• सिंधु जल समझौते से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति चाहते हैं कश्मीरी

    श्रीनगर ! जम्मू एवं कश्मीर के राजनेता भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु समझौते के कारण हुए नुकसान का मुआवजा चाहते हैं।...

    सिंधु जल बंटवारा कच्चा समझौता था जिसने कश्मीर को दरिद्र बना दिया

    श्रीनगर !   जम्मू एवं कश्मीर के राजनेता भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु समझौते के कारण हुए नुकसान का मुआवजा चाहते हैं। उनका कहना है कि इस समझौते ने राज्य की बहुत अधिक जल विद्युत पैदा करने की संभावना को लूट लिया। एक आकलन के मुताबिक राज्य में 25 हजार मेगावाट से अधिक पनबिजली पैदा की जा सकती है।

    उनका कहना है कि 1960 का नदी जल बंटवारा समझौता कच्चा समझौता था जिसने राज्य को दरिद्र बना दिया और राज्य को औद्योगिकीकरण के मामले में पीछे कर दिया। जम्मू एवं कश्मीर के आर्थिक हितों को दिमाग में रखते हुए अब इसकी समीक्षा करने की जरूरत है।

    राज्य के शिक्षा मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नईम अख्तर ने आईएएनएस से कहा कि दोनों देशों को राज्य के हितों का खयाल रखना चाहिए था।

    राज्य में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम लोगों का हमेशा से यह रुख रहा है कि राज्य को क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए क्योंकि इस समझौते के जरिए बिजली पैदा करने पर अंकुश लगाया गया है।

    अख्तर ने कहा कि यह हमारी पार्टी का विचार है कि भारत और पाकिस्तान, जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के हितों की रक्षा के लिए एक तंत्र बनाएं।

    विश्व बैंक की मध्यस्थता से यह द्विपक्षीय समझौता हुआ था जिसमें तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलज पर भारत का नियंत्रण दिया गया था। इसमें कश्मीर से बहने वाली तीन पश्चिमी नदियों चेनाब, झेलम और सिंधु पर बगैर किसी प्रतिबंध के पाकिस्तान को नियंत्रण दिया गया है।

    गत 18 सितम्बर को जम्मू एवं कश्मीर के उड़ी में एक सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है। हमले के लिए भारत सीमा पार पाकिस्तान से आए आतंकियों को दोषी मानता है। इस हमले के समय से इस करार पर ध्यान केंद्रित है।


    भारत ने हमले के जवाब में इस समझौत पर पुनर्विचार करने का संकेत दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि खून और पानी दोनों एक साथ नहीं बह सकते हैं।

    करार के मुताबिक भारत पश्चिमी नदियों पर कोई बांध नहीं बना सकता लेकिन पानी संचय करने की कुछ सुविधाओं की इजाजत है। इसके परिणाम स्वरूप जम्मू एवं कश्मीर की सभी जल विद्युत परियोजनाएं नदी की धारा पर नहीं बनेंगी जिससे राज्य 25000 मेगावाट तक जल विद्युत की संभावना से वंचित रह गया।

    विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेंस ने इस बीच भारत द्वारा इस समझौते की संभावित समीक्षा के लिए समय के चुनाव पर सवाल उठाया है।

    नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता जुनैद मट्ट ने आईएएनएस से कहा कि 56 साल तक इस समझौते के खिलाफ भारत ने कोई अंगुली नहीं उठाई लेकिन तत्काल इसे खारिज करना जम्मू एवं कश्मीर के हितों के अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक अदावत निकालने की हिमायत करता है।

    राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर इससे सहमत हैं। उन्होंने वर्ष 2003 को याद किया जब पीडीपी के साथ काग्रेस का शासन था, तब विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया गया था जिसमें इस समझौते के बदले में मुआवजे की मांग की गई थी।

    मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एम. वाई तारिगामी ने कहा कि समय की कसौटी पर खरे उतरे इस समझौते को रद्द करना संभव नहीं है।

    उन्होंने कहा कि राज्य की जनता को मुआवजा दिया जाना चाहिए। सिर्फ समझौता रद्द कर देने से मुआवजा नहीं मिल सकता।

    राज्य के भाजपा नेता इस मुद्दे पर चुप हैं।

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