• मणिपुर के उग्रवादी नेता भी उतरेंगे चुनाव में

    रायपुर । मणिपुर में दो दशक से अधिक समय तक उग्रवाद की काली छाया के बाद अब वहां शांति है।...

    मणिपुर के उग्रवादी नेता भी उतरेंगे चुनाव में

     मणिपुर से लौटकर ओपी मिश्रा रायपुर । मणिपुर में दो दशक से अधिक समय तक उग्रवाद की काली छाया के बाद अब वहां शांति है। अगले वर्ष जनवरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं नेपाल की तर्ज पर यहां के उग्रवादी नेता भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने वाले हैं यहां की जनता को अब गन कल्चर से मुक्ति मिल गई है। 16 वर्ष तक इस्पा कानून को लेकर अनशन करने वाली शर्मिला इरोम भी चुनावी तैयारी में जुटी है। मणिपुर की सीमा पड़ोसी देश म्यामार से मिलती है। मुरे में इंटरनेशनल मार्केट है। कम्बोडियम व चीन में बने उत्पादों की यहां भरमार है। मणिपुर का व्यापार इसी पर आश्रित है। लंबे समय से नागा व कुकी समुदाय के बीच चली आ रही लड़ाई खत्म हो गई है। इनर लाइन परमिट के मुद्दों पर दोनों संगठन एकजुट हो गए हैं। मणिपुर में मुख्य रूप से धान की खेती होती है पहाड़ों को काटकर खेती करने के योग्य बनाया गया है। पांच हजार इंटरनेशनल दूरिस्ट पिछले वर्ष यहां आए थे। मणिपुर को भारत से अलग करने की मांग को लेकर अलगाववादियों ने हथियार उठा लिए थे। कुकी समुदाय (आदिवासी) के विरोध के चलते यहां अशांति पैदा हो गई। इससे निपटने सरकार ने नागा आदिवासियों को हथियार उपलब्घ कराया। 1980 में यहां पूरी तरह से गन कल्चर हावी हो गया। 30 लाख की आबादी वाले मणिपुर में करीब 70 हजार सरकारी अधिकारी कर्मचारी है। 1980 -90 के दशक में यहां के उग्रवादी खुले आम सरकारी कर्मचारियों से वेतन का 2 प्रतिशत टैक्स के रूप में वसूल करते थे। चाहे कलेक्टर हो या एसपी उनके वेतन से सीधे यह राशि टे्रजरी से काट ली जाती थी। इस रकम को उग्रवादी संगठनों के हवाले दिया जाता था। 1997 तक वसूली का दौर जारी रहा। इस बीच केन्द्र सरकार ने सीधे पंचायतों के खाते में राशि देना प्रारंभ किया। इससे यहां भी परिवर्तन आया। उग्रवादियों ने कर्मचारियों से 2 फीसदी राशि वेतन लेना बंद कर दिया। जनता व सरकारी अफसरों से वसूली की गई राशि के बंटवारे को लेकर उग्रवादी नेताओं में मतभेद के कारण धीरे-धीरे  नागा उग्रवादी 4 गुटों में तथा कुकी उग्रवादी 17 धड़ों में बंट गया। इससे उनकी ताकत विखर गई। 2002 में यहां सरकार ने स्थिरता आई। बदले हालातों में उग्रवादी नेताओं ने सरकारी कार्यों के निर्माण का ठेका लेना शुरू कर दिया। जिससे अधिकांश बड़े ठेकेदार व पैसे वाले बन गए। मणिपुर में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव में वे किस्मत आजमाने वाले हैं। मणिपुर में बाहर से आकर कई समाज के लोग बस गए। स्थानीय व बाहरी के मुद्दे को लेकर भारी विरोध है वे वार्डर सील करने की मांग कर रहे है। सशस्त्र बलों के लिए लागू विशेष कानून हटाने की मांग को लेकर शर्मिला 16 वर्षों से अनशन कर रही  थी वे भी  चुनावी तैयारी में जुटी है। हालांकि उनके पार्टी बनाने से यहां के लोग खुश नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने मोरांग को अपना ठिकाना बनाया था। 1959 में यहां से छिपते हुए नेताजी ताईवान के लिए रवाना हुए थे। इसी दौरान वे प्लेन क्रेश में मारे गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रयोग में लाए गए हथियार व नेताजी से जुड़ी प्रत्येक सामग्री को यहां के म्युजियम में आज भी सहेज कर रखा गया है। समीप में ही लोकटक झील है। देखरेख के अभाव में इसकी खूबसूरती चली गई है। आठ बजे से सडक़ें वीरान हो जाती हैं उत्तरी पूर्वी भारत के राज्य मणिपुर हो या नागालैण्ड यहां की अलग जीवन शैली है। सायं पांच बजे ही सूर्य अस्त हो जाता है। रात्रि 8 बजे तक सडक़ें वीरान हो जाती है। सुबह 5 बजे सूर्योदय के साथ ही दैनिक कार्य शुरू हो जाता है। सडक़ों पर सामान बेचने वाले हो या बड़े कारोबारी उनकी दुकानें खुल जाती है। चावल यहां के लोगों का मुख्य भोजन है। मणिपुर में गैस के 2 बड़े भंडार मिले हैं।   सस्ती कीमत पर मिलती है शराब मणिपुर में शराब बिक्री के लिए लायसेंंस की जरूरत नहीं है। जिसके कारण यहां खुले आम बाजार में शराब की बिक्री होती है। यही कारण है कि यहां पर अन्य राज्यों की तुलना में शराब की कीमत लगभग आधी है। म्यांमार बार्डर के नजदीक मुरे में खुले आम महिलाएं बाजार में शराब बेचते नजर आईं। इसके बावजूद यहां के लोग शराब पीकर सडक़ों पर लडख़ड़ाते नहीं दिखाई दिए। व्यापार में महिलाओं का दबदबा मणिपुर में छोटे से लेकर बड़े व्यापार तक महिलाओं का पूरी तरह से दबदबा है, पान ठेला में गुटखा, सिगरेट, पान बनाकर बेचने से लेकर शराब की बिक्री तक का काम महिलाएं करती है। राजधानी इम्फाल मेंं ईमा मार्केट है, जहां पूरा व्यापार महिलाएं  ही करती है। नागालैण्ड की तरह यहां की महिलाओं को काफी आजादी है। इंटरनेशनल मार्केट मुरे में स्थित है। थोक कारोबार का यह बड़ा केन्द्र है। यहां से पूरे राज्य को सामान की सप्लाई होती है। इस मार्केट में भी महिलाओं का दबदबा है। मणिपुर में हिन्दी भाषी लोगों के लिए कोई समस्या नहीं है। कारोबारी भी हिन्दी में बातचीत करते हैं।


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