• राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय : गांधी का चरखा, गोडसे की पिस्तौल भी

    नई दिल्ली ! महात्मा गांधी इस युग के एक मात्र ऐसे व्यक्ति रहे हैं, जिनके जीवन में हर रंग, भाव, रस देखे जा सकते हैं।...

    राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय : गांधी का चरखा, गोडसे की पिस्तौल भी

    नई दिल्ली !   महात्मा गांधी इस युग के एक मात्र ऐसे व्यक्ति रहे हैं, जिनके जीवन में हर रंग, भाव, रस देखे जा सकते हैं। उनका जीवन अपने आप में पूर्ण था, हो न हो इसीलिए वह महात्मा भी बन पाए, और शायद इसीलिए उन्होंने कहा- मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। आम तौर पर उनका जीवन शांति और अहिंसा की एक यात्रा के रूप में देखा जाता है, लेकिन उस शांति को हासिल करने के लिए उन्हें खुद सीने पर गोली खानी पड़ी थी। अहिंसा के इस साधक का अंत हिंसा की बारूद से हुआ था।

    राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के राजघाट स्थित राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय गांधी के जीवन के इन तमाम रंगों की कहानी बयान करता है। शांति और अहिंसा के चरखे से लेकर नाथू राम गोडसे की वह पिस्तौल भी यहां है, जिससे निकली तीन गोलियों ने इस महात्मा को शरीर से मुक्त कर दिया था। इन दो वस्तुओं को प्रतीक मान लें, तो इस बीच गांधी के जीवन में उनके द्वारा इस्तेमाल की गई लगभग हरेक वस्तु यहां संग्रहीत है।

    संग्रहालय के निदेशक ए. अन्नामलाई बताते हैं कि कोई 400 से अधिक वस्तुएं संग्रहालय में मौजूद हैं, लेकिन सीमित दीर्घा के कारण उनमें से मात्र 10 प्रतिशत ही आमजन के दर्शन के लिए प्रदर्शित हैं। गांधी का मूल हथियार चरखा तो आमजन के दर्शन के लिए उपलब्ध है, लेकिन गोडसे की हिंसक पिस्तौल कड़ी सुरक्षा के बीच ताले में बंद है। अलबत्ता उस पिस्तौल से निकली गोलियां, और उसकी वजह से छिटके खून से लाल हुई गांधी की सफेद चादर लोगों के दर्शन के लिए उपलब्ध है।

    वर्ष 1948 में गांधीजी की शहादत के तत्काल बाद एक विनम्र प्रयास के तौर पर उनसे जुड़ी वस्तुओं को संग्रहीत करने का विचार तत्कालीन गांधीवादियों, राजनेताओं के मन में आया और तत्काल यह काम शुरू हो गया। लेकिन मौजूदा गांधी संग्रहालय आधिकारिक रूप से 1961 में शुरू हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने राजघाट स्थित इस संग्रहालय भवन का उद्घाटन किया था।

    अन्नामलाई बताते हैं कि यह संग्रहालय देश के अन्य संग्रहालयों से अलग है, क्योंकि न तो इसे सरकार ने स्थापित किया, और न ही इसे सरकार संचालित करती है। उन्होंने कहा, "इसकी स्थापना में वे सभी लोग शामिल रहे, जो आजादी के आंदोलन के बाद सरकार में शामिल हुए थे। लेकिन चूंकि महात्मा गांधी सरकार से अलग थे, लिहाजा लोगों ने तय किया कि गांधी का संग्रहालय भी सरकार से अलग होगा, और यह जनता के धन से तैयार होगा।" संग्रहालय के लिए लोगों की ओर से दान किए गए कुछ सिक्के अभी भी दीर्घा में दर्शन के लिए मौजूद हैं।

    संग्रहालय में सिर्फ गांधीजी की ही स्मृतियां नहीं हैं, बल्कि उनकी पत्नी कस्तूरबा की यादें भी यहां संरक्षित हैं। गांधी द्वारा जीवन में इस्तेमाल की गईं वस्तुएं हैं, तो उनके द्वारा लिखे साहित्य, पत्र, और प्रकाशित पत्रिकाएं भी हैं। छाया चित्र हैं, तो चित्रकारों द्वारा तैयार की गई पेंटिंग्स भी हैं। एक चित्रकार द्वारा खुद के खून से बनाई गई गांधी की पेंटिंग देख कोई भी भावुक हो सकता है।

    अन्नामलाई बताते हैं, "हमारे पास बहुत सारे दस्तावेज, वस्तुएं, छाया-चित्र, वीडियो हैं। हम इन्हें लेकर प्रासंगिक कार्यक्रम तैयार करते हैं और उसे सहज रूप में आमजन के लिए पेश करते हैं।" उन्होंने कहा कि संग्रहालय गांधी के पूरे जीवन को डिजिटल रूप में आमजन के लिए पेश करने जा रहा है, जिसपर काम शुरू हो चुका है। यह बिक्री के लिए भी उपलब्ध होगा।

    चरखा गांधी का मूल औजार था, जिसके जरिए उन्होंने अंग्रेजों की तोप का मुकाबला किया था, और देश को आजादी दिलाई थी। चरखे के लिए संग्रहालय में एक अलग दीर्घा है। दीर्घा में चरखे के विकास और इसके इतिहास को दर्शाया गया है। गांधी, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद और अन्य नेताओं के हाथों कते सूत यहां उपलब्ध हैं।


    छाया-चित्रों का यहां अद्भुत संकलन है। गांधीजी के बाल्यावस्था से लेकर उनकी मृत्यु तक के 300 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं, जबकि कुल 6,000 छाया-चित्र यहां उपलब्ध हैं। गांधी का चश्मा, माईक्रोस्कोप, कलाई घड़ी, चप्पल, बर्तन, किताबें, डायरियां, दांडी यात्रा के दौरान इस्तेमाल की गई छड़ी, सबकुछ यहां संरक्षित है।

    विभिन्न राष्ट्रों द्वारा गांधी के सम्मान में जारी डाक टिकट, भारतीय रुपये व सम्मान-पत्र भी यहां देखे जा सकते हैं।

    संग्रहालय में शहादत (बलिदान) दीर्घा में विचित्र-सी शांति है। यहां पहुंचते ही किसी का भी गला रुध जाए। अस्थि कलश, खून से सनी चादर व घोती, गांधी के सीने को छलनी कर गई एक गोली (कारतूस) उस 30 जनवरी, 1948 की महात्रासदी को बयान करते हैं। बगल में जेब घड़ी भी पड़ी है, जो जीवन के अंतिम क्षण में गांधी के साथ थी।

    पुराने अखबारों की कतरनें, देश और विदेश से गांधी के बलिदान पर भेजे गए संदेश और उनके प्रिय भजन भी यहां उपलब्ध हैं।

    गांधीजी ने अपने जीवनकाल में पांच आश्रम स्थापित किए थे, जिनकी तस्वीरों के साथ फीनिक्स, साबरमती तथा सेवाग्राम आश्रमों की प्रतिकृतियां यहां उपलब्ध हैं।

    संग्रहालय में एक समृद्ध पुस्तकालय भी है। यहां कोई 45,000 पुस्तकें हैं, गांधी जी द्वारा लिखी गईं, और गांधी पर लिखी गईं। गांधीजी द्वारा प्रकाशित सप्ताहिक पत्रों का संग्रह, दुनिया के प्रसिद्ध नेताओं से हुए उनके पत्र-व्यवहारों की छाया प्रतियां आमजन के लिए उपलब्ध है।

    अन्नामलाई ने कहा कि गांधी के पत्रों को डिजिटल रूप में तैयार कर लोगों को निजी संदर्भ के लिए भी उपलब्ध कराने की योजना है।

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