप आदिवासी में असंतोष व आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इसलिए आज विधान सभा घेराव के माध्यम से मांगों के संबंध में मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित करना चाहते है। अधिसूचित क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची एवं पेसा कानून लागू कर उसका कठोरता से पालन कराया जाय। पंचायतों की तरह स्थानीय निकायों में उनका प्रशासन एवं नियंत्रण कायम किया जाय अर्थात जिन 03 नगर निगमों, 07 नगर पालिकाआें एवं 27 नगर पंचायतों के अध्यक्षों का पद अनारक्षित किया गया है। उसे संविधान के अनुच्छेद 243 (य,ग)के तहत आदिवासियों को दिया जाय। आदिवासियों की पहचान उनके रहन, सहन संस्कृति से होती है, इसमें जल जंगल, जमीन की उनके जीवन का मुख्य आधार है। यदि उससे बेदखल कर दिया जाएगा तो आदिवासियों का अस्तिव मिट जाएगा। अत: अधिसूचित क्षेत्र की भूमि निजी उद्योगों एवं खनिज के लिए अधिग्रहित न किया जाय। शासकीय एवं सार्वजनिक प्रयोजन के लिए आवश्यक होने पर ही उनके पुनर्वास, मुआवजा, नौकरी एवं भागीदारी सुनिश्चित कर अधिग्रहण किया जाय। दिनांक 18 जनवरी 2012 को राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार आदिवासियों का आरक्षण 20से 32 प्रतिशत तो कर दिया गया किन्तु कब से लागू होगा? इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। चुंकि 32 प्रतिशत जनसंख्या वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर है, इसलिये 32 प्रतिशत आरक्षण वर्ष 2001 से लागू किया जाय। उसी वर्ष से आरक्षण रोस्टर में संशोधन किया जावे। इस बीच हुए भर्तियों में 32 प्रतिशत के मान से बैकलाग पद भरे जाय। वर्ष 2011 एवं 2012 के लिए सेवा आयोग द्वारा जारी विज्ञापन में 32 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए संशोधित विज्ञापन जारी किया जावे। न्यायालयीन कार्यवाही से बचाव के लिये शासन की ओर से कोर्ट में केवियेट दायर किया जाय। संविधान के तहत अधिसूचित अनेक आदिवासी जातियों को बाली अथवा लेखन त्रुटियों के कारण जाति प्रमाण पत्र एवं आरक्षण के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है, इनमें संवरा, पथारी, भूमिया, धनगड़, पाव, भतरा, खैरवार, कोंध, धांगर, कोड़ा आदि जातियां सम्मिलित है। शासन इसमें त्वरित कार्यवाही करें। आदिवासी के नाम पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों पर कठोर कार्यवाही किया जावे। उन्हें तत्काल बर्खास्त कर सेवाकाल में हुये भुगतान की संपूर्ण राशि वसूल किया जावे तथा उनके विरूध्द एफ.आई.आर दर्ज कराया जाय।
रायपुर ! 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने जमकर प्रहार किया। इसमें कई आदिवासी घायल हो गये। जिन्हें अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था नहीं की गई थी। इस लाठी चार्ज से आदिवासियों में गुस्सा फैल गया और उन्होंने पुलिस पर पथराव करने की कोशिश की। जिन्हें घेरकर खदेड़ दिया। टिकरापारा में पूरा अश्रुगैस का धुआं फैल गया। जिससे आदिवासी इधर-उधर गलियों में भागते नजर आए। पुलिस के प्रहार से कई आदिवासी बेहोश तक हो गए।उल्लेखनीय है कि शासकीय पदों में 32 प्रतिशत आरक्षण सहित 11 सूत्रीय मांग को लेकर आज प्रदेशभर से 30 हजार से अधिक आदिवासी शहर में जुटें। जो निर्धारित कार्यक्रम के तहत गोंडवाना भवन टिकरा पारा पहुंचे। जहां से दोपहर बाद 2 बजे विधान सभा कूच करने की तैयारी थी। आदिवासी जैसे ही विधानसभा घेरने की तैयारी में आगे बढ़े पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की और इन आंदोलनकारियों पर पुलिस ने जमकर बेंत प्रहार किया इससे कई आदिवासी घायल हो गए। पुलिस की इस पिटाई से आदिवासी आक्रोशित हो गए और पुलिस पर पथराव करने की कोशिश की। पुलिस ने फिर आदिवासियों को घेरकर पीटना शुरू किया और अश्रुगैस के गोले छोड़े। इससे आदिवासी तितर-बितर होने लगे और टिकरापारा की सड़कों से घुसने लगे। आंदोलन के संबंध में जानकारी देते हुए सर्व आदिवासी समाज के संयोजक बी.पी एस नेताम एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने बताया कि छत्तीसगढ़ राय में आदिवासी की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत है। जहां के भोले भाले अधिकतर आदिवासी वनांचलों में निवास करते है। जंगलों से ही उनका निस्तार और रोजी-रोटी चलती है। उन्हें शासकीय कार्य वर्ष भर नहीं मिलता किन्तु जितने दिन काम मिलता है उससे 02 रूपये किलो चावल एवं फ्री नमक में अपना गुजारा कर लेते हैं। जो आदिवासी कृषि पर निर्भर है, उनकी खेती की जमीन निजी उद्योगों एवं खदान ठेकेदारों के कब्जे में जा रहा है। हजारों आदिवासी कृषक जमीन से बेदखल होकर या तो विस्थापित हो रहे हैं या पलायन कर रहे है। पॉचवीं अनुसूची एवं पेसा कानून का समुचित पालन नहीं होने के कारण आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों से महरूम हो रहे है। लगातार उपद्रवी तत्वों एवं पुलिस प्रताडना से त्रस्त हो चुके हैं। आखिर वे कहां जायें जहां उनका जीवन शांतिपूर्वक एवं हस्तक्षेपरहित हो। विगत दो-तीन वर्षो से छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए निरन्तर संघर्ष कर रहे है। अनेकों बार शांतिपूर्वक आंदोलन, प्रदर्शन किये समक्ष में चर्चा किये, किन्तु यथोचित प्ररिणाम नहीं मिला। फलस्वरूप आदिवासी में असंतोष व आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इसलिए आज विधान सभा घेराव के माध्यम से मांगों के संबंध में मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित करना चाहते है। अधिसूचित क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची एवं पेसा कानून लागू कर उसका कठोरता से पालन कराया जाय। पंचायतों की तरह स्थानीय निकायों में उनका प्रशासन एवं नियंत्रण कायम किया जाय अर्थात जिन 03 नगर निगमों, 07 नगर पालिकाआें एवं 27 नगर पंचायतों के अध्यक्षों का पद अनारक्षित किया गया है। उसे संविधान के अनुच्छेद 243 (य,ग)के तहत आदिवासियों को दिया जाय। आदिवासियों की पहचान उनके रहन, सहन संस्कृति से होती है, इसमें जल जंगल, जमीन की उनके जीवन का मुख्य आधार है। यदि उससे बेदखल कर दिया जाएगा तो आदिवासियों का अस्तिव मिट जाएगा। अत: अधिसूचित क्षेत्र की भूमि निजी उद्योगों एवं खनिज के लिए अधिग्रहित न किया जाय। शासकीय एवं सार्वजनिक प्रयोजन के लिए आवश्यक होने पर ही उनके पुनर्वास, मुआवजा, नौकरी एवं भागीदारी सुनिश्चित कर अधिग्रहण किया जाय। दिनांक 18 जनवरी 2012 को राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार आदिवासियों का आरक्षण 20से 32 प्रतिशत तो कर दिया गया किन्तु कब से लागू होगा? इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। चुंकि 32 प्रतिशत जनसंख्या वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर है, इसलिये 32 प्रतिशत आरक्षण वर्ष 2001 से लागू किया जाय। उसी वर्ष से आरक्षण रोस्टर में संशोधन किया जावे। इस बीच हुए भर्तियों में 32 प्रतिशत के मान से बैकलाग पद भरे जाय। वर्ष 2011 एवं 2012 के लिए सेवा आयोग द्वारा जारी विज्ञापन में 32 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए संशोधित विज्ञापन जारी किया जावे। न्यायालयीन कार्यवाही से बचाव के लिये शासन की ओर से कोर्ट में केवियेट दायर किया जाय। संविधान के तहत अधिसूचित अनेक आदिवासी जातियों को बाली अथवा लेखन त्रुटियों के कारण जाति प्रमाण पत्र एवं आरक्षण के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है, इनमें संवरा, पथारी, भूमिया, धनगड़, पाव, भतरा, खैरवार, कोंध, धांगर, कोड़ा आदि जातियां सम्मिलित है। शासन इसमें त्वरित कार्यवाही करें। आदिवासी के नाम पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों पर कठोर कार्यवाही किया जावे। उन्हें तत्काल बर्खास्त कर सेवाकाल में हुये भुगतान की संपूर्ण राशि वसूल किया जावे तथा उनके विरूध्द एफ.आई.आर दर्ज कराया जाय।
उद्योग व्यवसाय में स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता दिया जाय। तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर जिला एवं जनपद स्तर पर जनसंख्या के अनुपात में वर्ष 2001 से आरक्षण रोस्टर बनाकर भरती किया जाय। लघु वनोपज के संग्रहण एवं विनणन में आदिवासियों को पूर्ण अधिकार दिया जाय।बुढ़ा तालाब का नाम पूर्ववत ही रखा जाय एवं रानी दुर्गावती की प्रतिमा को मुख्य चौराहे पर स्थापित किया जावें। 32 प्रतिशत आरक्षण इंजनियरिंग एवं मेडिकल कॉलेजों की भरती में भी लागू किया जाय। राय में स्थापित अर्धशासकीय एवं निजी संस्थाओं में भी लागू करने के लिये आदेश जारी किया जाय। दबंगों एवं राजनीतिज्ञों के दबाव के कारण पीड़ित आदिवासियों को अन्याय का शिकार होपा पड़ता है। अत: सरकार त्वरित कार्यवाही कर दोषियों को शीघ्र दण्डित करे। किसी भी जनजाति के व्यक्ति के साथ ऐसी घटना होने पर समस्त आदिवासी समाज द्वारा सामूहिक आंदोलन किया जावेगा। आदिवासी वर्ग कोई नई मांग नहीं थोप रहे है केवल अपने संवैधानिक अधिकारों का सरंक्षण चाहते हैं। यदि सरकार इसे देने या लागू करने मे असफल साबित होती है, तो सर्व आदिवासी समाज इससे भी उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होगा।