संपत्तिकर में वृद्धि के सरकार के फैसले को कांग्रेस के प्रभाव वाले नगरीय निकायों में लागू न करने का विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। कांग्रेस ने इसे एक जनविरोधी फैसला बताते हुए सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की थी, लेकिन फैसला नहीं बदला। नगरीय निकायों के दैनिक कार्यों तथा नागरिक सुविधाओं के विस्तार के लिए संसाधन कम पड़ रहे है इसलिए सरकार चाहती है कि नगरीय निकाय अपनी आय बढ़ाएं। निकायों की मुश्किल यह है कि उन्हें करों में वृद्धि के अप्रिय निर्णय से लोगों में असंतोष पैदा होने का भय सताता है। वे सरकार का मुंह ताकते हैं कि वही कोई निर्णय ले और वे ये कहकर करवृद्धि के दोष से बच जाएं कि फैसला सरकार का है। सरकार भी ऐसे फैसले लेकर लोगों का विरोध लेना नहीं चाहती। इसका एक नया रास्ता निकाला जा रहा है और नगरीय निकायों के लिए एक राजस्व विनियामक आयोग का गठन होने जा रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह बिजली की दरें तय करने के लिए विद्युत विनियामक आयोग बना हुआ है। कहने को तो इस आयोग को फैसले लेने के लिए स्वतंत्र बताया जाता है, लेकिन इसमें सरकार का दखल अप्रत्यक्ष रुप से होता ही है। एक प्रकार से आयोग सरकार के लिए ढाल होता है, जो कड़े फैसले पर उसका बचाव करने का माध्यम बनता है। अब नगरीय निकायों में लगने वाले करों के निर्धारण के मामले में भी विनियामक आयोग नाम की ढाल बनाई जा रही है। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू नगरीय निकायों को पहले ही सचेत कर चुके हंै कि उन्हें अपने प्रयासों से संसाधन बढ़ाने होंगे क्योंकि आने वाले समय में केन्द्र से उन्हें अधिक मदद नहीं मिलने वाली। नगरीय निकायों की माली हालत दिनोंदिन खराब हो रही है क्योंकि शहरी क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है और नागरिक सुविधाओं के लिए संसाधनों की जरुरत लगातार बढ़ती जा रही है। मौजूदा करों की वसूली भी नहीं हो पा रही है। कहीं व्यवस्था में कमी है तो कहीं लोग करों के भुगतान में आनाकानी कर रहे हैं। कुछ महीने पहले संपत्तिकर में वृद्धि का जो फैसला सरकार ने किया, उसे अभी तक कई नगरीय निकायों में लागू नहीं किया जा सका है। कांग्रेस के प्रभाव वाले निकायों में तो इस वृद्धि को लागू करने से ही मना कर दिया गया, लेकिन अब सरकार ने दबाव बनाया तो उन्हें लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ा। निकायों का एक बड़ा नुकसान अवैध संपत्तियों से हो रहा है। इन संपत्तियों पर उसे कोई कर नहीं मिलता। इसके लिए सरकार ने अधिनियम में संशोधन कर अवैध संपत्तियों को वैध कराने का अवसर दिया है। ऐसे मामलों में जुर्माने के प्रावधान में छूट की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। एक बार अवैध संपत्तियां वैध हो गईं तो निकायों को उस पर नियमित कर मिलने लगेगा। सरकार ने यह अच्छा निर्णय लिया है, लेकिन अभी लोग इसमें अधिक रुचि नहीं ले रहे हैं। अवैध संपत्तियों के मामले में जब तक कार्रवाई शुरू नहीं होगी लोग इस छूट का लाभ लेने के लिए भी शायद ही आगे आएं। नगरीय निकायों में बुनियादी सुविधाओं को बनाए रखने के लिए बड़ी धनराशि की जरुरत होती है। अगर सरकार से सहायता न मिले तो नगरीय निकायों की हालात और खस्ता हो जाए। अब देखना होगा कि राजस्व विनियामक आयोग के गठन के बाद नगरीय निकायों को साधन अक्षम बनाने के लिए क्या होता है।