• राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह

    गौरक्षा, दलित उत्पीडऩ, महिला सुरक्षा, महंगाई, बाढ़, कश्मीर में जारी हिंसा इन मुद्दों पर निरंतर घिर रही भाजपा सरकार बचाव की मुद्रा में आई तो पहले गुजरात का मुख्यमंत्री बदल दिया गया...

    गौरक्षा, दलित उत्पीडऩ, महिला सुरक्षा, महंगाई, बाढ़, कश्मीर में जारी हिंसा इन मुद्दों पर निरंतर घिर रही भाजपा सरकार बचाव की मुद्रा में आई तो पहले गुजरात का मुख्यमंत्री बदल दिया गया, फिर प्रधानमंत्री का भावुकता भरा बयान आया कि मारना है तो पहले मुझे मारे, उसके बाद दलितों के अधिकारों की बात उठ गई, कश्मीर के सभी विपक्षी दलों से प्रधानमंत्री की सार्थक भेंट भी हो गई, इन सबसे हालात कितने बदलेंगे कहा नहींजा सकता, इसलिए अब भाजपा ने एक बार फिर राष्ट्रवाद का दांव चला है। भाजपा की कोर ग्रुप बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि चुनाव जीतना राष्ट्रीय कत्र्तव्य है। उन्होंने अपने साथियों को सत्ता में आने का मंत्र देते हुए कहा कि राष्ट्रवाद हमारी पहचान है। राष्ट्रवाद के संदेश और एजेंडे पर ही फोकस करना चाहिए। संविधान में वर्णित कत्र्तव्यों के बावजूद अगर हर दल अपने-अपने राष्ट्रीय कत्र्तव्य और निर्धारित करने लगे तो देश किस दिशा और दशा को प्राप्त होगा मालूम नहीं। फिलहाल तो यह नजर आ रहा है कि राष्ट्रवाद के नारे में बहुत सी आवाजें एकबार फिर दबाने की तैयारी की जा रही है। यह महज संयोग ही है कि इधर प्रधानमंत्री राष्ट्रवाद नए सिरे से व्याख्यायित कर रहे थे और उधर कांग्रेस की नेता, पूर्व सांसद रम्या पर देशद्रोह का मुकदमा दायर होने की आवाज उठाई गई। रम्या का कसूर इतना ही है कि उन्होंने रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर के उस बयान के खिलाफ अपनी राय प्रकट की कि पाकिस्तान जाना नर्क के समान है। रम्या स्वयं कुछ दिन पहले पाकिस्तान में सार्क के युवा राजनीतिकों के सम्मेलन में शामिल हुई थीं। उन्होंने कहा कि वहां के लोगों ने उनका अच्छा आदर-सत्कार किया। उन्होंने कहा कि वहां के लोग भी हमारे ही जैसे हैं। रम्या अपने कहे पर न शर्मिंदा हैं न माफी मांगने तैयार हैं। रम्या का यह रुख एकदम सही है। केवल इसलिए कि पाकिस्तान की सरकार, सेना, खुफिया एजेंसियों के नाक तले आतंकवाद पनप रहा है, और कश्मीर में अस्थिरता फैलाने की कोशिश की जा रही है, उसे नर्क नहींकहा जा सकता। वहां की जनता भी आतंकवाद से पीडि़त है और अमन चाहती है। पाकिस्तान को नर्क कह देने से आपका राजनीतिक मकसद सधता होगा, लेकिन वृहत्तर मानवता का नुकसान ही होता है। फिर देशप्रेम कोई शोकेस में रखी वस्तु नहींहै, जिसका हमेशा प्रदर्शन करना पड़े और न ही वह इतनी नाजुक चीज है कि बयानों से टूट जाए। देशप्रेम बहुत मजबूत अवधारणा होती है, लेकिन उस मजबूती को समझने के लिए मुद्दों को समझना पड़ता है, देश में रहने वाले लोगों के दुख-दर्द, तकलीफों को समझना पड़ता है, तभी देश से सच्चा प्रेम किया जा सकता है। यूं तो स्वर्ग-नर्क सब काल्पनिक अवधारणाएं हैं, लेकिन सुख और दुख की अनुभूति से अगर इन्हें समझाया जाता है तो फिर भारत में रहने वाले लाखों लोग नारकीय जीवन जीते हैं। उन्हें स्वर्ग का एहसास कराने कौन सा देशप्रेम काम में लाया जाएगा। अन्न उगाने वाला किसान आत्महत्या करता है, लाखों बच्चे बिना शिक्षा, मनोरंजन,  लाड़-दुलार के जीते हैं, मजदूरों का हक मार कर मालिक अमीर पर अमीर होता है, स्त्रियों के आधे-अधूरे अधिकार मिलते हैं, गरीबों का जीवन सडक़ पर ही खत्म हो जाता है, तो क्या ये सब नर्क समान नहींहै।  जहां तक सवाल है रम्या की देशभक्ति का है, तो यह उन्हें साबित करने के लिए कोई मजबूर नहींकर सकता। वे जननेता हैं। पहले चुनाव लड़ चुकी हैं और हो सकता है, आगे भी लड़ें, तब जनता उन्हें जैसा जवाब देना चाहेगी अपने मतों से दे देगी। रम्या ने किसी बात पर असहमति प्रकट की तो यह अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उपयोग है। उनके खिलाफ देशद्रोह के मामले की बात करना, इस अधिकार का हनन होगा। पिछले दो सालों में देशद्रोह के ऐसे ही कुछ और मामले देखे गए हैं, जिनसे राजनीति में थोड़ा-बहुत तूफान तो मचता है, लेकिन जनता के सरोकारों पर कोई असर नहींपड़ता। मोदी सरकार पिछले बहुत से कानूनों को खत्म करने की वकालत करती आई है। तो क्या अंग्रेजों के जमाने के इस कानून को खत्म करने पर विचार नहींकरना चाहिए। अंत में दिलवाले दुल्हनिया का एक दृश्य याद कर लें, जिसमें अमरीश पुरी अनुपम खेर से कहते हैं कि आपके पहनावे से लगता नहींकि आप हिंदुस्तान से हैं, तो अनुपम खेर का जवाब होता है अजी हम हिंदुस्तान को अपने दिल में लिए घूमते हैं। सच में हिंदुस्तान को हम दिल में लिए घूमे और बात-बात पर देशप्रेम का प्रदर्शन न करें तो ही देश का भला है।

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