• जोड-तोड में जुटे नेता

    सरकार बनाने की जोड़-तोड़ अब हर घंटे परवान चढ़ रही है। देश की राजधानी में मौसम से ज्यादा पारा सियासत का गर्म है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के शिखर नेतृत्व अब खुद कमान संभाले हुए हैं। ...

    अमिताभ अग्निहोत्री

    नई दिल्ली। सरकार बनाने की जोड़-तोड़ अब हर घंटे परवान चढ़ रही है। देश की राजधानी में मौसम से ज्यादा पारा सियासत का गर्म है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के शिखर नेतृत्व अब खुद कमान संभाले हुए हैं।

    कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यूपीए के नाराज चल रहे क्षत्रपों को मनाने का जतन कर रही हैं, तो राजग के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण अडवानी भी संभावित सहयोगियों से कुशलक्षेम पूछने में व्यस्त हैं। गुरुवार को राजनैतिक पटल पर कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं और संकेत जरूर उभरे हैं। कांगे्रस एकतरफ बसपा के साथ सम्पर्क साध रही है, तो दूसरी तरफ उसे खफा चल रही समाजवादी पार्टी को भी दुलारने-पुचकारने का काम शुरू कर दिया है।

    पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने आज सपा महासचिव अमर सिंह को बकायदा फोन कर कहा कि- भूल-चूक लेनी-देनी। चुनाव के दौरान जो कुछ कहा सुना गया उसे भूला जाना चाहिए। हालांकि दिग्विजय की इस सियासी मुहिम पर अभी अमर सिंह मौन हैं।

    कांग्रेस ने आज एक बात और साफ की कि भाजपा और शिवसेना को छोड़कर उसके दरवाजे सभी दलों के लिए खुले हुए हैं। उधर, सोनिया गांधी ने आज रामविलास पासवान, लालू प्रसाद और शरद पवार से अलग-अलग फोन पर बात कर उनका मिजाज लेने की कोशिश की।

    कल देर शाम पवार ने सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी। लेकिन कांग्रेस की इन कोशिशों को उस वक्त थोड़ा झटका जरूर लगा जब माकपा महासचिव प्रकाश करात ने दो-टूक कह डाला कि वामदल अगर तीसरे मोर्चे की सरकार बनवाने में असफल रहे, तो वे कांग्रेस को समर्थन देने के स्थान पर विपक्ष में बैठना ज्यादा पसंद करेंगे। करात की यह खरी-खरी कांग्रेस के अंक गणित को थोड़ा बिगाड़ती है। इस बीच आज सोनिया गांधी से शंकर सिंह बाघेला और कमलनाथ ने भी मुलाकात की। सुबह पार्टी के शक्तिपीठ यानि दस, जनपथ पर सोनिया ने अपने रणनीतिकारों के साथ एक मैराथन बैठक भी की।


    उधर, भारतीय जनता पार्टी की शिविर में भी आज खासी सक्रियता रही। सुबह और फिर शाम को अडवानी के निवास पर दो बार पार्टी के राजनैतिक प्रबंधक जुटे और सरकार बनाने के अंकगणित और राजनीति शास्त्र दोनों की बारीकियों पर लंबी माथापच्ची की। इस बैठक में भाजपा के अपने बड़े नेताओं के अलावा जयललिता और भाजपा के बीच सूत्र का काम कर रहे एस गुरुमूर्ति भी उपस्थित थे।

    गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी अब दिल्ली आ गए हैं और अब वे सरकार के गठन तक संभवत: यहीं डेरा डालेंगे। मोदी ने बिना किसी लाग लपेट के यह स्वीकारा भी कि वे यहां चुनाव के बाद की राजनैतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने आए हैं। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यालय जाकर संघ के पुरोधाओं के साथ रणनीति पर विचार-विमर्श किया।

    भाजपा के रणनीतिकारों की नजर जयललिता, मायावती, ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू पर है। हालांकि मायावती से दोस्ती के सवाल पर पार्टी विभाजित है। खासतौर पर अध्यक्ष राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश में पार्टी के बड़े नेता कलराज मिश्र इस पक्ष के नहीं हैं कि फिर से एक बार बसपा का दामन थामा जाए। लेकिन सूत्रों की माने तो अडवानी और संघ परिवार का नेतृत्व इस पक्ष का है कि अगर मायावती को साथ लेकर केंद्र में सरकार बनती है, तो यह प्रयोग किया जाना चाहिए।

    भाजपा और कांग्रेस के वाकशूरों ने हालांकि आज मीडिया के सामने फिर यह दावा ठोंका कि उनकी पार्टी ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, लेकिन दोनों के अंत:पुरों से आ रहे संकेत यह बताते हैं कि कहीं न कहीं दोनों में अपने-अपने दावों को लेकर आत्मविश्वास की कमी है।

    कांग्रेस से खिन्न हैं जयललिता!अन्नाद्रमुक की सुप्रीमो जयललिता ने हालांकि अपने सभी विकल्पों को खुला रखा है और वे चुनाव परिणाम आने के बाद खुद दिल्ली प्रवास कर यह फैसला करेंगी कि उनका समर्थन किसके लिए है। लेकिन विश्वस्त सूत्रों की माने तो अम्मा कांग्रेस नेतृत्व से खिन्न हैं। भाजपा इसी के चलते उत्साहित है और उसकी ओर से जसवंत सिंह, एस गुरुमूर्ति  और नरेंद्र मोदी लगातार अम्मा के सम्पर्क में हैं। अन्नाद्रमुक के शिविर से भी यही संकेत हैं कि जया कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा के साथ अधिक सहज हो सकती हैं।

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