• महाराष्ट्र : कुपोषण की भयावह स्थिति बयां करती 13 बच्चों की मौतें

    महाराष्ट्र के जनजातीय बहुल पालघर जिले में पिछले दो महीनों में 13 बच्चों की मौतों ने इस सुलगती सच्चाई को एक बार फिर सामने ला खड़ा किया है कि देश के इस सर्वाधिक औद्योगिकीकृत राज्य में कुपोषण अभी भी अपने पंजे व्यापक पैमाने पर फैलाए हुए है। यह जिला देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से उत्तर महज 100 किलोमीटर की दूरी पर है।...

    महाराष्ट्र के जनजातीय बहुल पालघर जिले में पिछले दो महीनों में 13 बच्चों की मौतों ने इस सुलगती सच्चाई को एक बार फिर सामने ला खड़ा किया है कि देश के इस सर्वाधिक औद्योगिकीकृत राज्य में कुपोषण अभी भी अपने पंजे व्यापक पैमाने पर फैलाए हुए है। यह जिला देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से उत्तर महज 100 किलोमीटर की दूरी पर है।

    राज्य के नंदूरबार (47.6 प्रतिशत), और यवतमाल (47.4 प्रतिशत) जिलों में पांच वर्ष उम्र तक के कुल बच्चों में से आधा बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से अविकसित, छोटे लगते हैं, जो कुपोषण का एक संकेत है। इन दो जिलों में बच्चों के कुपोषण की यह दर मध्य पूर्व के सर्वाधिक गरीब देश, युद्धग्रस्त यमन से कहीं अधिक है।

    परभणी (46.4 प्रतिशत), जालना (44.1 प्रतिशत) और बुलढाना (43.9 प्रतिशत) जिलों की स्थिति भी इस मामले में चकित करने वाली है। इन जिलों में कुपोषण की इन दरों की तुलना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्वाटेमाला (46.2 फीसदी), रवांडा (44.3 फीसदी) और लाओस (43.8 प्रतिशत) से की जा सकती है।

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण4 (एनएफएसएस4) के अनुसार, गड़चिरौली जिले में 22.2 प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से अविकसित और कम वजन के है, और यह दर अफ्रीका में गरीबी और अशांति से ग्रस्त देश दक्षिण सूडान की दर के बराबर है। इसके अलावा नंदूरबार जिले में 55.4 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं। यह दर मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के समान है।

    बच्चों में छोटा कद, अल्पविकास और कम वजन मिलकर कुपोषण की स्थिति निर्धारित करते हैं। संवेदी, संज्ञानात्मक, सामाजिक और भावनात्मक विकास पर कुपोषण का दीर्घकालिक असर होता है। देश में पांच वर्ष तक उम्र के बच्चों में कुपोषण की दर पिछले 19 वर्षो के दौरान औसतन 42.4 प्रतिशत से घटकर 29.4 प्रतिशत पर आ गई है, लेकिन कुल 3.79 करोड़ बच्चे अभी भी कुपोषित हैं।


    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2014 के आंकड़े के मुताबिक, सांगली जिले में पांच साल उम्र तक के 23.3 प्रतिशत बच्चे छोटे कद के हैं, और ठीक यही दर दक्षिण अफ्रीका की है। जबकि मुंबई के उनगरीय जिले में 21.3 प्रतिशत बच्चे छोटे कद के हैं, और यह दर पूर्वोत्तर अफ्रीकी देश केप वर्दे के बराबर है। यह देश हाल ही में मध्यम आय वाले देश की स्थिति में आया है।

    गढ़चिरौली में पांच वर्ष उम्र तक के बच्चों में 22.2 प्रतिशत और चंद्रपुर में 16.1 प्रतिशत अविकसित हैं। यह दर दक्षिण सूडान और सूडान जैसे अशांत देशों में अविकसित बच्चों की दर के बराबर है।

    दूसरी तरफ कोल्हापुर जैसे कुछ शहरों में पांच वर्ष उम्र तक के मात्र 5.9 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं, और यह दर अपेक्षाकृत समृद्ध देश भूटान में अविकसित बच्चों की दर के बराबर है।

    (आकड़ा आधारित, लोहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ व्यवस्था के तहत। प्राची साल्वे इंडयास्पेंड में एक विश्लेषक हैं।)

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