• गुमशुदा बच्चों के लिए बनेगा विशेष दस्ता

    बच्चों की गुमशुदगी की बढ़ती घटनाओं से चिंतित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उनकी तलाश...

    प्रत्येक थाने में स्पेशल स्क्वाड बनाए जाए 


    नई दिल्ली, 11 जनवरी । बच्चों की गुमशुदगी की बढ़ती घटनाओं से चिंतित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उनकी तलाश करने के लिए देश भर के हर थाने में विशेष दस्ते बनाने की सिफारिश की है। आयोग ने कहा है कि लापता बच्चों की तलाश करने के लिए पूरे देश में प्रत्येक पुलिस थाने में एक विशेष दस्ता (स्पेशल स्क्वाड) अथवा लापता व्यक्ति डेस्क (मिसिंग पर्सन डेस्क) स्थापित किया जाए। ऐसे हर डेस्क पर एक पंजीकृत अधिकारी हो जो लापता बच्चों से संबंधित मामले दर्ज करे। बच्चों के लापता होने की बढ़ती घटनाओं की जांच के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने सदस्य पीसी शर्मा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी जिसने हाल ही में अपनी सिफारिशें सौंपी हैं। आयोग ने कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो में भी लापता व्यक्ति और बच्चों से संबंधित एक प्रकोष्ठ का गठन किया गया है। यह प्रकोष्ठ तब से काम कर रहा है, लेकिन संसाधनाें के अभाव में जिस परिणाम की इससे उम्मीद थी वह नहीं मिल पाए। आयोग ने सुझाव दिया है कि सीबीआई लापता बच्चों और लोगाें से संबंधित आपराधिक मामलाें की जांच को तेज करने और आपसी समन्वय स्थापित करने के लिए इस प्रकोष्ठ को और मजबूत करे। समिति का विचार है कि अगर मामलाें की लगातार तथा गंभीरता पूर्वक निगरानी की जाए तो बड़ी संख्या में लापता बच्चों को तलाश करके वापस उनके घर भेजे जाने में सफलता मिल सकती है। उसने संबंधित अधिकारियाें से अपील की है कि वे जिला प्रशासन में अपनी जिम्मेदारी में लापरवाही बरतने वालाें को जवाबदेह ठहराएं। सिफारिश में यह भी कहा गया है कि प्रदेश पुलिस मुख्यालयाें को एक ऐसी प्रणाली विकसित करनी चाहिए जो आवश्यक रूप से देश में बच्चों के लापता होने की घटना की जानकारी घटना होने के 24 घंटे के भीतर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भेजे। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को लापता बच्चों का पता लगाने के लिए एक राष्ट्रीय निगहबानी प्रणाली (नेशनल ट्रैकिंग सिस्टम) स्थापित करने का भी आयोग ने सुझाव दिया है। आयोग ने बच्चों के लापता होने के संबंध में पंचायती राज संस्थानाें और गैर सरकारी संगठनाें की भी बड़ी भूमिका निभाने की सिफारिश की है। उसने अपनी जांच में यह भी पाया कि उचित निगरानी और जांच के अभाव में बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी की घटनाएं आए दिन बढ़ती जा रही हैं। उसने कहा कि बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी की जितनी घटनाएं सामने आती हैं और नियोक्ता के खिलाफ मुकदमे चलाए जाते हैं, उनमें एक फीसदी से भी कम लोगाें को सजा मिल पाती है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। ऐसा निगरानी की कमी के कारण होता है। 

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