• महिलाओं ने की शौचालय बनाने की पहल

    भोपाल ! पीने का साफ पानी, स्वच्छता, शौचालय कुपोषण खत्म करने का एक महत्वपूर्ण कारक हैं। खुले में शौच के कारण कई बीमारियां जैसे- डायरिया, उल्टी-दस्त होती है, जो विशेषकर बच्चों में यह घातक है। इसका असर बच्चों के कद पर भी पड़ता है, जो अतत: कुपोषण को जन्म देता है।...

    अंतिम भाग  झाबुआ से लौटकर रूबी सरकार


    भोपाल !  पीने का साफ पानी, स्वच्छता, शौचालय कुपोषण खत्म करने का एक महत्वपूर्ण कारक हैं। खुले में शौच के कारण कई बीमारियां जैसे- डायरिया, उल्टी-दस्त होती है, जो विशेषकर बच्चों में यह घातक है। इसका असर बच्चों के कद पर भी पड़ता है, जो अतत: कुपोषण को जन्म देता है। इसीलिए बड़ी धामनी गांव (थांदला, झाबुआ) में उदय सामाजिक विकास संस्था के सहयोग से विकास मंच समिति की महिलाओं  ने खुले में शौच रोकने के लिए  हर घर में शौचालय निर्माण के लिए शासन पर दबाव बनाया। थांदला विकास खण्ड के बड़ी धामनी, कोटरा और  मुजाल तीन गांव की 162 महिलाओं की 15 समूह हैं। ग्राम साथिन शांति बताती हैं, कि यहां भीलों के 91 फीसदी और दलितों के 71 फीसदी घरों में शौचालय नहीं था। स्वच्छता अभियान के तहत 15 समूह की महिलाओं ने मिलकर  ग्राम सभा में 3 बार आवेदन दिया, जब बात नहीं बनी, तो आंदोलन किया और विकासखण्ड पर जाकर मुख्य कार्यपालन अधिकारी पीसी वर्मा को केवल शौचालय के लिए ही नहीं, बल्कि रपटा पुल, हैण्डपम्प, पानी की टंकी, सामुदायिक भवन, सीसी रोड और बिजली के लिए भी आवेदन के साथ धरना भी दिया। अभी हाल ही में बड़ी धामनी के सरपंच दीपक बर्नाड बिलवाल ने 260 शौचालय बनवाये हैं। सरपंच ने बताया, उसके पास तीन सौ शौचालय निर्माण का लक्ष्य है। उन्होंने बताया, कि उसने निर्माण कार्यों के लिए पंचायत के पास वित्तीय अधिकार ही नहीं है। उसने सांसद कांतिलाल भूरिया से 3 लाख रुपये तथा निर्दलीय विधायक कल सिंह मावर से 5 लाख रुपये की मांग की है। इसी तरह कोटरा, मुजाल और बड़ी धामनी को मिलाकर साढ़ तीन सौ शौचालय का निर्माण हो चुका है।   जब इस संवाददाता ने बड़ी धामनी गांव का दौरा किया, तो पाया कि 90 फीसदी से अधिक घरों में शौचालय का उपयोग नहीं किया जा रहा है। उसे या तो नहाने या फिर अन्य कामों के लिए इस्तेमाल किया रहा है। समूह की एनीमेटर विद्या भूरिया ने बताया, कि शौचालय की लम्बाई-चौड़ाई बहुत कम है, इसलिए आदिवासी उसमें नहीं जा रहे हैं। जिसने अपनी तरफ से पैसे लगाकर शौचालय की लम्बाई-चौड़ाई बढ़ा ली है, केवल वहीं शौचालयों का इस्तेमाल कर रहे हैं। दूसरी तरफ शौचालय के साथ एक छोटा सा पानी के लिए टैंक भी बनाया गया है। गांव में 24 हैण्डपम्प हैं, लेकिन इस साल गर्मी में मात्र दो हैण्डपम्प ही चालू थे। इसलिए यह व्यवहारिक नहीं लगता, कि दूर-दूर से पानी लाकर पहले टेंक को भरा जाये, उसके बाद शौचालय का इस्तेमाल किया जाये।  शौचालय के साथ पीछे की ओर जो सेफ्टी टेंक बनाया गया  है, वह भी खुला है। ऐसे में बीमारी और कुपोषण का खतरा तो बराबर बना रहेगा। बहरहाल, कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार एसके राही रोज सुबह 5 बजे गांव वालों को शौचालय जाने के लिए प्रेरित करने पहुॅचते हैं। हाल ही में एनएसएसओ की स्वच्छता रिपोर्ट में बताया गया है, कि मध्यप्रदेश 31 जनवरी,2016 तक एक लाख, 45 हजार, 463 शौचालय बन चुके हैं, जबकि एनएफएचएस- 4 के आंकड़े बताते है, कि वर्ष 2015-16 में 71 फीसदी लोगों की अभी तक स्वच्छता तक पहुॅच नहीं है। इसका मतलब यह है कि लोग अभी भी शौचालय का उपयोग नहीं कर रहे हैं। उल्लेखनीय है, कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को देशवासियों ने मन की बात करते हुए कहा, कि महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने के खुले मेंं शौचमुक्त भारत बनाये। इसी  उद्देश्य से देश में युद्ध स्तर पर शौचालय निर्माण हो। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 2019 तक स्वच्छ भारत अभियान के तहत  हर घर में शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा है।

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