नवापारा-राजिम ! अगर जमात निंदा नहीं करती तो मैं आज इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। उक्त बातें वृंदावन कुंज में रामायण पाठ के लिए नवापारा पधारे दाऊद खां ने पत्रकारों से कही। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपके समाज ने रामायण पाठ के लिए आप पर पाबंदी नहीं लगाई? इस पर उन्होंने कहा कि समाज के लोगों ने तो बहुत विरोध किया, पर मैंने रामायण नहीं छोड़ा। साथ ही उन्होंने यहां तक कहा कि रामायण छोड़ो नहीं तो जमात से बरतरब (बर्खास्त) कर दिए जाओगे तो उन्होंने कहा कि मैं जमात में हूं कहां? जो मुझे बरतरब करोगे। फिर भी मैंने समाज वालों से कहा कि रामायण को हम छोड़ना तो चाहते हैं मगर रामायण हमको नहीं छोड़ती। इस पर उन्होंने बच्चों की शादियों के लिए सामाजिक दिक्कतें आने की भी बात बताई, लेकिन मैं इन बातों से घबराया नहीं। मैं तो यह मानता हूं जो पैदा करता है वह लड़के-लड़कियों का इंतजाम भी करता है और इसी बात को समाज को महसूस कराना चाहता था और मैंने अपनी दो बेटियों और एक बेटे की शादी करके दिखा दिया। हालांकि मेरे बच्चों की शादियों में समाज के 25 प्रतिशत लोग ही शामिल हुए थे मैं इससे भी संतुष्ट था। मैंने अपने बच्चों की शादी के दौरान उनके ससुराल वालों से यह भी कह दिया था कि मैं खाना नहीं खिला सकता भोजन कराऊंगा और मेरे बच्चों के ससुराल वालों ने इस बात को स्वीकार किया और बच्चों की शादी भी हो गई। मेरी दो बेटियां और एक बेटा है जिसमें से एक बेटी के. खान रायपुर में अपर कलेक्टर है तो दूसरी बेटी बगरू निशा सागर में एसडीएम है। लड़का अयूब खां को इन्सपेक्टर की नौकरी मिली थी और उसकी पदस्थापना भी धमतरी में ही हुई थी। लेकिन उसने यह नौकरी छोड़कर एक दुकान का संचालन कर रहा है। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपकी पत्नी ने भी कभी इसका विरोध नहीं किया? इस पर उन्होंने कहा कि न तो मेरी पत्नी को कभी कोई आपत्ति थी और न ही शादी से पहले मेरे ससुर को। शादी के पूर्व मेरे ससुर को इन सब बातों की जानकारी थी। इसके बाद भी उन्होंने अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दिया।जब उनसे पूछा गया कि आप नमाज अदा करते हैं या नहीं? इस पर उन्होंने कहा कि मौलाना साहब ने भी यही बात मुझसे कही थी कि कम से कम नमाज तो पढ़ लिया करो। तब मैंने उनसे कहा कि नमाज होती है, पढ़ी नहीं जाती। मैं तो साल में सिर्फ दो बार नमाज अदा करता हूं पहला ईद में और दूसरा बकरीद में। परिवार के बच्चों ने कभी आपके इस कार्य का विरोध नहीं किया? तब उन्होंने कहा कि जब मेरी पत्नी विरोध नहीं कर पाई तो मेरे बच्चे कैसे विरोध करते। मैं अपना धर्म निभाता हूं बच्चे अपना धर्म निभाते हैं। रामायण की जिज्ञासा आपमें कैसे जागी? इस पर 1983 में शिक्षकीय कार्य से सेवानिवृत्त हुए दाऊद खां ने कहा कि मेरे गुरू शालिग्राम द्विवेदी और पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी की प्रेरणा से मेरी जिज्ञासा रामायण में जागी। उन्होंने कहा कि जब मैं एमए प्रथम वर्ष में था तब मेरे गुरू ने मुझे रामायण की एक गुटका दी और कहा कि इसे रात में पढ़ना। अगर समझ में आए तो ठीक वरना वापस कर देना। मैंने पुस्तक का जैसे ही पृष्ठ खोला उसमें सबसे पहला शब्द शंभु, प्रसाद, सुमति, हीय, हुलसी इन पांचाें शब्दों को पढ़ा। इन पांचों शब्दों में शंभु का अर्थ शंकर, प्रसाद का अर्थ प्रसाद, सुमति का अर्थ अच्छी बुद्धि या सलाह ये तो समझ में आ गया लेकिन हीय और हुलसी ये शब्द का अर्थ समझ नहीं आया और मैंने पुस्तक बंद कर रख दी। लेकिन रात भर मुझे नींद नहीं आई। मैं अपनी कल्पना में खोया रहा और सोचता रहा कि मुझे शिक्षक बनना है और मैं दो शब्दों का अर्थ नहीं खोज पा रहा हूं तो फिर शिक्षक बनकर बच्चों को क्या पढ़ाऊंगा। यह सोचकर मैं रात भर जागता रहा और फिर जब मैंने पुस्तक वापस की तो मैंने अपने गुरूजी से कहा कि मुझे सब कुछ तो समझ में आ गया लेकिन दो शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाया। गुरूजी ने लेकिन शब्द को पकड़ लिया और कहा जिसके मन में लेकिन की जिज्ञासा हो वह सब कुछ कर सकता है और वह जिज्ञासा तुममें नजर आ रही है। गुरूजी ने हीय और हुलसी की परिभाषा बताते हुए कहा हीय यानी हृदय और हुलसी का अर्थ आनंद से है। इसके बाद गुरूजी ने रामायण की तीन परीक्षाएं दिलवाई प्रथमा, मध्यमा और उत्तम। जिसमें मुझे इलाहाबाद से रामायण रत्न की डिग्री भी मिली।