• मानव तस्करी पर लगेगी लगाम

    छत्तीसगढ़ में मानव तस्करी पर लगाम लगाने के लिए सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है।...

    छत्तीसगढ़ में मानव तस्करी पर लगाम लगाने के लिए सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है। एक स्पेशल सेल का गठन होने जा रहा है, जो मानव तस्करों पर नकेल कसने का काम करेगा। राज्य में मानव तस्करी के नित नए मामले उजागर होते रहे हैं। कुछ सामाजिक संगठनों की सक्रियता और पुलिस कार्रवाई के बाद मानव तस्करों की गतिविधियों मेें कुछ कमी जरुर आई है, लेकिन यह अब भी जारी है। कुछ साल पहले ‘आशा’ नाम के एक सामाजिक संगठन ने जशपुर तथा उससे लगे जिलों से दो हजार लड़कियों के गायब होने का मामला सामने लाकर सनसनी मचा दी थी। इसके बाद ही मानव तस्करी जैसे अपराध पर लोगों का ध्यान गया और पुलिस ने कार्रवाइयां शुरू कीं। तब से लेकर अब तक पुलिस दिल्ली समेत कई शहरों में जाकर घरेलू नौकरानी तथा दूसरे धंधों में लगाई गईं कई लड़कियों को मुक्त कराया और उनके घरों तक पहुंचाया। ये मानव तस्कर बड़े शहरों में संचालित प्लेसमेन्ट एजेन्सियों के एजेन्ट होते हैं, जो लालच में पडक़र मानव तस्करी के अपराध में शामिल हो जाते हैं। जशपुर जिले में पुलिस को कुछ स्थानीय युवक भी मिले, जो मानव तस्करों के बहकावे में आकर इस अपराध में शामिल हो गए थे। मानव तस्करी के खिलाफ सामाजिक संगठनों के प्रयास से मानव तस्करी के खिलाफ जो वातावरण तैयार हुआ है,उससे लोग जागरुक हुए हैं और अब लालच देकर या बहला-फुसलाकर इस तरह के आपराधिक कृत्य को अंजाम देना पहले की तरह आसान नहीं रह गया है फिर भी मानव तस्कर सक्रिय हैं। सरकार जो स्पेशल सेल बनाने जा रही है, उसका काम ही इन मानव तस्करों पर नजर रखने का  होगा। मानव तस्करों के जाल में फंसे लोगों को बड़े शहरों की चकाचौंध और थोड़े पैसे कुछ दिनों के लिए तो लुभाते हैं, लेकिन जल्दी ही उन्हें पता चल जाता है कि वे फंस गए हैं। यह जाल ऐसा होता है, जिससे निकल भागना आसान नहीं होता और वे तब तक बन्धुआ जीवन जीने को मजबूर होते हैं जब तक उनकी मदद के लिए पुलिस नहीं पहुंचती। सरकार चाहती है कि राज्य में मानव तस्करी पर पूरी तरह रोक लगाई जाए, लेकिन यह उसके अकेले के प्रयास से संभव नहीं है। इसके लिए सामाजिक सहभागिता भी उतनी ही जरुरी है। अगर सामाजिक संगठन भी इसकी रोकथाम में भूमिका निभाएं तो मानव तस्करों के लिए छत्तीसगढ़ में पांव रखना अभी भी मुश्किल हो सकता है। सबसे पहले उन इलाकों में ध्यान देना होगा, जो इन तस्करों के निभाने पर रहे हैं। वहां के गरीब परिवारों को समझाना होगा कि उन्हें बड़े शहरों में ले जाकर नौकरी दिलाने का झांसा देने वाले कोई और नहीं बल्कि अपराधी हैं। इस तरह के जागरुकता अभियान में मानव तस्करी के शिकार हुए उन लोगों को शामिल किया जा सकता है, जिन्होंने यातनाएं झेली हैं। जिस दिन यह जागरुकता आ जाएगी, पुलिस के लिए इन तस्करों को पकडऩे में देर नहीं लगेगी। ये अब तक इसलिए बच जाते रहे हैं क्योंकि इन्हें स्थानीय लोगों की मदद मिलती रही है। ये स्थानीय लोग ही तस्करों के संपर्क सूत्र होते हैं और किसी को गांव से बाहर ले जाने की योजना बनाने में मदद करते हैं। इस संपर्क सूत्र को तोडऩे के लिए दो तरीके अपनाने होंगे। एक तो इस अपराध में होने वाली सजा का डर पैदा करना होगा और दूसरा, यह लोगों को बताना होगा कि ये मानव तस्कर किस तरह लोगों को जीवन नर्क बना देते हैं।

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