• भीलों के ढाई हजार बच्चे अतिकुपोषित

    भोपाल ! मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में 6 साल तक के बच्चों में गंभीर कुपोषण की समस्या एकीकृत बाल विकास परियोजना की चूक को उजागर कर रही है। सतना, खण्डवा, शिवपुरी, श्योपुर और होशंगाबाद के अलावा प्रदेश के भील बाहुल्य झाबुआ में भी 0 से 05 उम्र तक के 21 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं।...

     झाबुआ से लौटकर रूबी सरकार

    भाग- एक


    भोपाल !   मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में 6 साल तक के बच्चों में गंभीर कुपोषण की समस्या एकीकृत बाल विकास परियोजना की चूक को उजागर कर रही है। सतना, खण्डवा, शिवपुरी, श्योपुर और होशंगाबाद के अलावा प्रदेश के भील बाहुल्य झाबुआ में भी 0 से 05 उम्र तक के 21 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं। एकीकृत बाल विकास सेवा के आंकड़े बताते हैं, कि कुल एक लाख 85 हजार बच्चों में से लगभग 36 हजार बच्चे कम वजन वाले हैं, इनमें से ढाई हज़ार से भी ज्यादा बच्चे अति कुपोषित हैं।   जब इस संवाददाता ने झाबुआ जिले के थांदला विकास खण्ड का एक गांव बड़ी धामनी का दौरा किया, तो पाया कि भील परिवारों से हर महीने 6 से 8 बच्चे अतिकुपोषित निकल रहे हैं। इसी गांव की दिनेशगन सिंह की 13 माह की बेटी प्रिया अतिकुपोषित है। वह अपने घर पर अकेली पालने में पड़ी-पड़ी रो रही थी। उसके आस-पास परिवार का कोई सदस्य मौजूद नहीं था। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पास्केली भाभोर ने उसे गोद में उठा लिया। पास्केली ने बताया, कि इसका वजन 6 किलो और ग्रेड लाल है। एमयूसी (बांह का नाप) भी साढ़े 11 से कम है। आजीविका का अन्य कोई साधन न होने के कारण माता-पिता दोनों  बूढ़ी दादी के भरोसे बच्ची को छोडक़र रोज मजदूरी के लिए चले जाते हैं, जबकि यह उन दोनों की पहली बेटी है। पास्केली 1969 से इसी आंगनबाड़ी  में बतौर कार्यकर्ता काम कर रही है। आंगनबाड़ी का भवन जर्जर हो चुका है, इसलिए अस्थाई रूप से पंचायत भवन में आंगनबाड़ी संचालित है। दूसरी तरफ  23 सितम्बर को उसे घर-घर मलेरिया की दवा पिलाने जाना था, इसलिए आंगनबाड़ी का काम ठप्प पड़ा था। पास्केली ने बताया, कि यहां एक आंगनबाड़ी में हमेशा 2 से 3 अति कुपोषित बच्चे मिल जाते हैं। फिर भी मजदूरी छोडक़र माता-पिता अपने बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र नहीं ले जाना चाहते। इस आंगनबाड़ी में 60 बच्चों के नाम दर्ज है, जिनकी देखभाल के अलावा उसे हर रोज 11 शासकीय रजिस्टर और 3 खाद्यान्न के रजिस्टर भरने पड़ते हैं। साथ में पोलियो, मलेरिया, टीकाकरण आदि काम भी उसके जिम्मे हैं। पास्केली ने महज सौ रुपये से काम शुरू किया था, आज उसका मानदेय बढक़र 5 हजार रुपये हो गया है, लेकिन वह समय पर नहीं मिलता है। इस आंगनबाड़ी की जिम्मेदारी पिछले 6 साल से एकता समूह के पास है। इस समूह पर भारी अनियमितता का आरोप लगाते हुए गांव के सरपंच दीपक बर्नाड बिलवाल-जो समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं, ने कई बार मुख्य कार्यपालन अधिकारी के साथ-साथ महिला एवं बाल विकास अधिकारियों को भी कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है। श्री बिलवाल ने बताया, कि नियम के अनुसार हर तीन साल में आंगनबाड़ी में समूह बदला जाना चाहिए, लेकिन इस आंगनबाड़ी में भारी अनियमितताओं के बावजूद एकता समूह को अभी तक हटाया नहीं गया। 18 सौ की जनसंख्या वाले इस गांव में 4 आंगनबाड़ी हैं, इनमें से 2 मिनी आंगनबाड़ी। साढ़े 3 सौ आदिवासी परिवारों वाले इस गांव में प्रत्येक माह 6 से 8 बच्चे अति कुपोषित दर्ज होते हैं।

     

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